20 साल पहले मेले में बिछड़ा था, ढूंढते-ढूंढते मर गए मां और भाई, परिवार से ऐसे मिला, भर आएंगी आंखें


कैमूर. कभी परिवार के साथ दशहरा घूमने के लिए अपने गांव से बाहर आए शख्‍स की 20 साल बाद घर वापसी हुई है. यह शख्‍स मानसिक रूप से कमजोर है और बोल नहीं पाता है. लोग इसे गूंगा के नाम से जानते हैं. यह शख्‍स अखलासपुर बस स्टेंड के पास लिट्टी चोखा की दुकान में काम करता था. बुधवार को उसके परिजन यहां पहुंचे और उसे अपने साथ ले गए. हालांकि इसके लिए उन्‍हें पुलिस की मदद लेनी पड़ी. एएसआई शीतल राय ने कहा कि पुलिस ने कागजी खानापूर्ति करने के बाद शख्‍स को परिवार के साथ जाने दिया.

अखलासपुर बस स्टेंड पर अपने परिवार के सदस्‍य को पहचानने वाली उस शख्‍स की भाभी सुईया रानी ने बताया कि दशहरा मेले में खो जाने के बाद से परिवार में हमेशा दुख रहता था. परिवार में मां बच्‍चे की याद में रोते-रोते और उसकी खोज करते-करते मर गईं. ऐसा ही एक भाई भी मर गया. जहां खबर मिलती थी, तुरंत भागे-भागे जाते थे. भभुआ शहर में ही दशहरा मेला देखने के लिए आए थे. यह शख्‍स कुछ भी कह नहीं पाता है, मानसिक रूप से कमजोर है. इसलिए अपने घर नहीं लौट पाया था.

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गांव के लोगों ने दी जानकारी तो दौड़े चले आए
परिजनों ने कहा कि बीते 20 सालों से जब जहां की खबर मिलती थी तब वहां जाकर तलाशते थे. इस बार भभुआ शहर के अखलासपुर बस स्‍टैंड की लिट्टी चोखा की दुकान का पता चला था. यहां जब पहुंचे तो देखते ही पहचान गए. जब हम उन्‍हें ले जाने लगे तो दुकानदार लक्ष्‍मण मल्‍लाह आपत्ति करने लगा. उसने अपनी दुकान के कामकाज के लिए रख छोड़ा था. इसके बाद परिजन थाने पहुंचे, पुलिस लेकर दुकान पर आए. इसके बाद लिखापढ़ी हुई और पुलिस ने शख्‍स को परिजनों को सौंप दिया. वह हमारे परिवार हैं; हम उन्हें खुशी-खुशी रखेंगे.

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2013 से ही यहां दुकान पर रहता था, हमने देखभाल की
लिट्टी दुकान मालिक लक्ष्मण मल्लाह ने बताया कि यह 2013 में हमारे दुकान के पास अपने आप आकर खड़ा था जो की फटा पुराना कपड़ा पहना हुआ था और समय बीतता गया लेकिन यह यहां से कहीं नहीं गया. इसके बाद मैंने लिट्टी दिया तो खाया. उसके बाद यहीं रहने लगा. इसका मैं इलाज वगैरा भी तबीयत खराब होने पर कराता था. अब परिजन आए हैं ले जाने के लिए लेकिन मुझे विश्वास नहीं हुआ. इसके बाद पुलिस आई तो मैंने पुलिस के सामने उनके परिजनों को सौंप दिया. मुझे भी खुशी है कि इनका परिवार मिल गया.

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