Chabahar : America Protested When India Took Chabahar Port On Lease From Iran – भारत ने ईरान से लीज पर लिया चाबहार पोर्ट तो US को क्यों लग रही मिर्ची? इस डील से क्या बदलेगा



05m6s35o chabahar port Chabahar : America Protested When India Took Chabahar Port On Lease From Iran - भारत ने ईरान से लीज पर लिया चाबहार पोर्ट तो US को क्यों लग रही मिर्ची? इस डील से क्या बदलेगा

अमेरिका को जयशंकर की दो टूक

भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अमेरिका को सख्त लहजे में जवाब देते हुए कहा, “अमेरिका अपनी सोच बड़ी करे, क्योंकि इस योजना से पूरे क्षेत्र को फायदा होगा. उन्होंने यह भी याद दिलाया है कि अमेरिका खुद कभी इस बंदरगाह को महत्वपूर्ण मानता रहा है. एस जयशंकर ने कहा कि ये समझौता चाबहार स्थित शाहिद बेहेस्ती बंदरगाह के संचालन के लिए किया गया है. यह इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड और पोर्ट्स एंड मैरीटाइम ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ ईरान के बीच हुआ है.

क्या है चाबहार समझौता?

चाबहार ईरान का एक बंदरगाह है, जिसे विकसित किया जा रहा है. इसके लिए भारत ने ईरान के साथ 10 साल का समझौता किया है. इस समझौते के तहत भारत ईरान को 250 मिलियन डॉलर का कर्ज देगा. ये कर्ज ओमान की खाड़ी में बन रहे इस बंदरगाह के बुनियादी ढांचे के लिए होगा. वैसे इस बंदरगाह को लेकर भारत पहले भी ईरान के साथ काम करता रहा है.

अमेरिका क्यों परेशान?

अमेरिका समय-समय पर भारत और ईरान के बीच चाबहार समझौता को लेकर विरोध करता रहा है. 2003 में ही भारत ने ईरान के सामने चाबहार पोर्ट को विकसित करने का प्रस्ताव रखा था. उस समय अमेरिका ने संदिग्ध परमाणु कार्यक्रम को लेकर ईरान पर कई प्रतिबंध लगा दिए थे और यही वजह से बंदरगाह के विकास का काम सुस्त पड़ गई थी. वहीं, इससे पहले अमेरिका ने ईरान के साथ व्यापार में शामिल भारतीय कंपनियों पर भी प्रतिबंध लगा दिया था. ईरान के ऐटमी परीक्षण के बाद इन पाबंदियों को और बढ़ा दिया. साथ ही इजरायल-हमास जंग के बीच ईरान-भारत की करीबी भी एक वजह माना जा रहा है.

विदेश मामलों के जानकार मानते हैं कि पहले भारत को मध्य एशिया के देशों से व्यापार करने के लिए पाकिस्तान के रास्ते का इस्तेमाल करना पड़ता था. यहां तक की अफगानिस्तान तक भी कोई सामान भेजने के लिए भारत पाकिस्तान से होकर जाने वाले रास्ते का ही इस्तेमाल करता था. लेकिन जब से भारत और ईरान के बीच चाबहार को लेकर समझौता हुआ है तो अब अफगानिस्तान और सेंट्रल एशिया से बिजनेस के लिए भारत को नया रूट मिल जाएगा. अब तक इन देशों तक पहुंचने के लिए पाकिस्तान से होकर जाना पड़ता था. यह बंदरगाह भारत के लिए कूटनीति के लिहाज से भी अहम है. 

 

रणनीतिक मामलों के जानकार हर्ष वी पंत ने कहा कि ईरान और अमेरिका के संबंध पहले से ही ठीक नहीं है. अमेरिका और भारत के संबंध अच्छे हैं और अब देखने वाली बात होगी कि आने वाले दिनों में इस समझौता से दोनों देशों के संबध प्रभावित होगा या नहीं? चीन 17 से अधिक पोर्ट को मैनेज करता है. भारत के लिए चाबहार अहम है.

रणनीतिक मामलों के जानकार कमर आगा ने कहा कि ये समझौता है जो भारत को पूरे मध्य एशिया से जोड़ता है. अजरबैजान, अफगानिस्तान, रूस से भी जोड़ता है. अमेरिका के साथ बातचीत से इस मामले को हल किया जा सकता है.  मध्य एशिया के इस क्षेत्र में तेल, गैस, गोल्ड, युरेनियम का भंडार है. यह क्षेत्र हमारे के लिए काफी महत्वपूर्ण है. इस्लाम आने से पहले से इस क्षेत्र से हमारा रिश्ता है. पाकिस्तान ने हमारा रास्ता रोक रखा है.

चाबहार डील पर अमेरिका की भारत को चेतावनी

बता दें कि अमेरिका ने मंगलवार को  चेतावनी दी थी कि तेहरान के साथ व्यापारिक डील पर विचार करने वाले “किसी को” भी प्रतिबंधों के संभावित जोखिम के बारे में पता होना चाहिए. अमेरिकी विदेश विभाग के उप-प्रवक्ता वेदांत पटेल ने एक प्रेस ब्रीफिंग में कहा, “मैं बस यही कहूंगा…ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंध लागू रहेंगे और इनको जारी रखा जाएगा.” जब उनसे यह पूछा गया कि इन प्रतिबंधों के दायरे में क्या भारतीय कंपनियां भी आ सकती हैं, इस पर वेदांत पटेल मे कहा कि जो कोई भी ईरान के साथ व्यापारिक सौदे पर विचार कर रहा है, उस पर संभावित जोखिम का खतरा बना रहेगा. 

भारत-ईरान के बीच पहले भी हुई डील

भारत और ईरान के बीच साल 2016 में भी शाहिद बेहेस्ती पोर्ट के संचालन के लिए डील हुई थी. अब हुई नई डील को 2016 की डील का ही ना रूप माना जा रहा है. बता दें कि इसके विकास के लिए दोनों देशों के बीच 2023 में सहमति बनी थी.भारत का कहना है कि इस डील ने पोर्ट में बड़े निवेश का रास्ता खुलेगा.

चाबहार डील आखिर है क्या?

पहले भारत से अफगानिस्तान को भेजा जाने वाला कोई भी सामान पाकिस्तान के रास्ते होकर जाता था. लेकिन इस डील से भारत को अब व्यापार के लिए पाकिस्तान की जरूरत नहीं होगी. अफगानिस्तान और सेंट्रल एशिया से बिजनेस के लिए भारत को नया रूट मिल जाएगा. अब तक इन देशों तक पहुंचने के लिए पाकिस्तान का सहारा लेना पड़ता था. यह बंदरगाह भारत के लए रणनीतिक और कूटनीति के लिहाज के भी अहम है. 

ये भी पढ़ें:- 
चाबहार डील पर भारत से चिढ़े बैठे अमेरिका को जयशंकर की दो टूक, जानें क्या-क्या कहा?



Source link

x