Be It Acting Or Writing, Both Give You A Chance To Express Yourself: Divya Dutta – एक्टिंग हो या लेखन, दोनों ही देते हैं खुद को एक्सप्रेस करने का मौका : दिव्या दत्ता



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पंजाब के लुधियाना से निकलकर फिल्म और लेखन में अपना स्थान बनाने के लिए किए गए संघर्ष के बारे में सवाल पर दिव्या दत्ता ने कहा कि, ”मैंने कभी संघर्ष शब्द का इस्तेमाल नहीं किया. जिंदगी के उतार-चढ़ाव आपका एक हिस्सा हैं. मैं अलग बैकग्राउंड से आई थी, क्योंकि पंजाब में मेरे सारे परिवार वाले डॉक्टर थे. मेरे पिता को मैंने जल्दी खो दिया था. मुझे शुरू से एक्टर बनना था.” 

उन्होंने कहा कि, ”बच्चन साहब (अमिताभ बच्चन) को देखकर लगता था कि मुझे भी यहीं जाना है. एक फिल्म मैगजीन मैं पढ़ रही थी, उसमें टेलेंट हंट था. मैंने उसका फॉर्म भरा, फिर मेरा सिलेक्शन हो गया. यश चोपड़ा जैसे बड़े-बड़े लोग वहां थे. उन्होंने फिर मेरे सिलेक्शन किया. फिर में मुंबई आई.”  

दिव्या दत्ता ने कहा कि, ”हमारी (फिल्म) इंडस्ट्री में कोई किसी को नाराज नहीं करता है. मैं सबको प्यारी लगती थी. सब कहते थे कि आप हमारी फिल्म कर रही हैं. तो मैंने अपनी मां को फोन करके कहा कि मैं 22 फिल्में कर रही हूं. बाद में पता चला कि इनमें से एक भी नहीं हुई. फिर मुझे लगा कि अपना खयाल खुद रखना होता है. तो मुझे लगा कि रिजेक्शन से आपके अंदर विल पावर आता है, तो मैं इस दिशा में आगे बढ़ने लगी.” 

एक्टिंग के साथ-साथ लेखन को लेकर सवाल पर उन्होंने कहा कि, ”लिखने में और एक्टिंग में खूबसूरती यह है कि दोनों आपको एक्सप्रेस करने का मौका देते हैं. फर्क सिर्फ इतना है कि एक्टिंग में मुझे स्क्रिप्ट कोई और देता है और मैं उसे अपने चेहरे और हावभाव से एक्सप्रेस करती हूं. लेखन में मुझे जो कहना है, मन की बात लिखती हूं. लेकिन दोनों में ही एक्सप्रेस करने का मौका मिलता है. ऑडिएंस हो या रीडर्स हों, कितना प्यार मिलता है, यह मैंने किताब लिखने के बाद ही जाना. इसकी रीच बहुत है. पहले मैंने अखबारों में लिखना शुरू किया तो लोग मुझे गले से लगा लेते थे.” 

दिव्या दत्ता ने कहा कि, ”मैं अपनी मम्मी के बहुत क्लोज थी. तो जब वो गई तो मुझे लगा कि एक ऐसे पेरेंट का सेलिब्रेशन जरूर करना चाहिए जिसने अपनी बच्ची का हर मामले में साथ दिया. मां मेरी सबसे अच्छी दोस्त रही. तो जब मेरी किताब आई तो कई लोगों ने मुझसे कहा कि हम एक रिश्ते को फॉरग्रांटेड लेते हैं और वो रिश्ता मां का रिश्ता है. मुझे लगा कि रीडर्स के साथ अच्छा कनैक्ट बना.” 

दिव्या दत्ता ने कहा कि, ”फिल्म ‘भाग मिल्खा भाग’ के एक सीन को लेकर उन्होंने कहा कि, सैल्यूट वाला जो सीन है उसने मुझे इतना स्नेह दिया कि मैं ऊपर वाले को शुक्रिया ही अदा कर सकती हूं. राकेश मेहरा अपने अभिनेताओं पर बहुत ट्रस्ट करते हैं. उन्होंने लास्ट मिनट पर कुछ न कुछ मुझ पर छोड़ा. उन्होंने कहा कि एंड इस सीन का खुद सोच लेना, अपनी तरफ से कुछ डाल देना. तो जब फरहान को गले लगाकर खड़ी हूं तो लगा कि यह मामूली होगा. अचानक मुझे खयाल आया कि इसरी ने अपने पिता को छोटे मिल्खा को सेल्यूट करते हुए देखा है. तो कैसे कुछ सेकेंड में ये बात मेरे दिमाग में आई और मैंने उसे सैल्यूट किया. उस सीन के बाद हम सब एक-दूसरे को गले से लगाकर रोये. कुछ सीन का अपना कुछ जादू होता है.” 

उन्होंने कहा कि, ”मुश्किल तो नहीं था, बहुत प्यारे अनुभव थे. लेकिन अब जब मैं मुड़कर देखती हूं  तो लगता है कि अगर यह न होता तो आज मैं वह न होती जो हूं. मैंने इन सब चीजों से सीखा है.”  

श्याम बेनेगल के साथ काम करने के अनुभव को लेकर दिव्या दत्ता ने कहा कि, ”श्याम बाबू ने एक 18 साल की लड़की पर भरोसा किया. मुझे एक गाने के लिए सात दिन के लिए बुलाया. पहले दिन गाना सुनाया और कहा कि यहां की लोकल लड़कियां जब डांस करती हैं तो देखकर आओ. फिर कहा कि इसे कोरियोग्राफ करके सिखाओ. फिर कहा कि सबके साथ परफॉर्मेंस लूंगा. सात कैमरे होंगे, स्टेज पर होगा. मैं बहुत नर्वस थी कि श्याम बाबू के सामने यह करना था. श्याम बाबू के सेट पर सब एक परिवार होता था. उस दिन किसी और का शूट नहीं था, रात का शूट था, बस मेरा. सब आए बस मुझे चेयर करने के लिए. नर्वसनेस में मैंने परफॉर्म किया. तो एक यह कॉन्फिडेंस मुझे श्याब बाबू दे गए, कि कुछ भी कर सकते हो आप.”  

दिव्या दत्ता ने एक्टिंग के पेशे में आने के इच्छुक लोगों से कहा कि, ”आजकल सबसे बड़ा मुद्दा यह है कि बहुत सारा अकेलापन है. सोशल मीडिया इतना बढ़ गया है, पीयर प्रेसर इतना है, एक लाइक के लिए भी घबराहट होने लगती है. अगर आप इस प्रोफेशन में आते हैं तो इसकी चमक के कारण न आएं. इसलिए आएं कि आपको लगता है कि आप एक्टर बन सकते हैं. इसमें आने के लिए पेशेंस चाहिए. हम यह सोचकर आते हैं कि जाऊंगी और सब कर दूंगी, वैसा नहीं होता है. हर चीज धीरे-धीरे अपने समय पर होती है. हमेशा आपके जीवन में कोई ऐसा होना चाहिए जिससे आप अपने मन की बात कर सकते हों. मेरे जीवन में मेरा परिवार था. परिवार कहता था जो हुआ सो हुआ, आगे कुछ अच्छा आएगा. और आगे कुछ अच्छा आया भी. हमेशा कोई ऐसी दोस्त हो जो आपको सुन सके और सही सलाह दे सके, यह बहुत ज्यादा जरूरी है.”



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