2024 general election political parties get symbols know all the rules related to Election Commission


देश में लोकसभा चुनाव की तैयारी जारी है. सभी राजनीतिक दल अपने उम्मीदवारों का नाम लगभग तय कर चुके हैं. चुनाव आयोग के अधिकारी भी शांति और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए तैयारियों को अंतिम रूप दे रहे हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि किसी भी राजनीतिक दल को उनका सिंबल या चुनाव चिन्ह कैसे मिलता है? आज हम आपको बताएंगे कि किसी भी राजनीतिक पार्टी को चुनाव चिन्ह कैसे मिलता है. 

राजनीतिक पार्टी

बता दें कि अभी ताजा मामला महाराष्‍ट्र के राजनीतिक दल राष्‍ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और उसके मुखिया शरद पवार का है. दरअसल देश की शीर्ष अदालत ने बड़ी राहत देते हुए लोकसभा और विधानसभा चुनावों में शरद पवार को पार्टी का नाम एनसीपी-शरदचंद्र पवार इस्‍तेमाल करने की अनुमति दे दी है. इससे ये साफ है कि अब लेाकसभा चुनाव 2024 में शरद पवार की पार्टी नए नाम के साथ मैदान में उतरेगी. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट का ये आदेश उनके भतीजे अजित पवार के गुट के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है. वहीं शीर्ष अदालत ने चुनाव चिह्न को लेकर भी शरद पवार गुट के पक्ष में ही फैसला दिया है.

चुनाव चिन्ह

दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को आदेश दिया है कि राष्‍ट्रवादी कांग्रेस पार्टी शरदचंद्र पवार के चुनाव चिह्न ‘तुरही बजाते आदमी’ को मान्‍यता दिया जाए. आसान भाषा में अब भारतीय निर्वाचन आयोग ये चुनाव चिह्न किसी भी दूसरी पार्टी को आवंटित नहीं कर सकता है. लेकिन सवाल ये है कि पार्टियों के नाम को मान्‍यता कौन देता है? वहीं  चुनाव आयोग किन शर्तों के आधार पर सियासी दलों को चुनाव चिह्न आवंटित करता है? क्‍या कोई पार्टी अपने मनपसंद सिंबल की मांग कर सकता है?

कैसे राजनीतिक पार्टी को मिलता है चुनाव चिह्न

चुनाव आयोग ‘द इलेक्‍शन सिंबल (रिजर्वेशन एंड अलॉटमेंट) ऑर्डर, 1986 के तहत सियासी दलों को चुनाव चिह्न आवंटित करता है. हालांकि चुनाव चिह्न पाने के लिए भी सियासी दलों को कुछ नियमों और शर्तों को पूरा करना होता है. जानकारी के मुताबिक निर्वाचन आयोग के पास 100 से ज्‍यादा चुनाव चिह्न रिजर्व में रहते हैं. ये चिह्न अब तक किसी भी पार्टी को नहीं दिए गए हैं. जब भी चुनाव चिह्न जारी करने का समय आता है, तो चुनाव आयोग उनमें से एक पार्टी के लिए जारी करता है. हालांकि जब पार्टी किसी खास चिह्न की मांग करती है, तो आयोग उस पर भी विचार करता है.

नहीं मिलते हैं ये सिंबल

राजनीतिक पार्टियों को पशु-पक्षियों की फोटो वाले चुनाव चिह्न नहीं दिया जाता है. पशु अधिकारों की पैरवी करने वाले कार्यकर्ताओं ने इसका विरोध किया था. दरअसल पार्टियां प्रचार के दौरान अपने सिंबल वाले पशु-पक्षियों की परेड कराने लगती थी. इस कारण पशु अधिकार कार्यकर्ताओं ने इसे क्रूरता बताया था. इसके बाद चुनाव आयोग ने ऐसे चिह्नों पर रोक लगा दी थी. वहीं अगर सियासी दल की ओर से मांगा गया खास चुनाव चिह्न किसी दूसरी पार्टी को आवंटित नहीं होता है, तो निर्वाचन आयोग उसको जारी कर सकता है. 

 

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