After SC Struck Down Electoral Bonds Scheme It May Lead To Quid Pro Quo Arrangements Political Parties – चुनावी बॉन्ड के सुप्रीम फैसले पर दूसरे विकल्प देख रही सरकार, अध्यादेश पर अभी विचार नहीं : सूत्र



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इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम पर रोक लगाने के फैसले के एक दिन बाद सरकार ने कहा है कि वह सुप्रीम कोर्ट के फैसले को स्टडी कर रही है. इस बीच सूत्रों ने NDTV को बताया कि सरकार दूसरे विकल्पों पर भी विचार कर रही है. क्योंकि सरकार इस समय देश की सर्वोच्च अदालत के फैसले को खारिज करने का कदम नहीं उठाएगी. 

सूत्रों ने यह भी कहा कि सरकार काले धन की वापसी के बारे में भी फिक्रमंद है. वहीं, डोनर्स की पहचान उजागर करना बैंकिंग के कानूनों के खिलाफ भी होगा. सूत्रों ने कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड 2017 से पहले ‘काले धन की मात्रा को कम करने’ के लिए लाए गए थे. ये पॉलिटिकल फंडिंग को ‘अस्थिर स्थिति से बेहतर स्थिति’ की ओर ले गए.

सूत्रों ने कहा, “एक दूसरे मॉडल, जिसके तहत ट्रस्ट कंपनियों और व्यक्तियों से मिले फंड को राजनीतिक दलों में बांटा जाता था, उसका भी अध्ययन किया गया है. लेकिन इसमें खामियां पाई गई हैं.” सरकारी सूत्रों ने कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम का मकसद ‘डोनर्स को कंफर्ट’ देना था.

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SC के फैसले पर BJP ने क्या कहा?

सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर BJP के सीनियर नेता रविशंकर प्रसाद ने कहा, “इलेक्टोरल बॉन्ड पार्टी के चुनावों को पारदर्शी बनाने के ईमानदार प्रयासों का हिस्सा थे, लेकिन हम अदालत के आदेश का सम्मान करेंगे.”

हालांकि, रविशंकर प्रसाद ने कोर्ट के आदेश के आखिरी कुछ पैरा का जिक्र करते हुए कहा कि पार्टी को अपना अगला कदम तय करने से पहले इस आदेश के विस्तृत अध्ययन की जरूरत है.

विपक्ष ने क्या कहा?

कांग्रेस ने फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड ने ‘नोट’ पर ‘वोट’ की शक्ति को मजबूत किया है. पार्टी के सीनियर नेता और पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने कहा, “अवैध इलेक्टोरल बॉन्ड का बचाव करने के लिए लोगों के जानने के अधिकार को सभी कानूनी तर्कों से ऊपर रखा गया है.”

आम आदमी पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को पारदर्शी चुनाव सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया है. जबकि इस मामले में याचिकाकर्ता भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) ने कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड “राजनीतिक भ्रष्टाचार का वैधीकरण” है. CPM एकमात्र ऐसी पार्टी थी, जो इस तरह का चंदा स्वीकार नहीं करती थी.

इलेक्टोरल बॉन्ड पर क्या है सुप्रीम कोर्ट का फैसला?

गुरुवार को मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम काले धन पर अंकुश लगाने का एकमात्र तरीका नहीं हो सकता. चीफ जस्टिस ने कहा, ‘पॉलिटिकल प्रोसेस में राजनीतिक दल अहम यूनिट होते हैं. वोटर्स को चुनावी फंडिंग के बारे में जानने का अधिकार है, जिससे मतदान के लिए सही चयन होता है.’

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इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को असंवैधानिक करार दिया जाता है, क्योंकि इससे लोगों के सूचना के अधिकार का उल्लंघन होता है और इसमें देने के बदले कुछ लेने की गलत प्रक्रिया पनप सकती है. चुनावी चंदा देने में लेने वाला राजनीतिक दल और फंडिंग करने वाला, दो पार्टियां शामिल होती हैं. ये राजनीतिक दल को सपोर्ट करने के लिए होता है या फिर कंट्रीब्यूशन के बदले कुछ पाने की चाहत हो सकती है.

अदालत ने कहा कि राजनीतिक चंदे की गोपनीयता के पीछे ब्लैक मनी पर नकेल कसने का तर्क सही नहीं. यह सूचना के अधिकार का उल्लंघन है. निजता के मौलिक अधिकार में नागरिकों के राजनीतिक जुड़ाव को भी गोपनीय रखना शामिल है.

इलेक्टोरल बॉन्ड क्या हैं?

इलेक्टोरल बॉन्ड एक तरह से फाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंट होते हैं. ये व्यक्तियों और/या व्यवसायों या राजनीतिक दलों को गुमनाम दान देने की अनुमति देते हैं. 2017 के बजट में उस वक्त के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने चुनावी या इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को पेश किया था. 2 जनवरी 2018 को केंद्र सरकार ने इसे नोटिफाई किया. ये एक तरह का प्रोमिसरी नोट होता है, जिसे बैंक नोट भी कहते हैं. इसे कोई भी भारतीय नागरिक या कंपनी खरीद सकती है. इलेक्टोरल बॉन्ड स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की चुनी हुई ब्रांच में मिलता है. 

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BJP को मिला सबसे ज्यादा चंदा

चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, 2016 और 2022 के बीच 16,437.63 करोड़ रुपये के 28,030 इलेक्टोरल बॉन्ड बेचे गए. 2018 से अब तक इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए सबसे ज्यादा चंदा BJP को मिला है. 6 साल में चुनावी बॉन्ड से BJP को 6337 करोड़ की फंडिंग हुई. कांग्रेस को 1108 करोड़ चुनावी चंदा मिला. वास्तव में चुनाव आयोग की लिस्ट में शामिल 30 पार्टियों को कुल मिलाकर जितना दान मिला, उसका तीन गुना अकेले BJP को मिला है.

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