267 Or 176 On Manipur Violence Opposition Vs Centre Over Parliament Rules – 267 या 176 : मणिपुर हिंसा पर केंद्र सरकार और विपक्ष संसद में आमने-सामने
लोकसभा की बैठक शुरू होते ही विपक्षी दलों के सदस्य खड़े हो गये. कांग्रेस, द्रमुक और वाम दलों सहित सदस्यों ने नारे लगाए और अध्यक्ष ओम बिरला से कहा कि “मणिपुर में खून बह रहा है”. स्पीकर ने विपक्षी सदस्यों से कहा कि नारेबाजी से समस्या का कोई समाधान नहीं निकलेगा, बल्कि संवाद और चर्चा से ही समाधान निकल सकता है. उन्होंने कहा, “यह अच्छा नहीं है. बातचीत से ही समाधान निकाला जा सकता है.”
राज्यसभा में सभापति जगदीप धनखड़ ने कार्यवाही दोपहर 2:30 बजे तक के लिए स्थगित कर दी, क्योंकि तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ओ’ब्रायन ने गुरुवार को सदन की कार्यवाही से कुछ शब्दों को हटाने पर व्यवस्था का प्रश्न उठाने की मांग की.
दरअसल, केंद्र सरकार नियम 176 के तहत चर्चा कराने को तैयार हो गई, लेकिन विपक्ष नियम 267 के तहत चर्चा कराने की मांग पर अड़ा रहा है. राज्यसभा में कांग्रेस के उप नेता प्रमोद तिवारी ने नियम 267 के तहत दिए गए नोटिस में मणिपुर के विषय पर चर्चा की मांग की और यह भी कहा कि प्रधानमंत्री को सदन में बयान देना चाहिए. बता दें कि राज्यसभा रूल बुक के मुताबिक, कोई भी सदस्य सभापति की सहमति से नियम 267 के तहत प्रस्ताव कर सकता है. वह प्रस्ताव ला सकता है कि उस दिन की परिषद के समक्ष सूचीबद्ध एजेंडे को निलंबित किया जाए.
संसदीय रिकॉर्ड बताते हैं कि 1990 से 2016 के बीच 11 बार ऐसे मौके आए, जब विभिन्न चर्चाओं के लिए इस नियम का इस्तेमाल किया गया. आखिरी उदाहरण 2016 का है, जब तत्कालीन सभापति हामिद अंसारी ने “मुद्रा के विमुद्रीकरण” पर बहस की अनुमति दी थी. धनखड़ ने पहले कहा था कि उनके पूर्ववर्ती वेंकैया नायडू ने अपने छह साल के कार्यकाल के दौरान इस नियम के तहत एक भी नोटिस स्वीकार नहीं किया था.
नियम 267 सांसदों के लिए सरकार से सवाल पूछने और प्रतिक्रिया मांगने का एकमात्र तरीका नहीं है. वे प्रश्नकाल के दौरान किसी भी मुद्दे से संबंधित प्रश्न पूछ सकते हैं, जिसमें संबंधित मंत्री को मौखिक या लिखित उत्तर देना होता है. कोई भी सांसद शून्यकाल के दौरान इस मुद्दे को उठा सकता है. हर दिन 15 सांसदों को शून्यकाल में अपनी पसंद के मुद्दे उठाने की अनुमति होती है. कोई सांसद इसे विशेष उल्लेख के दौरान भी उठा सकता है. एक अध्यक्ष प्रतिदिन 7 विशेष उल्लेखों की अनुमति दे सकता है.
नियम 176 पर सरकार के आग्रह को मणिपुर मुद्दे, जिसके कारण उन्हें काफी सार्वजनिक शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा है, को संसद में आगे नहीं बढ़ने देने की रणनीति के रूप में देखा जा सकता है. धनखड़ ने कल कहा, “विभिन्न सदस्यों द्वारा नियम 176 के तहत मणिपुर के मुद्दों पर अल्पकालिक चर्चा की मांग की गई है. सदस्य मणिपुर के मुद्दों पर चर्चा में शामिल होने के इच्छुक हैं. इन चर्चाओं के तीन चरण हैं. एक, सदन का प्रत्येक सदस्य अल्पकालिक चर्चा के लिए नोटिस देने का हकदार है. मैंने उन नोटिसों पर विचार किया है, लेकिन नियम के आदेश के तहत, मुझे सदन के नेता से तारीख और समय की सलाह लेनी होगी.”
नियम 176 किसी विशेष मुद्दे पर अल्पकालिक चर्चा की अनुमति देता है, जो ढाई घंटे से अधिक नहीं हो सकती. इसमें कहा गया है, “अत्यावश्यक सार्वजनिक महत्व के मामले पर चर्चा शुरू करने का इच्छुक कोई भी सदस्य अध्यक्षको स्पष्ट रूप से और सटीक रूप से उठाए जाने वाले मामले को लिखित रूप में नोटिस दे सकता है, बशर्ते नोटिस के साथ एक व्याख्यात्मक नोट होगा, जिसमें विचाराधीन मामले पर चर्चा शुरू करने के कारण बताए जाएंगे. साथ ही नोटिस को कम से कम दो अन्य सदस्यों के हस्ताक्षर द्वारा समर्थित किया जाएगा.”
नियम 176 के अनुसार, मामले को तुरंत, कुछ घंटों के भीतर या अगले दिन भी उठाया जा सकता है. हालांकि, नियम स्पष्ट है कि अल्पकालिक चर्चा के तहत कोई औपचारिक प्रस्ताव या मतदान नहीं किया जाएगा.
संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने विपक्ष पर निशाना साधा और कहा, “विपक्ष के कई सदस्यों ने नियम 176 के तहत अल्पकालिक चर्चा का नोटिस दिया था. उन्होंने सोचा था कि हम सहमत नहीं होंगे. हम चर्चा के लिए सहमत हुए. फिर, उन्हें कार्यवाही को बाधित करने का एक और बहाना मिल गया. यह उनका रवैया है.
हालांकि, संसदीय कार्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने आज दावा किया कि विपक्ष जानबूझकर मणिपुर पर चर्चा नहीं चाहता है. उन्होंने कहा, “वे बार-बार अपना रुख बदल रहे हैं और नियमों का हवाला दे रहे हैं.” उन्होंने कहा कि केंद्र मणिपुर पर चर्चा के लिए तैयार है. गृह मंत्री इस पर जवाब देंगे.
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