Bindeshwar Pathak: Indias Toilet Man Created History By Establishing Sulabh International – अलविदा बिंदेश्‍वर पाठक : ‘भारत के टॉयलेट मैन’ पहले बने थे हंसी के पात्र, फिर सुलभ की स्‍थापना कर रचा इतिहास



bindeshwar pathak Bindeshwar Pathak: Indias Toilet Man Created History By Establishing Sulabh International - अलविदा बिंदेश्‍वर पाठक : ‘भारत के टॉयलेट मैन’ पहले बने थे हंसी के पात्र, फिर सुलभ की स्‍थापना कर रचा इतिहास

उहोंने 1970 में सुलभ की स्थापना की थी जो सार्वजनिक शौचालय का पर्याय बन गया और खुले में शौच को रोकने के लिए जल्द ही यह आंदोलन बन गया. कार्यकर्ता और सामाज सेवी पाठक को कई लोग ‘सैनिटेशन सांता क्लास’ कहते थे. उनका जन्म बिहार के वैशाली जिले के रामपुर बघेल गांव में हुआ था और परिवार में उनकी पत्नी, दो बेटियां और एक बेटा है. 

कॉलेज और कुछ लीक से अलग नौकरियों को करने के बाद वह 1968 में बिहार गांधी शताब्दी समारोह समिति के मैला उठाने वालों की मुक्ति प्रकोष्ठ में शामिल हो गए. उन्होंने भारत में मैला उठाने की समस्या को रेखांकित किया. जब उन्होंने देश भर की यात्रा की और अपनी पीएचडी शोधपत्र के हिस्से के रूप में सिर पर मैला ढोने वालों के साथ रहे तो उन्हें नयी पहचान मिली. 

उन्होंने तकनीकी नवाचार को मानवीय सिद्धांतों के साथ जोड़ते हुए 1970 में सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस ऑर्गनाइजेशन की स्थापना की. संगठन शिक्षा के माध्यम से मानवाधिकारों, पर्यावरण स्वच्छता, ऊर्जा के गैर-पारंपरिक स्रोतों, अपशिष्ट प्रबंधन और सामाजिक सुधारों को बढ़ावा देने के लिए काम करता है. 

पाठक द्वारा तीन दशक पहले सुलभ शौचालयों को किण्वन (फर्मेन्टेशन) संयंत्रों से जोड़कर बायोगैस बनाने का डिजाइन अब दुनिया भर के विकासशील देशों में स्वच्छता का पर्याय बन गया है. पाठक की परियोजना की एक विशिष्ट विशेषता यह रही कि गंध मुक्त बायोगैस का उत्पादन करने के अलावा, यह फॉस्फोरस और अन्य अवयवों से भरपूर स्वच्छ पानी भी छोड़ता है जो जैविक खाद के महत्वपूर्ण घटक हैं. 

उनका स्वच्छता आंदोलन स्वच्छता सुनिश्चित करता है और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को रोकता है. ग्रामीण समुदायों तक इन सुविधाओं को पहुंचाने के लिए इस तकनीक का विस्तार अब दक्षिण अफ्रीका तक किया जा रहा है. 

पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित पाठक को एनर्जी ग्लोब अवार्ड, दुबई इंटरनेशनल अवार्ड, स्टॉकहोम वाटर प्राइज, पेरिस में फ्रांस के सीनेट से लीजेंड ऑफ प्लैनेट अवार्ड सहित अन्य पुरस्कार भी प्रदान किये गये थे. 

पोप जॉन पॉल द्वितीय ने 1992 में पर्यावरण के अंतरराष्ट्रीय सेंट फ्रांसिस पुरस्कार से डॉ. पाठक को सम्मानित करते हुए उनकी सराहना की थी और कहा था,‘‘आप गरीबों की मदद कर रहे हैं.”

वर्ष 2014 में, उन्हें सामाजिक विकास के क्षेत्र में उत्कृष्ट काम करने के लिए सरदार पटेल अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. अप्रैल 2016 में, न्यूयॉर्क शहर के महापौर बिल डी ब्लासियो ने 14 अप्रैल, 2016 को बिंदेश्वर पाठक दिवस के रूप में घोषित किया. 

12 जुलाई, 2017 को, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जीवन पर पाठक की पुस्तक ‘द मेकिंग ऑफ ए लीजेंड’ का नई दिल्ली में लोकार्पण किया गया था. वर्ष 1974 स्वच्छता के इतिहास में एक मील का पत्थर था जब 24 घंटे के लिए स्नान, कपड़े धोने और मूत्रालय (जिसे सुलभ शौचालय परिसर के रूप में जाना जाता है) की सुविधा सहायक के साथ भुगतान कर इस्तेमाल करने के आधार पर शुरू की गई थी. 

9,000 से अधिक सामुदायिक सार्वजनिक शौचालय परिसर

अब सुलभ देश भर के रेलवे स्टेशनों और शहरों में शौचालयों का संचालन और रख-रखाव कर रहा है. भारत के 1,600 शहरों में 9,000 से अधिक सामुदायिक सार्वजनिक शौचालय परिसर मौजूद हैं. इन परिसरों में बिजली और 24 घंटे पानी की आपूर्ति है. परिसरों में पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग-अलग स्थान बने हैं. उपयोगकर्ताओं से शौचालय और स्नान सुविधाओं का उपयोग करने के लिए नाममात्र राशि ली जाती है. 

कुछ सुलभ परिसरों में स्नान सुविधा, अमानत घर, टेलीफोन और प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाएं भी दी जाती हैं. इन परिसरों का उनकी स्वच्छता और अच्छे प्रबंधन के कारण लोगों और अधिकारियों दोनों द्वारा व्यापक रूप से पसंद किया जाता है. भुगतान और उपयोग प्रणाली सार्वजनिक खजाने या स्थानीय निकायों पर कोई बोझ डाले बिना आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करती है. परिसरों ने रहने के माहौल में भी काफी सुधार किया है. 

2020 में 490 करोड़ रुपये का ‘टर्नओवर’

वित्त वर्ष 2020 में सुलभ का 490 करोड़ रुपये का ‘टर्नओवर’ था. सुलभ केवल शौचालय का ही संचालन नहीं करता बल्कि कई व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थान भी चला रहा है जहां पर सफाईकर्मियों,उनके बच्चों और समाज के अन्य कमजोर वर्गों के व्यक्तियों को मुफ्त कंप्यूटर, टाइपिंग और शॉर्टहैंड, विद्युत व्यापार, काष्ठकला, चमड़ा शिल्प, डीजल और पेट्रोल इंजीनियरिंग, सिलाई, बेंत के फर्नीचर बनाने जैसे विभिन्न व्यवसायों का प्रशिक्षण दिया जाता है. 

हाशिए पर रहने वालों के उत्‍थान का काम 

मैला ढोने वालों के बच्चों के लिए दिल्ली में एक अंग्रेजी माध्यम स्कूल स्थापित करने से लेकर वृन्दावन में परित्यक्त विधवाओं को वित्तीय सहायता प्रदान करने या राष्ट्रीय राजधानी में शौचालयों का एक संग्रहालय स्थापित करने तक, पाठक और उनके सुलभ ने हमेशा हाशिए पर रहने वाले लोगों के उत्थान की दिशा में काम किया. 

शौचालयों का संग्रहालय का ऐसे आया विचार 

पाठक ने एक बार कहा था कि मैडम तुसाद का दौरा करने के बाद उन्होंने शौचालयों का एक संग्रहालय स्थापित करने के बारे में सोचा था. इस संग्रहालय को अक्सर दुनिया भर के सबसे अजीब संग्रहालयों में से एक माना जाता है, लेकिन यह 1970 के दशक में शुरू हुई उनकी यात्रा का वर्णन करता है, जब उन्होंने स्वच्छता पर महात्मा गांधी के मार्ग पर चलने और समाज के सबसे निचले तबके के लोगों के उत्थान का फैसला किया था. 

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(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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