हिंदी सिनेमा में चाटूकारिता है वहीं साउथ में प्रतिभा।
हिंदी सिनेमा में चाटूकारिता है वहीं साउथ में प्रतिभा।
उदाहरण: बॉलीबुड में अक्षय कुमार, कंगना, अनुपम दरअसल लिस्ट लंबी है। और साउथ में जीता जागता चेहरा प्रकाशराज, जो भी हो लेकिन मैंने साउथ के अभिनेताओं को सरकार की चाटूकारिता करते नहीं देखा। बदलाव लाने के लिए साउथ के स्टार ख़ुद राजनीतिक पार्टी जरूर तैयार कर लेते हैं। इसका उदाहरण है पवन कल्याण।
चाहे कोई भी स्टार हो, हर स्टार अपने पसंद की स्क्रिप्ट पर अभिनय करता है। साउथ फिल्म इंडस्ट्री के अभिनेता, अभिनेता रहना चाहते हैं लेकिन बॉलीवुड के अभिनेता नेता होने की कगार में लगे हुए हैं। बॉलीवुड का अभिनेता वो स्क्रिप्ट चुनता है जिनमें देश की जनता को मूर्ख बनाया जा रहा हो। लेकिन साउथ समाज के जमीनी हिस्से को साथ लेकर चलता है। उसका उदाहरण है हाल में आईं जय भीम, पुष्पा और असुरन जैसी फिल्में।
दरअसल यह इसलिए हो पा रहा है क्योंकि हमारे देश की जनता दो तरह की दर्शक हो गयी है प्रसंसक और समर्थक दर्शक मानो नामात्र की हो। आज जनता यह नहीं देखती कि उसमें कैसा कंटेंट है क्या मुद्दे उठाए गए हैं क्या नहीं। हम कह सकते हैं कि हर क्षेत्र में अपनी चेतना का विकास बंद कर दिया है। अब बॉलीवुड अपना कंटेंट दर्शकों पर थोपता है। वह चाहता है कि जो भी वो बनाये लोग वो देखें और विवश रहें वही देखने को। दरअसल इसका भी कारण है क्योंकि बॉलीवुड एक टीवी के समान है जिसे एक रिमोटकंट्रोल के माध्यम से चलाया जाता है। क्योंकि आज से पहले कई बेहतरीन फिल्में इसी बॉलीवुड में बना करती थीं जिसका आज नामोनिशान तक नहीं है।