Cancer Diagnosis: How To deal With The Psychology Of Cancer Patient : Dr. Surender Kumar Dabas – Surgical Oncology
Oral Cancer: बात ओरल कैंसर की हो या किसी अन्य कैंसर की, जिस पर गुजरती है उस मरीज का हाल बेहाल हो जाता है. इस बीमारी के बारे में जानकर ही मरीज ये मान लेते हैं कि अब उनके जीवन में कुछ नहीं बचा है. ऐसे समय में कैंसर के डॉक्टर ही एक साइकोलॉजिस्ट की तरह उनसे डील करते हैं, उनके तनाव को कम करते हैं. एनडीटीवी ने BLX-MAX के सीनियर डायरेक्टर, HOD सर्जरी ओन्को, रोबोटिक सर्जरी डॉ. सुरेंद्र कुमार डबास से जाना मरीजों को डिप्रेशन से बाहर लाने के लिए डॉक्टर को कितने जतन करने पड़ते हैं.
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कैंसर मरीज से कैसे करें बात? How To Deal With Cancer Patient
सवाल- कैंसर के मरीज इलाज के बाद किस तरह की मानसिक परेशानियों से जूझते हैं और उन्हें किस तरह से डील किया जाता है.
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डॉ. सुरेंद्र कुमार डबास- कैंसर जैसे ही डायग्नोज होता है मरीज को मानसिक तनाव तब ही से शुरू हो जाता है. तब उन्हें समझाने के लिए डॉक्टर उन्हें ये कहते हैं कि ट्रीटमेंट की असली सक्सेस का 50 प्रतिशत आपका तनाव दूर करने में है और 50 प्रतिशत आपको ठीक करने में है. पहली बार पेशेंट जब डॉक्टर के पास आता है तो बहुत तनाव में आता है. सबसे पहले उसे रिलेक्स करना होता है. मरीज इस डिप्रेशन में चले जाते हैं कि अब उनकी लाइफ नहीं बची है. तब मरीज का पहला सेक्सोलॉजिस्ट डॉक्टर ही होता है. जो उससे नॉर्मल बात करें कि कहां रहते हो, क्या करते हो. उनकी बीमारी के बारे में सीधे बात नहीं करना चाहिए.
उन्हें ये समझाना पड़ता है कि बीमारी ठीक हो सकती है. इसका ट्रीटमेंट मौजूद है. मैं मरीजों को समझाता हूं कि शुगर एक बार हुई तो हमेशा दवाई खानी पड़ती है. लेकिन कैंसर एक बार ठीक हो जाता है तो दवाई नहीं खानी पड़ती. ट्रीटमेंट थोड़ा मुश्किल है जिसमें सर्जरी है, कीमो है, रेडिएशन है. तो, उन्हें समझाना पड़ता है कि इलाज थोड़ा मुश्किल है लेकिन टाइम बीइंग है. ये सुनकर मरीज थोड़ा पॉजिटिव होना शुरू करते हैं.
सवाल- ट्रीटमेंट के बारे में समझाने की जरूरत क्यों पड़ती है?
डॉ. सुरेंद्र कुमार डबास- अधिकांश मरीज ये मान कर आते हैं कि उन्हें ट्रीटमेंट नहीं करवाना है. उन्हें लगता है कि इलाज कराने में ही वो मर जाएंगे. उन्हें लगता है कि कैंसर का ट्रीटमेंट बहुत खराब है. सबसे पहले उन्हें ट्रीटमेंट के बारे में बताकर बातचीत शुरू करनी पड़ती है.
अधिकांश मरीज पूछते हैं कि स्टेज कौन सी है. जबकि स्टेज से सिर्फ डॉक्टर को मतलब होता है. मरीजों को शुरू से पूरी ईमानदारी से बताना चाहिए कि इलाज के बाद क्या होगा. बीमारी क्योर होने के कितने चांसेस हैं. उन्हें ये समझाना जरूरी होता है कि अभी सर्जरी से वो ठीक हो जाएंगे. लेकिन कुछ साल में बीमारी वापस पलट कर आ सकती है. इसलिए रेगुलर चैकअप करवाना जरूरी है.
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अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.