हृदय के लिखे छठ गीतों को आवाज दे अमर हो गईं शारदा सिन्हा


पटना. बिहार में इन दिनों हर जगह शारदा सिन्हा की आवाज छठ गीतों के जरिए गूंज रही है. लेकिन छठ के इस भक्तिमय माहौल में एक बुरी खबर भी आई है. जिस शारदा सिन्हा के गीतों के बगैर छठ पूजा संभव नहीं है, वो अब हमारे बीच नहीं रहीं. पद्म पुरस्कार से सम्मानित बिहार की मशहूर गायिका शारदा सिन्हा ने मंगलवार को दिल्ली एम्स में देर रात आखिरी सांस ली.

छठ के गीत भले ही आपको कई गायक और गायिकाओं की आवाज में सुनाई दे, जो आनंद शारदा सिन्हा की गायिकी में है, वह किसी और में नहीं. वे गीत सिर्फ एक गीत ही नहीं, बल्कि इमोशन बन गए हैं. जैसे ठेकुआ, पिरुकिया और खीर आदि पकवान के बिना छठ का कोई मतलब नहीं है. ठीक वैसे ही, छठ पर्व में लोक गीत ही इस महापर्व की आत्मा है. अगर आप छठ पूजा के साक्षी रहे हैं, तो कानों से सुनते हुए आपका मस्तिष्क स्वत: इसके अर्थ को खोज सकता है. लेकिन, क्या आप जानते हैं कि विश्व की सबसे प्रसिद्ध लोकगायिका पद्म भूषण शारदा सिन्हा ने जिन गीतों को गाया है, उसे हृदय नारायण झा ने लिखा है.

कौन हैं शब्दों के ये जादूगर?
हृदय नारायण झा मूल रूप से बिहार के मधुबनी जिले के निवासी हैं. शुरू से ही इनकी रुचि लेखन में रही है. संस्कृत अकादमी से रिटायर्ड हृदय नारायण झा बताते हैं कि वे कई गीतों की रचना कर चुके हैं. वे कहते हैं कि मैंने शारदा सिन्हा द्वारा गए जाने वाले कई छठ गीतों को लिखा है. प्रत्येक गीत के शब्दों का चयन बड़ी सावधानी और खोजबीन के साथ की है. इसके अलावा गायिका और गीतकार ने भी उस भाव को समझते हुए न्याय किया है. शायद यही कारण है कि आज विश्व पटल पर छठ के गीत इतने प्रसिद्ध हैं.

भोजपुरी शब्द मैथिली धुन क्यों?
कई भाषाओं के पुरोधा ह्रदय नारायण झा कहते हैं कि गीत लिखने से पहले उसके धुन के बारे में सोचता हूं. मिथिला का हूं, इसलिए मैथिली खून में बसी है. हालांकि, भोजपुरी में भी हृदय नारायण ने कई गीत लिखे हैं. वे आगे कहते हैं कि मैथिली धुन के साथ भोजपुरी शब्द इसलिए चुना, क्योंकि यह महापर्व पूरे बिहार का प्रतिनिधित्व करता है.

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