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रोहतास . प्रयागराज में आयोजित भोजपुरी संगम के चतुर्थ महोत्सव में, सासाराम के एसपी जैन कॉलेज के पूर्व प्राचार्य एवं भोजपुरी साहित्यकार डॉ. गुरु चरण सिंह कोभोजपुरी रत्न’ से सम्मानित किया गया.  यह पुरस्कार उन्हें भोजपुरी भाषा के प्रचारप्रसार और सांस्कृतिक मूल्यों को देशविदेश में स्थापित करने में उनके विशिष्ट योगदान के लिए दिया गया है.


भोजपुरी को दी नई ऊंचाई
डॉ. सिंह ने अपना संपूर्ण जीवन भोजपुरी भाषा और संस्कृति के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया. उन्होंने  साहित्यिक और सांस्कृतिक मंचों के साथ अपनी लेखनी और भाषणों के माध्यम से भोजपुरी की पहचान बनाई. इसे नई पीढ़ियों तक पहुंचाने का अथक प्रयास किया.  उनके समर्पण ने भोजपुरी को एक नई ऊँचाई दी है.


संपूर्ण
भोजपुरी समाज का सम्मान
भोजपुरी संगम संस्था, प्रयागराज द्वारा भोजपुरी रत्न प्राप्त करने के बाद डॉ. सिंह ने कहा कि ये सम्मान  सभी भोजपुरी भाषियों के लिए गर्व की बात है. उन्होंने बताया कि इसके पहले भी उन्हें  ‘भोजपुरी गौरव’ सहित कई अन्य सम्मानों से सम्मानित किया जा चुका है. उन्हें दुबई मेंसाहित्य रत्न’ की उपाधि भी मिल चुकी है. उन्होंने कहा कि यह संपूर्ण भोजपुरी समाज का सम्मान है, जिससे  उन्हें इस भाषा के लिए कुछ करने की प्रेरणा मिली.


लोग साथ लेकर गए थे अपनी संस्कृति
देश के बाहर भोजपुरी भाषा के प्रचार के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि 1864 के आसपास लोग यहां से गिरमिटिया मजदूर बनकर दुनिया के अलगअलग क्षेत्रों में अपनी संस्कृति साथ लेकर गए थे. लोग  इसे आज भी निष्ठा से निभाते हैं. मॉरीशस  का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि वहां आज भी हर दरवाजे पर तुलसी का पौधा, हनुमान जी का मंदिर और घरों में हनुमान चालीसा का पाठ होता है, जो उनकी अपनी भाषा और संस्कृति के प्रति गहरी आस्था को दर्शाता है.

आठवीं अनुसूची में शामिल कराने का जारी है प्रयास
भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में शामिल कराने के लिए लंबे समय से प्रयास कर रहे हैं. उनके अनुसार, भोजपुरी उन सभी मापदंडों को पूरा करती है, जिस  आधार पर इसे आठवीं अनुसूची में शामिल किया जा सकता है. देशविदेश में लगभग 25 करोड़ लोग भोजपुरी बोलते हैं. साथ ही उन्होंने बताया कि भोजपुरी साहित्य भी अत्यंत समृद्ध है, जिसमें नैतिक, एकांकी, मुक्तक, प्रबंध काव्य, महाकाव्य, खंड काव्य, गजल, उपन्यास, आलोचना आदि सदियों से अस्तित्व में हैं. गृह मंत्रालय में याचिका दायर करने के साथ-साथ  भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए वे विभिन्न संगठनों के साथ मिलकर प्रयासरत हैं. 

हिन्दी से सदियों पुरानी है भोजपुरी 
उन्होंने
कहा कि कुछ लोगों का कहना है कि भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में शामिल करने से हिंदी भाषा कमजोर हो जाएगी. ऐसे लोगों के बारे में उन्होंने कहा कि ‘ये लोग या तो अपनी संस्कृति भूल चुके हैं या अपनी जड़ों से कट चुके हैं, क्योंकि हिंदी भाषा के विकास में सबसे अधिक योगदान भोजपुरी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं का ही है’. भोजपुरी का अस्तित्व हिंदी भाषा के अस्तित्व में आने से कई सदी  पुराना है. आज की भोजपुरी, पूर्व वैदिक काल से चली रही इस भाषा का ही परिवर्तित स्वरूप है. उन्होंने आगे कहा कि भोजपुरी जवानों की भाषा है, यह सरल, स्पष्टवादी और मधुर भाषा है, जिसे लोगों को हमेशा जीवंत रखना चाहिए. 

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