ancient temple of Vibhishan exists in Kaithoon of kota statue is sinking in the ground by a grain


कोटा. कैथून नगर आज कोटा शहर का ही उपनगर बन गया है. लेकिन, इसका इतिहास कोटा के बसने से भी हजारों साल पुराना है. यहां बेहद प्राचीन विभीषण मंदिर है, जो देश का एकमात्र मंदिर है. आज से 60 साल पहले गोरखपुर से प्रकाशित “कल्याण” पत्रिका ने भारत के प्रसिद्ध तीर्थ कैथून के विभीषण मंदिर का जिक्र करते हुए इसे देश का इकलौता मंदिर बताया था.

मंदिर ट्रस्ट के हरिओम पुरी ने लोकल 18 को बताया कि इस मंदिर का महत्व इसी बात से प्रमाणित है कि यहां एक विशाल चबूतरे पर विशाल छतरी के मध्य महाराज विभीषण जी की विशाल प्रतिमा है. जिसका धड़ से ऊपर का भाग दिखाई देता है. शेष भाग जमीन में धंसा हुआ है.

हर साल दाने के बारबर धंसती जा रही है प्रतिमा

लोगों का कहना है कि यह प्रतिमा भी हर साल दाने के बराबर जमीन में धंसती जा रही है. छतरी के बारे में कहा जाता है कि इसे महाराव उम्मेद सिंह प्रथम सन 1770-1821 ने बनवाया था. मंदिर के समीप एक प्राचीन कुंड है. जिसके पास विक्रम संवत 1815 का शिलालेख लगा हुआ है. जिसका जीर्णोद्धार महाराजा दुर्जन सिंह के समय गौतम परिवार ने करवाया था. उसी गौतम परिवार के सदस्य आज भी नवरात्र के दौरान यहां पूजा करने आते हैं. उन्होंने बताया कि धर्म का साथ देने की वजह से ही विभीषण का मंदिर कैथून में बना हो, ऐसा नहीं है इसके पीछे भी एक प्राचीन किवदंती है. दशरथ नंदन श्री राम के राज्याभिषेक के समय समस्त लोकों से देवी-देवता, ऋषि-मुनि, राजा-महाराजा अयोध्या पधारे थे. इस अवसर पर भगवान शंकर ने हनुमान जी से भारत भ्रमण की इच्छा व्यक्त की. इस वार्तालाप को विभीषण ने सुना तो उन्होंने निवेदन किया कि आप दोनों को कांवड़ में बिठाकर यात्रा करने की इच्छा रखता हूं.

भगवान शंकर ने विनती कर ली थी स्वीकार

रामस्नेही विभीषण की यह विनती स्वीकार कर ली. लेकिन, साथ ही यह शर्त भी लगा दिया कि इस यात्रा के दौरान कावड़ जहां भी भूमि से टिक जाएगी, वहां यात्रा समाप्त हो जाएगी. विभीषण ने लकड़ी की एक विशाल कांवड़ जिसकी एक सिरे से दूसरे सिरे की लंबाई 8 कोस यानी 32 किलोमीटर थी. इस के एक पल्ले में भगवान शंकर और दूसरे में हनुमान जी को बिठाकर विभीषण जब प्राचीन नगर कौथुनपुर या कनकपुरी से गुजर रहे थे, तो उसी समय भगवान महादेव वाला जमीन पर टिक गया. यह स्थान कैथून से चार कोस यानी 16 किलोमीटर दूर स्थित चार चोमा में है. यहां भगवान महादेव ने अपनी यात्रा समाप्त कर दी. यहां चोमेश्वर महादेव के नाम से अति प्राचीन मंदिर स्थित है. मंदिर की सीढ़ियों के बाई और कावड़ का अभी भी रखा हुआ है. कावड़ का दूसरा पलड़ा जिसमें हनुमान जी बैठे हुए थे, कोटा में रंगबाड़ी नामक स्थान पर आकर टीका. यहां भी हनुमान जी का वैभवशाली मंदिर स्थित है.

सिविल सर्विसेस परीक्षाओं में बढ़ाया मान

हरिओम पुरी ने बताया कि इस मंदिर का महत्व इसी बात से प्रमाणित है कि इंडियन सिविल सर्विस और आरएएस की परीक्षा में पूछा जाता है कि भारत का एकमात्र विभीषण मंदिर कहां स्थित है? सदियों से प्रचलित एक कहावत है घर की भेदी लंका ढाए कहावत में राम भक्त विभीषण की छवि को चिरस्थाई नुकसान पहुंचाया है. धर्म और अधर्म का युद्ध चिरंतन है. हर मनुष्य को हर काल में इस दुविधा से गुजरना पड़ता है. राम और रावण के बीच युद्ध हुआ तो विभीषण ने धर्म का साथ दिया. यहां तक कि अपने कुटुंब के रिश्तो की भी बलि चढ़ा दी. विभीषण ना होते तो रावण का वध कदाचित नामुमकिन था.

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