8 साल की उम्र में गंवाया पैर, पर नहीं हैं किसी के मोहताज, पेरिस पैरालंपिक में लगाएंगे गोल्ड पर निशाना


नई दिल्ली. रुद्रांश खंडेलवाल पेरिस पैरालंपिक में गोल्ड मेडल जीतने के इरादे से उतर रहे हैं. यह पैरा निशानेबाज रुद्रांश का पहला पैरालंपिक है. 8 साल की उम्र में हादसे में एक पैर गंवाने वाले रुद्रांश कहते हैं- उनके जीवन का मंत्र है – किसी भी परिस्थिति के लिए तैयार रहना और अपनी क्षमता पर भरोसा बनाए रखना. भरतपुर के इस किशोर ने विकलांगता को जीवन के सफर में आड़े नहीं आने दिया. वे निशानेबाजी में शानदार प्रदर्शन करते हुए 50 मीटर पिस्टल (एसएच1) में नंबर एक स्थान पर पहुंच गए.

अब रुद्रांश खंडेलवाल का लक्ष्य अपने पहले पैरालंपिक में स्वर्ण पदक जीतना है. अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए वह कोई भी कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं जिसमें एक अतिरिक्त पिस्टल के साथ अपने कृत्रिम पैर के लिए एक ‘टूल-किट’ भी शामिल है ताकि अगर यह टूट जाए तो इससे मदद मिल सके. बुधवार से शुरू हो रहे पैरालंपिक में रुद्रांश से मेडल की उम्मीद है.

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मनु से सीखा सबक, साथ रखते हैं एक्स्ट्रा पिस्टल
टोक्यो ओलंपिक के दौरान निशानेबाज मनु भाकर को पिस्टल की खराबी से जूझते देखना रुद्रांश खंडेलवाल के लिए ‘सबक’ था जिससे वह अब घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों प्रतियोगिताओं के लिए हमेशा एक अतिरिक्त पिस्टल साथ रखते हैं. उन्होंने कहा, ‘टूर्नामेंट के दौरान पिस्टल की खराबी के बाद आप कितनी जल्दी दूसरी अतिरिक्त पिस्टल का इस्तेमाल करके निशाना लगा सको. मैं टूर्नामेंट में हर स्थिति के लिए खुद को तैयार रखता हूं. उन्होंने कहा, ‘अगर कोई प्रतिकूल स्थिति आती है तो मैं उससे निपटने के लिए तैयार रहूं.’

चचेरी बहन की शादी में हुआ था हादसा
रुद्रांश खंडेलवाल का पैर 2015 में भरतपुर में चचेरी बहन की शादी के दौरान आतिशबाजी देखते समय हुई घटना के कारण कट गया था. उन्होंने बताया, ‘आतिशबाजी को कंट्रोल करने वाले इलेक्ट्रॉनिक गैजेट में शॉर्ट-सर्किट हुआ और एक उड़ती हुई धातु की प्लेट ने घुटने के ठीक नीचे मेरे बाएं पैर को काट दिया. मुझे तुरंत भरतपुर के एक अस्पताल में ले जाया गया, जहां से मुझे जयपुर और फिर गुरुग्राम के एक अस्पताल में रेफर कर दिया गया लेकिन मेरा पैर नहीं बचाया जा सका. इसलिए बस कृत्रिम पैर ही लगाया जा सकता था.’

रुद्रांश खंडेलवाल कहते हैं कि छह महीने बाद जीवन सामान्य हो गया, लेकिन उनकी मां की सबसे बड़ी चिंता यह थी कि वे अवसाद का शिकार ना हो जाएं. उनकी मां भरतपुर विश्वविद्यालय में ‘लेक्चरर’ हैं. उन्होंने रुद्रांश को व्यस्त रखने के लिए विकल्प तलाशने शुरू कर दिए.  रुद्रांश ने कहा, ‘‘उन्हें लगा कि खेल मुझे अवसाद में जाने से बचाने का एक अच्छा तरीका होगा. उन्होंने मुझे निशानेबाजी में शामिल करने के विकल्प को देखा.’ रुद्रांश ने अपने कोच सुमित राठी की मदद से शुरूआत की और यहां तक पहुंचे. (इनपुट भाषा)

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