145kg के रजत रथ पर निकले भगवान जगन्नाथ, 1 हजार वर्ष का दिखा इतिहास, विंटेज कार में आए स्वामी


इंदौर. मध्यप्रदेश के खूबसूरत शहर इंदौर में हर छोटा-बड़ा त्यौहार धूमधाम और उल्लास से मनाया जाता है. लेकिन कुछ पर्व विशेष होते है, जो इंदौर को एकता के सूत्र में बांधते हैं. उन्हीं में से एक है प्रभु वेंकटेश की रथयात्रा का. जगन्नाथपुरी की तर्ज पर इंदौर में भी आषाढ़ शुक्ल द्वितीया पर रविवार को रथयात्राएं निकाली गईं. लक्ष्मी वेंकटेश देवस्थान छत्रीबाग की रथयात्रा की हीरक जयंती होने से मंदिर ट्रस्ट ने खास तैयारी की. इसलिए यहां कई नवाचार नजर आए. झांकियों में रामानुज संप्रदाय के 1 हजार वर्ष का इतिहास दिखा. भगवान वेंकटेश को चांदी के रथ पर विराजित किया गया. इस रथयात्रा में आज पूरा शहर उत्साह से शामिल हुआ.

1948 में शुरू हुई थी रथयात्रा
इस रथयात्रा की शुरुआत 50 भक्तों ने 1948 में की थी. उस समय लकड़ी के रथ पर सवारी निकाली गई थी. साल दर साल भक्तों की ऐसी आस्था बढ़ती चली गई कि कर्फ्यू और कोरोना संक्रमण भी प्रभु के रथ के पहियों को रोक नहीं पाया. छत्रीबाग से शुरू हुई यात्रा नृसिंह बाजार, सीतलामाता बाजार, सराफा, पीपली बाजार, बर्तन बाजार, बजाजखाना चौक, सांठा बाजार होते हुए पुन: मंदिर पहुंची. यहां पुष्पों से सजे धजे रजत रथ में प्रभु वेंकटेश, श्री श्रीदेवी श्री भूदेवी के साथ रजत रथ पर विराजमान होकर भक्तों को दर्शन दे रहे थे. साथ ही अनेक भक्त रथ पर सिर टिकाकर प्रभु से मंगल कामना कर रहे थे, आशीर्वाद ले रहे थे. रास्ते भर अनेक जगह भक्तों द्वारा थाली सजाकर प्रभु की आरती व गुरुदेव का चरण पूजन किया. पूरे यात्रा मार्ग को भगवा ध्वज पताका ओर पुष्पों के द्वारा सजाया गया था. इसमें इंदौर की वर्ल्ड रिकॉर्ड होल्डर संस्था श्री हनुमंत ध्वज पथक ने भी बैंड की प्रस्तुति दी.

विन्टेज कार में नागुनेरी से पधारे स्वामी
रथयात्रा में 250 कार्यकर्ता देवस्थान टीम पूरे मार्ग पर व्यवस्था संभाल रहे थे. देवास से पधारे द्वारका दास मंत्री की भजन मंडली भक्तों के सैलाब के साथ भजनों की रस गंगा प्रवाहित कर रहे थे. इन सबके साथ नागोरिया पीठाधिपति स्वामी विष्णुप्रपन्नाचार्य महाराज पूरे लाव लश्कर छड़ी, छत्र के साथ एक बड़े से भक्तों के समुदाय में चल रहे थे ओर पूरे राह पर गुरुदेव का चरण पूजन स्वागत सत्कार किया. सुंदर सी सजीधजी विन्टेज कार में नागुनेरी से पधारे वानमामलै रामनुज जीयर स्वामी महाराज विराजमान हो भक्तों को दर्शन दे रहे थे.

भक्तों ने चांदी का रथ बनवा दिया
नागोरिया पीठाधीपति स्वामी विष्णुप्रपन्नाचार्य महाराज के मुताबिक शुरुआती तीन वर्ष तक बाहर से रथ मंगवाया जाता था, फिर भक्तों ने चांदी का रथ बनवा दिया. इस रजत रथ पर प्रभु वेंकटेश आरूढ़ होकर भक्तों को दर्शन देने निकलें. 145 किलो के रजत रथ को अनेक श्रद्धालु भारतीय वेशभूषा धारण कर हाथों से खींचते हुए चले. प्रभु के आगे महिला दल उनकी अगवानी में मार्ग को साफ करते हुए चला. रथ यात्रा में विभिन्न झांकियों के माध्यम से प्रभु भक्ति, गो माता, मां अहिल्याबाई का 300वां वर्ष, हरियाली, जल संरक्षण, व दक्षिण भारत के वाद्य यंत्रों की झलक नजर आई. पूरे यात्रा मार्ग में सैकड़ों मंचों से रथ पर फूल बरसाए गए. जहां जहां से रथ निकला, वहां पुनः सफाई शुरू हो गई.

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