2024 लोकसभा चुनाव में भाजपा खेल सकती है यह दांव… 3 नए कानूनों पर होगी बात, आतंकवाद के खिलाफ करेगी प्रचार



BJP flag 2024 लोकसभा चुनाव में भाजपा खेल सकती है यह दांव... 3 नए कानूनों पर होगी बात, आतंकवाद के खिलाफ करेगी प्रचार

रिपोर्ट – अनिन्द्य बनर्जी/अंकुर शर्मा

नई दिल्ली. 2019 में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब मतदाताओं के बीच अगले कार्यकाल के लिए वोट मांगने के लिए पहुंचे तो हर मंच पर बहुचर्चित बालाकोट की बात की गई. यह वही हवाई हमला था जिसमें भारतीय वायु सेना ने पुलवामा हमले के जवाब के तौर पर 12 मिराज 2000 लड़ाकू विमानों से किया था. इस हमले में भारतीय वायु सेना ने पाकिस्तान के काफी अंदर घुस कर यानी नियंत्रण रेखा (एलओसी) को पार कर पाकिस्तान के बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम) के आतंकी शिविर को ध्वस्त कर दिया था.

राष्ट्रीय चुनाव से ठीक पहले रैलियों में भाजपा के लिए यह एयर स्ट्राइक तुरुप का इक्का साबित हुई और पार्टी को 303 सीटें हासिल हुईं. लेकिन 2024 में, जबकि समान नागरिक संहिता (यूसीसी) फिलहाल ठंडे बस्ते में है, ऐसे में भाजपा के लिए बालाकोट की तरह कौन सा ट्रंप कार्ड होगा? जबकि राम मंदिर और अनुच्छेद 370 और 35ए को निरस्त करना चुनावी चर्चा पर हावी रहेगा, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने बंद दरवाजों के पीछे से कहीं यह संकेत दिया है कि इससे बात नहीं बनेगी.

3 स्वदेशी कानूनों का साहसिक प्रदर्शन
हालांकि फिलहाल अगले साल भाजपा के मुख्य चुनावी मुद्दों की भविष्यवाणी करना जल्दबाजी होगी. सत्तारूढ़ दल सदियों पुराने अधिनियमों- भारतीय दंड संहिता, आपराधिक प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह तीन स्वदेशी कानूनों को लाए जाने की बात कर सकती है. वैसे अभी इन कानूनों का पारित होना बाकी है. जिसे भाजपा सूत्र ‘राष्ट्र-विरोधियों’, ‘टुकड़े-टुकड़े’ गिरोह और जिन्हें मंत्री ‘अंदरूनी दुश्मन’ कहते हैं, उनके खिलाफ मोदी सरकार का उठाया गया “साहसिक” कदम बता रहे हैं.

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लोकसभा में पर्याप्त संख्या और राज्यसभा में मित्र दलों के समर्थन के साथ जैसा कि मानसून सत्र में दिल्ली सेवा विधेयक के मामले में देखा गया था इस साल के अंत में शीतकालीन सत्र में तीन विधेयकों को पारित कराना सरकार के लिए कोई सिरदर्द नहीं होगा. और तो और, गृह मामलों की विभाग-संबंधित स्थायी समिति ने गुरुवार से लगातार तीन दिनों तक इन विधेयकों पर एक बैठक बुलाई है. गुरुवार को केवल आधे घंटे को छोड़कर, बाकी वक्त गृह सचिव द्वारा ‘भारतीय न्याय संहिता 2023’ ‘भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023’; और ‘भारतीय साख्य विधेयक 2023’ पर प्रस्तुति के लिए रखा गया है. दिलचस्प बात यह है कि पिछले सप्ताहांत केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सभी सदस्यों को अचानक ‘रात्रिभोज’ के लिए बुलाया था, जहां अनौपचारिक रूप से उन्हें विधेयकों के अधिनियम बनने के महत्व के बारे में बताया गया.

3 कानूनों को लेकर शहर-शहर जाएगी भाजपा
समिति के सदस्य और बीजेपी सांसद दिलीप घोष ने News18 को बताया कि समूह का लक्ष्य अपनी रिपोर्ट “जल्द से जल्द” संसद को सौंपना है.घोष ने कहा, “यह पोर्टल में होगा ताकि विवरण सभी के लिए उपलब्ध हो सके. हमारी कोशिश रहेगी कि लोगों को इसके बारे में बता सकें.” हालांकि यह कानूनी रूप से जटिल हो सकता है, लेकिन आम लोगों के लिए बारीकियों को समझना जरूरी है क्योंकि इससे उन्हें ही फायदा होगा. पिछले सप्ताहांत शाह के निर्देश के बारे में पूछे जाने पर, घोष ने कहा, “उन्होंने हमें सभी हितधारकों की बात सुनने और प्रक्रिया को जल्द से जल्द पूरा करने के लिए कहा है.” समिति के एक अन्य सदस्य और खरगोन (मध्य प्रदेश) से भाजपा के लोकसभा सांसद, गजेंद्र सिंह पटेल ने आत्मविश्वास के साथ कहा, “निश्चित तौर पर.” जब उनसे पूछा गया कि क्या तीन विधेयकों को आगामी संसद सत्र में अधिनियम बनाया जा सकता है. उन्होंने कहा कि भाजपा पिछले नौ वर्षों में सरकार के कल्याणकारी उपायों के साथ-साथ इनके लाभों के बारे में भी शहर-शहर जाकर बताएगी. सरकार ने पहले ही इन कदमों को कानूनी प्रक्रिया पर “औपनिवेशिक छाप” से दूर जाने के रूप में पेश किया है. 26/11 या भीमा कोरेगांव जैसे आतंकी मामलों की जांच के लिए राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा लैपटॉप और मोबाइल फोन की जब्ती के साथ, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल रिकॉर्ड, ईमेल, सर्वर लॉग और स्मार्टफोन या लैपटॉप संदेशों को साक्ष्य अधिनियम के नए अवतार में शामिल किया गया है. इससे एजेंसियों को विदेशी आतंकवादियों के साथ-साथ ‘टुकड़े-टुकड़े’ गिरोह से निपटने के लिए और अधिक ताकत मिलती है. भारत की संप्रभुता को खतरे में डालने वाले अलगाववाद से निपटने के लिए पहली बार आतंकवाद को परिभाषित किया गया है और इसमें नई धाराएं जोड़ी गई हैं.

गृह मंत्रालय का नजरिया
गृह मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि इन विधेयकों को पेश करने का मकसद कानूनी प्रक्रिया पर ‘औपनिवेशिक’ छाप को खत्म करना है. सीआरपीसी और आईपीसी सहित वर्तमान कानून 160 साल पहले बनाए गए थे और इनका उद्देश्य लंदन में ब्रिटिश और उनकी सरकार के हितों की रक्षा करना था. इसी तरह, राजद्रोह हटाने का कारण यह था कि यह जनता के खिलाफ था. इसका उद्देश्य आम आदमी के मानवाधिकारों की बजाय ब्रिटिश शासन को सर्वोपरि बनाना था. बदलाव लाने का एक अन्य कारण लंबित मामलों को कम करना है क्योंकि देरी की वजह से निर्दोषों को भी सजा मिल रही है. आईपीसी, सीआरपीसी और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जटिल प्रक्रियाओं के कारण बड़ी संख्या में मामले लंबित हैं.

हालांकि, राजनीतिक रूप से कहें तो, मोदी सरकार- इन विधेयकों के जरिये- चाहती है कि लोग आतंकवाद, अलगाववाद और कुख्यात अपराधियों पर उनका सख्त रुख देखें. इसलिए, भाजपा इन विधेयकों को सरकार के ‘साहसिक अवतार’ के रूप में पेश कर सकती है.

Tags: 2024 Lok Sabha Elections, Amit shah, BJP, CrPC, IPC, PM Modi



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