China Nuclear Fusion Research Facility Satellite Images Would Shock Donald Trump | न्यूक्लियर फ्यूजन ही फ्यूचर है! चीन कामयाबी के बेहद करीब, सैटेलाइट तस्वीरें देख टेंशन में आ जाएंगे ट्रंप


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China Nuclear Fusion Research: चीन न्यूक्लियर फ्यूजन के जरिए अपनी ऊर्जा को पूरा करने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है. सैटेलाइट से ली गईं तस्वीरें दिखाती हैं कि चीन एक विशालकाय न्यूक्लियर फ्यूजन रिसर्च फैसिलि…और पढ़ें

न्यूक्लियर ही फ्यूचर है, चीन बेहद करीब; सैटेलाइट फोटो बढ़ा देगी ट्रंप का बीपी!

सैटेलाइट इमेज दिखाती है कि चीन एक बहुत बड़ा न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्टर बना रहा है. (Planet Labs PBC)

China Nuclear Fusion Reactor: चीन साफ-सुथरी ऊर्जा का अनंत भंडार हासिल करने के बेहद करीब है. हाल ही में उसके न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्टर ने 1000 सेकंड यानी करीब 17 मिनट तक बेहद गर्म प्लाज्मा को बनाए रखने में सफलता पाई. इस दौरान, रिएक्टर से लगातार 7 करोड़ डिग्री सेल्सियस ऊर्जा निकलती रही. न्यूक्लियर एनर्जी में ही दुनिया का फ्यूचर है और चीन उस रेस में सबसे आगे निकलता दिख रहा है. सैटेलाइट तस्वीरों से पता चला है कि चीन अपने दक्षिण-पश्चिमी इलाके में X-शेप वाली एक विशाल इमारत बना रहा है. यह इमारत मियानयांग (सिचुआन प्रांत) में बनाई जा रही है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, यह एक न्यूक्लियर फ्यूजन रिसर्च सेंटर है.

इतनी बड़ी लैब में क्या करेंगे चीनी वैज्ञानिक?

अमेरिका की एक रिसर्च फर्म – CNA कॉर्पोरेशन – में एनालिस्ट, डेकर एवलेथ ने सबसे पहले इस फैसिलिटी को नोटिस किया. CNN की रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने बताया कि 2020 में यह जगह एक खाली मैदान थी, लेकिन COVID लॉकडाउन के बाद यहां कंस्ट्रक्शन बड़ी तेजी से होने लगा.

यह एक लेजर फ्यूजन फैसिलिटी बताई जा रही है, जहां चार बड़ी लेजर आर्म्स एक केंद्रीय टॉवर पर सेंटर्ड होंगी. इस टावर में हाइड्रोजन आइसोटोप्स रखे जाएंगे और जब इनपर शक्तिशाली लेजर बीम दागी जाएगी, तो हाइड्रोजन के परमाणु जुड़कर न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्शन को शुरू करेंगे. इसे ‘इग्निशन’ कहा जाता है. इस तरह के प्रयोग सौरमंडल के केंद्र जैसी परिस्थितियां या न्यूक्लियर विस्फोट के शुरुआती माइक्रो सेकंड को दोहराने में मदद कर सकते हैं.

न्यूक्लियर फ्यूजन: भविष्‍य की चाबी

  • न्यूक्लियर फ्यूजन वह प्रक्रिया है जिससे सूर्य और उसके जैसे अन्य तारों को ताकत मिलती है. यह हाइड्रोजन आइसोटोप्स (जैसे ड्यूटेरियम और ट्रिटियम) को अत्यधिक उच्च तापमान और दबाव में जोड़कर हेलियम और ऊर्जा उत्पन्न करने की प्रक्रिया है.
  • इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह एक साफ-सुथरा ऊर्जा स्रोत है. यानी, यह किसी तरह के कार्बन उत्सर्जन का कारण नहीं बनता और इसमें न्यूक्लियर फिशन की तरह खतरनाक रेडियोएक्टिव कचरा भी नहीं निकलता.
  • यही वजह है कि दुनियाभर के वैज्ञानिक इस तकनीक को ऊर्जा के भविष्य के रूप में देख रहे हैं. यह भविष्य में कोयला, पेट्रोलियम और यहां तक कि पारंपरिक न्यूक्लियर फिशन रिएक्टर्स की जगह ले सकता है.
  • दुनिया की कई लैब्स इस तकनीक पर काम कर रही हैं. अमेरिका, यूरोप, भारत और जापान समेत कई देश इस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं. चीन की यह नई फैसिलिटी इस फील्ड में गेमचेंजर साबित हो सकती है.

कहीं यहां पर न्यूक्लियर हथियार तो नहीं बनाएगा चीन?

सैटेलाइट तस्वीरें सामने आने के बाद अमेरिकी एक्सपर्ट्स को चीन के इरादों पर शक होने लगा है. ऐसा इसलिए क्योंकि न्यूक्लियर फ्यूजन का उपयोग थर्मोन्यूक्लियर हथियारों (जैसे हाइड्रोजन बम) को विकसित करने में भी किया जा सकता है.

अमेरिका और चीन, दोनों Comprehensive Nuclear Test Ban Treaty (CTBT) के तहत पारंपरिक न्यूक्लियर टेस्ट नहीं कर सकते, लेकिन लेजर फ्यूजन लैब्स के जरिए वे अपने हथियारों को अपग्रेड कर सकते हैं.

अमेरिका में नेशनल इग्निशन फैसिलिटी (NIF), कैलिफोर्निया में स्थित एक प्रमुख लेजर फ्यूजन सेंटर है. 2022 में, NIF ने पहली बार न्यूक्लियर फ्यूजन से ‘नेट एनर्जी गेन’ हासिल करने में सफलता पाई थी. लेकिन चीन का नया केंद्र NIF से 50% बड़ा होने की संभावना है और शायद दुनिया की सबसे बड़ी फ्यूजन रिसर्च फैसिलिटी बन सकता है.

बड़ा रिएक्टर होने से ज्यादा ऊर्जा उत्पादन की संभावना बढ़ जाती है. लेकिन Henry L. Stimson Centre के विलियम अलबर्क ने सीएनएन से कहा कि ‘जिस देश के पास NIF जैसा कोई फ्यूजन सेंटर होता है, वह अपने मौजूदा परमाणु हथियारों को अपग्रेड करने और उन्हें और ज्यादा प्रभावी बनाने का प्रयास जरूर करता है.’

वहीं, एवलेथ के मुताबिक अगर चीन अपने न्यूक्लियर हथियारों की टेस्टिंग नहीं कर रहा है, तो यह एक पॉजिटिव सिग्नल हो सकता है. लेकिन अगर यह नई तरह के हथियार विकसित करने की कोशिश कर रहा है, तो यह चिंता की बात है. कुछ एक्सपर्ट्स का मानना है कि यह पूरी तरह से फ्यूजन फैसिलिटी नहीं हो सकती, बल्कि एक हाइब्रिड फ्यूजन-फिशन सेंटर हो सकता है.

चीन से पीछे छूट जाएगा अमेरिका!

एक्सपर्ट्स के मुताबिक, अभी अमेरिका फ्यूजन टेक्नोलॉजी में आगे है, लेकिन चीन तेजी से आगे बढ़ रहा है. अगर अमेरिका और उसके सहयोगी देश फ्यूजन एनर्जी और न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी में निवेश नहीं करते, तो चीन यह रेस जीत सकता है. चीन की यह नई फैसिलिटी उस दिशा में एक बड़ा कदम साबित हो सकती है.

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