हेमंत की सियासी हिम्मत तो देखिए…सोरेन ने कैसे झारखंड में ‘जीतन राम मांझी मोमेंट’ नहीं बनने दिया?


नई दिल्ली: 20 मई 2014 की तारीख को नीतीश कैसे भूल सकते हैं. यही वह तारीख थी, जिस दिन नीतीश कुमार ने बड़ी सियासी गलती की थी. वह गलती थी जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बनाना. नीतीश कुमार तो इसे अपनी मुर्खता तक बता चुके हैं. झारखंड में भी हेमंत सोरेन के सामने भी कमोबेश कुछ ऐसी ही स्थिति थी. मगर उन्होंने नीतीश कुमार की गलती से सबक ली. समय रहते सियासी साहस का परिचय दिया… और फिर हेमंत सोरेन ने झारखंड में ‘जीतन राम मांझी मोमेंट’ बनने ही नहीं दिया. दरअसल, हेमंत सोरेन जमानत पर जेल से बाहर आ चुके हैं. जेल से बाहर आते ही सबसे पहले अपनी मुख्यमंत्री की कुर्सी वापस ले ली. हेमंत सोरेन ने गुरुवार को मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली. अब चंपई सोरेन पूर्व मुख्यमंत्री बन चुके हैं. मांझी बनने के टैग से भी बच चुके हैं.

अब सवाल उठता है कि आखिर हेमंत सोरेन ने इतनी जल्दबाजी क्यों दिखाई? क्या हेमंत सोरेन को चंपई सोरेन से सियासी खतरा था? क्या हेमंत सोरेन के दिमाग में बिहार वाला जीतन राम मांझी मोमेंट चल रहा था? ऐसे कई सवाल हैं, जिनके जवाब हेमंत सोरेन के फैसले से मिलते दिख रहे हैं. हेमंत सोरेन ने चंपई सोरेन से मुख्यमंत्री की कुर्सी ऐसे समय में वापस ली है, जब इसी साल झारखंड में विधानसभा चुनाव होने हैं. हेमंत के इस कदम से दिखता है कि वह अपने दम पर पार्टी को जीताना चाहते हैं. हेमंत सोरेन के जेल जाते ही पार्टी से लेकर परिवार तक में कलह हो गया था. पार्टी तो पार्टी, परिवार में ही बगावत के सुर सुनाई देने लगे थे. भाभी सीता सोरेन ने तो खुलकर सामने आई थीं और भाजपा में चली गईं. संगठन में हेमंत की पकड़ कमजोर होने लगी थी.

हेमंत ने नहीं होने दिया जीतन राम मांझी मोमेंट
एक ओर परिवार बिखरा था तो दूसरी ओर संगठन. हेमंत के जेल के दौरान चंपई सोरेन के पास पार्टी की कमान थी. हेमंत सोरेन को यह डर था कि अगर चंपई सोरेन अधिक दिनों मुख्यमंत्री पद पर रहते हैं तो इससे संगठन और सत्ता में उनकी वापसी मुश्किल हो सकती है. उन्हें इस बात का भी डर था कि कहीं चंपई सोरेन जीतन राम मांझी वाला दांव न खेल दें. यही वजह है कि जेल से आते ही सबसे पहले उन्होंने चंपई को मुख्यमंत्री पद छोड़ने के लिए मनाया. हेमंत सोरेन को लग रहा था कि संगठन से उनका कंट्रोल कम हो रहा है. विधानसभा चुनाव में फिर से जीत दर्ज करने के लिए उनका पार्टी पर कंट्रोल होना जरूरी था. इसलिए जेल से बाहर आते ही उन्होंने फ्रंट से लीड करने की ठानी. और मुख्यमंत्री की कुर्सी को अपने पास रख ली.

तो हेमंत को लग जाता झटका
हेमंत सोरेन को आशंका थी कि चंपई सोरेन के मुख्यमंत्री बने रहने से सियासी तौर पर उन्हें बड़ा नुकसान होता. अगर चंपई जीतन राम मांझी वाला दांव खेलते तो फिर हेमंत सोरेन के लिए बड़ा झटका होता. चंपई सोरेन कोई नए-नवेले या छोटे-मोटे नेता नहीं हैं. उनका भी अपना अलग जनाधार है. झारखंड में कई विधानसभा सीटों पर उनकी अच्छी-खासी पकड़ है. पार्टी में भी चंपई सोरेन का कद काफी बड़ा है. हेमंत के जेल जाने से तो यह कद और परवान चढ़ा है. चंपई सोरेन की ताकत का अंदाजा तो उसी वक्त लग गया था, जब उन्होंने हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद उनकी पत्नी कल्पना सोरेन को सीएम नहीं बनने दिया गया. उस वक्त ऐसी खबरें थीं कि हेमंत अपनी पत्नी कल्पना सोरेन के सीएम बनाना चाहते थे, मगर चंपई सोरेन इसके लिए तैयार नहीं थे.

हेमंत ने दिखाया साहस
हेमंत सोरेन चंपई की ताकत से वाकिफ थे. इसलिए उन्होंने चुनाव से पहले बड़ा रिस्क लिया और चंपई को माझी बनने से पहले ही सीएम की कुर्सी से हटा दिया. अब खुद मुख्यमंत्री बन चुक हैं. दो महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव हैं. अब हेमंत सोरेन बगैर कुर्सी की चिंता किए चुनावी अभियान शुरू कर सकते हैं. अपने दम पर जीत हासिल कर पत्नी के सियासी कद को और बड़ा कर सकते हैं. जेल जाने की स्थिति में पत्नी कल्पना को सीएम बना सकते हैं. चंपई सोरेन करीब 5 महीने तक झारखंड के मुख्यमंत्री पद पर बने रहे. वहीं, जीतन राम मांझी 20 मई 2014 से 20 फरवरी 2015 तक बिहार के मुख्यमंत्री थे. मांझी को हटाने में नीतीश कुमार को काफी पापड़ बेलने पड़े थे. नीतीश कुमार ने 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी की हार की जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दिया था. खुद की जगह जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठाया था.

Tags: Champai soren, CM Hemant Soren, Hemant soren, Jharkhand news



Source link

x