Can Reservation From Backward Class People Be Snatched Away And Given To Muslims? This Is The Opinion Of The Constitutional Expert – क्या पिछड़े वर्ग का आरक्षण छीनकर मुसलमानों को दिया जा सकता है? यह है संविधान विशेषज्ञ की राय



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उन्होंने कहा कि, अल्पसंख्यक और धर्म आधारित आरक्षण के सवाल पर 1949 में संविधान सभा में बहुत विस्तार से बहस हुई थी. इस बहस में यह तय किया गया कि जाति, समाज, आर्थिक स्थिति आरक्षण का आधार होना चाहिए. धर्म तो हो नहीं सकता, क्योंकि अगर आप रिलीजन आप रिजर्वेशन का आधार बनाएंगे तो जो धर्मनिरपेक्षता का जो तत्व हमारे संविधान में हौ, वह प्रभावित होगा. और यह सर्व स्वीकार्य तथ्य है कि हमारा संविधान धर्मनिरपेक्ष संविधान है, इसमें कहीं कोई दो राया नहीं हैं. 

आरके सिंह ने कहा कि, ”धर्म आधारित आरक्षण का प्रश्न उठ रहा है, तो ये पता नहीं कहां से उठ रहा है, क्यों उठ रहा है, यह सियासी बात तो मैं नहीं जानता, लेकिन कहीं ना कहीं हमारा जो कॉन्स्टीटयूशन स्कीम ऑफ थिंग्स है, उसमें यह टेंपरेरीली संभव नहीं है.” 

संविधान सभा ने तय किया था आरक्षण का आधार

संविधान सभा में यह मुद्दा कैसे आया था, इसमें किस तरह सुनवाई हुई थी? इस सवाल पर आरके सिंह ने कहा कि, इसमें इस्माइल साहब थे, जो यह लाए थे. इसके पहले प्रश्न पर जाना चाहिए कि संविधान सभा की बहस हमारा संविधान बनाने के लिए हुई थी, उसके सामने दो प्रश्न थे. पहला प्रश्न था कि 1930 से जो सेप्रेट इलेक्टोरेट का झगड़ा चला था, वह तो संविधान निर्माताओं के दिमाग में था ही. सेप्रेट इलेक्टोरेट, जो कि धर्म आधारित था, से नुकसान हुआ था. तो उनके दिमाग में यह बात बिल्कुल तय थी कि हम धर्म को आरक्षण का आधार कभी भी नहीं बनाएंगे. इस पर बहुत लंबी बहस चली थी, जिसमें लगभग 20 लोगों ने हिस्सा लिया था. सन 1949 में 31 सितंबर से यह बहस शुरू हुई थी. बहस में तमाम पहलुओं को देखा गया था. मुसलमानों का पक्ष को देखा गया था, सिखों को देखा गया.. जितने भी धार्मिक अल्पसंख्यक हैं, उनके सारे पक्षों को देखा गया था. बाद में तय हुआ कि धर्म को हम कभी भी रिजर्वेशन का आधार नहीं बनाएंगे.

कितने सदस्य थे, कितनी मेजारिटी में किस तरीके से यह फैसला आया था? इस सवाल पर वरिष्ठ वकील ने कहा कि, जो वहां पर फाइनल वोटिंग आई थी उसमें लगभग 174 लोग इस बात से सहमत थे कि, धर्म आरक्षण का आधार नहीं होना चाहिए. 

बहुत लंबे वक्त तक ठंडे बस्ते में पड़ा रहा था मंडल कमीशन

आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट के भी बहुत सारे फैसले हैं. हमने देखा कि किस तरह से आर्थिक और सामाजिक आधार पर 10 प्रतिशत आरक्षण दिया गया. उस पर भी सुप्रीम कोर्ट ने मोहर लगाई तो लगातार इस तरह के मुद्दे यहां पर आते रहते हैं. इस बारे में आरके सिंह ने कहा कि, देखिए, इसके पहले आपको पॉलिटिकल और एक्जीक्यूटिव डोमेन में जाना होगा. सत्तर के दशक में दो कमीशन बने थे. एक मुंगेरी लाल कमीशन था. मुंगेरी लाल बिहार के एक पॉलिटीशियन थे उस कमीशन ने यह रिकमंडेशन की थी कि जाति आधारित के साथ-साथ आर्थिक आधार पर आरक्षण का प्रावधान रखा जाए. उसके बाद मंडल कमीशन की रिकमंडेशन आई. मंडल कमीशन बहुत लंबे वक्त तक ठंडे बस्ते में बंद रहा. उसके बाद 1991 में इंदिरा सहानी जजमेंट के जरिए मंडल कमीशन जब रिकमंड हो गया तो उसको चैलेंज किया गया. सुप्रीम कोर्ट ने दो चीजें स्पष्ट कीं कि रिजर्वेशन का पूरा कैप 50 परसेंट से ज्यादा नहीं होना चाहिए. दूसरी बात, कि जो आर्थिक आधार है, उसको भी संज्ञान में रखना चाहिए. और बाद के जजमेंट में आर्थिक आधार को भी जोड़ा गया. 

तो अब यह एक मुद्दा है, जिसको लेकर सवाल उठ रहा है कि कोई सरकार आएगी तो मुस्लिमों को आरक्षण दे देंगे. आपको क्या लगता है, यह क्या इतना आसान है? अगर ऐसा हो तो क्या-क्या चीजें करनी पड़ेंगी? इस सवाल पर आरके सिंह ने कहा कि, देखिए सबसे बड़ी बात है कि जो आपका संविधान है, मौजूदा स्वरूप में, उसमें ऐसा करना असंभव है. मूल ढांचे को आप बदल नहीं सकते. धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार को संतुलित करने के लिए हम समानता के अधिकार को खत्म नहीं कर सकते. तो कुल मिलाकर यह सियासी बातें हैं. 



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