स्वर्ण प्राशन संस्कार बच्चों के लिए क्यों जरूरी? सनातन और आयुर्वेद दोनों में इसकी अहमियत, जानें सब


इंदौर: सनातन धर्म में बच्चे के जन्म होने के बाद 16 तरह संस्कार कराए जाने की मान्यता है. इनमें पहला संस्कार स्वर्ण प्राशन होता है, जो उत्तम स्वास्थ्य के लिए कराया जाता है. मगर, आज के जमाने में लोग इस संस्कार को भूलते जा रहे हैं. वहीं, आयुर्वेद आज भी इसे जीवंत रखे हुए है, क्योंकि स्वर्ण प्राशन संस्कार से एक नहीं अनेक स्वास्थ्य लाभ बच्चों को होते हैं.

बीते दिनों पुष्य नक्षत्र के दिन इंदौर के अष्टांग आयुर्वेद कॉलेज में स्वर्णप्राशन कैंप का आयोजन किया गया था. बड़ी संख्या में लोग बच्चों को लेकर अस्पताल पहुंचे थे. एक दिन में सैकड़ों बच्चों का स्वर्ण प्राशन संस्कार हुआ, जिसमें जन्म से लेकर 12 साल तक के बच्चे शामिल थे. स्वर्ण प्राशन के लिए एक दवा पिलाने के लिए अस्पताल को हर महीने पुष्य नक्षत्र का इंतजार करना पड़ता है.

आयुष मंत्रालय की गाइडलाइन
अष्टांग आयुर्वेद कॉलेज के प्रिंसिपल और डीन डॉ. एपीएस चौहान के अनुसार, आयुष मंत्रालय के निर्देश पर विगत 6 साल से पुष्य नक्षत्र में स्वर्णप्राश दवा पिलाई जाती है. स्वर्ण प्राशन संस्कार सनातन धर्म के 16 संस्कारों में से एक है, जो बच्चे के जन्म से लेकर 12 वर्ष की आयु तक कराया जाता है. स्वर्ण प्राशन संस्कार बच्चों के बेहतर स्वास्थ्य में अहम भूमिका निभाता है. स्वर्ण प्राशन से बच्चों को विभिन्न रोगों से लड़ने की क्षमता मिलती है.

क्या है स्वर्ण प्राशन
ऋषि-मुनियों द्वारा हजारों वर्ष पूर्व वायरस और बैक्टीरिया जनित बीमारियों से लड़ने के लिए एक ऐसे रसायन का निर्माण किया गया, जिसे स्वर्ण प्राशन कहा जाता है. स्वर्ण प्राशन संस्कार स्वर्ण (सोना) के साथ शहद, ब्रह्माणी, अश्वगंधा, गिलोय, शंखपुष्पी, वचा जैसी जड़ी बूटियों से तैयार होता है. इसके सेवन से बच्चों का शारीरिक और बौद्धिक विकास बेहतर होता है.

पुष्य नक्षत्र ही जरूरी क्यों
डॉ. चौहान के मुताबिक, पुष्य नक्षत्र मुहूर्त में सोना-चांदी सहित धनतेरस, दीपावली के पहले वाले पुष्य नक्षत्र पर नए बही-खाते खरीदने अथवा शुरू करने का रिवाज है. इसी तरह कुछ विशेष औषधि के लिए पुष्य नक्षत्र का इंतजार करना पड़ता है. हर महीने आने वाले पुष्य नक्षत्र में सैकड़ों बच्चे स्वर्ण प्राशन के लिए आते हैं, जिन्हें दो बूंद स्वर्ण प्राशन दिया जाता है. वैज्ञानिक महान ऋषियों और आयुर्वेद विशेषज्ञों के अनुसार 12 राशि, 9 ग्रहों, 27 नक्षत्रों की खगोलीय स्थितियों का प्रभाव मानव जीवन पर ही नहीं, बल्कि पृथ्वी पर मौजूद पंचतत्व सहित पेड़-पौधे, जीव-जंतु, जानवर, औषधीय दवाओं जड़ी-बूटियों के अलावा स्वर्ण, चांदी, रत्नों पर भी पड़ता है. सोना सस्ता था, तब बच्चों को अथवा मरीजों को पुष्य नक्षत्र में स्वर्ण भस्म शहद के साथ चटाई जाती थी, मगर अब महंगाई के चलते यह संभव नहीं है. इसलिए आयुर्वेदिक स्वर्णप्राश औषधि की दवा पिलाई जाती है, जिसमें विटामिन, मिनरल के अलावा आंशिक रूप से स्वर्ण धातु मौजूद रहती है.

स्वर्ण प्राशन के फायदे
– स्वर्ण प्राशन से बच्चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है.
– बुद्धि एवं स्मरण शक्ति को बल प्रदान करता है.
– सामान्य एवं जटिल तथा संक्रामक रोगों को होने से रोकने में कारगर है.
– जड़ी बूटी के सेवन से बच्चे में सोचने-समझने की शक्ति बढ़ती है. बच्चा जो सुनता है, उसे वह हमेशा याद रहता है.
– बच्चे सुंदर और बलशाली बनते हैं.

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