हिंदी की प्राचीनतम संस्था ‘नागरी प्रचारिणी सभा’ को मिला पुनर्जीवन, हाईकोर्ट का बड़ा फैसला


नागरीप्रचारिणी सभा में चल रहे विवाद का पटाक्षेप हो गया है. इलाहाबाद हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति सौरभ श्रीवास्तव की सिंगल बेंच ने आठ पृष्ठों के फैसले में जिला प्रशासन द्वारा कराए गए चुनाव में विजयी व्योमेश शुक्ल के नेतृत्व वाली प्रबंधसमिति को मान्यता देते हुए दूसरे पक्ष की याचिका को निरस्त कर दिया. व्योमेश शुक्ल की ओर से अधिवक्ता कुणाल शाह ने पक्ष रखा, जबकि याचिकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक खरे पैरवी कर रहे थे.

वाराणसी के न्यायालय में 2015 से नागरीप्रचारिणी सभा की प्रबंध समिति का विवाद चला आ रहा था. हिंदी की इस महान संस्था में दो-दो प्रबंध समितियां बन गयी थीं. दोनों खुद को असली प्रबंधक बताती थीं. 2020 में हिंदी कवि और देश के जानेमाने संस्कृतिकर्मी व्योमेश शुक्ल ने इस मुकद्दमे में पक्षकार बनने के लिये आवेदन किया था. अपने निर्णय में न्यायालय ने उन्हें पक्षकार मान दोनों ही प्रबंध समितियों को फर्जी और विधिशून्य घोषित करते हुए 2004-2007 की सदस्यता-सूची के आधार पर नए चुनाव कराने का आदेश दे दिया था.

वाराणसी की इस संस्था में चुनाव कराने के इस फैसले के खिलाफ एक पक्ष ने उच्च न्यायालय में रिट दाखिल की थी. इस रिट में उच्च न्यायालय ने एक अंतरिम आदेश के जरिये चुनाव तो करवा दिया, लेकिन उसी आदेश में यह भी लिख दिया कि इस
मुकद्दमे के अंतिम निर्णय के बाद ही तय होगा कि संस्था का प्रभावी नियंत्रण किसके पास रहे.

9 जून, 2022 को राइफल क्लब में जिला प्रशासन की ओर से संस्था के 19 पदों के चुनाव संपन्न कराये गए, लेकिन उच्च न्यायालय के आदेश के अनुपालन में मतों की गिनती नहीं हुई. मतपत्रों को कड़ी सुरक्षा के बीच जिला कोषागार के डबल लॉक में सुरक्षित रख दिया गया. इस निर्णय के बाद इसी मुकद्दमे में एक और अंतरिम आदेश के माध्यम से उच्च न्यायालय ने मतगणना करवाने का आदेश दे दिया. जिला प्रशासन ने राइफल क्लब में कड़ी सुरक्षा के बीच मतगणना कराई, जिसमें कवि-संस्कृतिकर्मी व्योमेश शुक्ल संस्था के प्रधानमंत्री निर्वाचित हुए और शिक्षाविद प्रोफेसर अनुराधा बनर्जी सभापति चुनी गईं. लेकिन मुकद्दमे का अंतिम फैसला अभी भी नहीं आया था, इसलिए संस्था के सभी विभागों – आर्यभाषा पुस्तकालय, प्रकाशन, विक्रय आदि पर ताला ही बंद रहा.

22 दिसंबर, 2023 को बहस के बाद न्यायालय ने चुनाव को मान्यता देते हुए व्योमेश शुक्ल और नवनिर्वाचित प्रबंधसमिति के पक्ष में कल फैसला सुनाया है और संस्था का नियंत्रण उन्हें देकर याचिका को निरस्त कर दिया. अपने निर्णय में हाईकोर्ट ने कहा है कि चुनावों के नतीजे की घोषणा के बाद मुकद्दमे और शिकायतों को औजार की तरह इस्तेमाल करके निर्णय को टाला नहीं जा सकता. हाईकोर्ट ने याचिका को व्यर्थ मानते हुए निरस्त कर दिया है. अब आर्यभाषा पुस्तकालय समेत दूसरे सभी विभाग खुल सकेंगे और लंबे समय से बंद पड़ी संस्था में हिंदी प्रेमियों, पाठकों और शोधार्थियों का आना-जाना शुरू हो जाएगा.

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