Congress Asked 5 Questions To Modi Government On Law Commission Recommendation Over Sedition Law – विपक्ष की आवाज दबाने की तकनीक: राजद्रोह के कानून पर कांग्रेस ने केंद्र से पूछे 5 सवाल
कांग्रेस मुख्यालय में शुक्रवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा, “राजद्रोह के कानून पर भारतीय विधि आयोग की सिफारिश से देश में बवाल और बढ़ेगा. ये आने वाले चुनाव को देखते हुए विपक्ष का गला घोंटने की तकनीक है.” उन्होंने कहा, “60 साल का न्यायपालिका का कानून था. उसको विधायिका का कानून बनाया जा रहा है. कानून में कोई सुरक्षा चक्र नहीं है, जिससे इसके दुरुपयोग को रोका जा सके. यह औपनिवेशिक मानसिकता का परिचायक है. सरकार की यही पहचान है. जब भी कोई विरोध करता है, उसके खिलाफ ऐसे केस दर्ज किए गए हैं.”
विधि आयोग की क्या है सिफारिश?
दरअसल, भारतीय विधि आयोग ने अपनी सिफारिश में कहा है कि राजद्रोह कानून को रद्द करने की जरूरत नहीं है. कुछ संशोधन के साथ राजद्रोह कानून को बनाए रखना चाहिए. भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए ये जरूरी है. विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट में राजद्रोह कानून के तहत मिलने वाली सजा को 3 साल से बढ़ाकर 7 साल करने का सुझाव दिया है.
राजद्रोह के कानून को लेकर मोदी सरकार से हमारे 5 सवाल:
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— Congress (@INCIndia) June 2, 2023
कांग्रेस ने सरकार से पूछे ये पांच सवाल:-
1. क्या इस सरकार में हिम्मत, दम और धैर्य नहीं है कि वो इस कानून को हटा दे?
2. 2014 के बाद राजद्रोह कानून का इतना दुरुपयोग क्यों बढ़ा है?
3.क्या ये कानून आने वाले लोकसभा चुनाव में एक टूल के रूप में है?
4.राजद्रोह कानून का इस्तेमाल पक्षपातपूर्ण तरीके से विपक्ष के लिए क्यों होता है?
5. क्या विधि आयोग ने सुप्रीम कोर्ट की अवहेलना का एक तरीका निकाला है?
मोदी सरकार आने के बाद राजद्रोह के मामलों में 30% की वृद्धि
कांग्रेस की तरफ से सिंघवी ने कहा, “मोदी सरकार आने के बाद से 2020 तक राजद्रोह के मामलों में करीब 30% की वृद्धि हुई है. कोरोनाकाल में ऑक्सीजन और अन्य समस्याओं के विरोध के मामले में 12 केस दर्ज हुए. 21 केस पत्रकारों के खिलाफ दर्ज हुए हैं. 27 केस CAA-NRC के मुद्दे से जुड़े हैं. वहीं, UP में इन मामलों की 60% जमानत याचिकाएं निरस्त होती हैं.”
नागरिकों की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए ये कानून जरूरी-आयोग
विधि आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि नागरिकों की स्वतंत्रता तभी सुनिश्चित की जा सकती है, जब राज्य सुरक्षित हो. आयोग ने कहा है कि धारा 124A को सिर्फ इसलिए निरस्त कर देना, क्योंकि दूसरे कुछ देशों ने भी ऐसा किया है, ठीक नहीं होगा. ऐसा करना भारत की जमीनी हकीकत से आंखें मूंद लेना होगा. अगर ये कानून औपनिवेशिक काल का कानून है, तो हमारे ज्यादातर कानून भी उसी दौर के हैं.
क्या था सुप्रीम कोर्ट का आदेश
दरअसल, 11 मई को पारित आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और सभी राज्य सरकारों को धारा 124A के संबंध में जारी सभी जांचों को निलंबित करते हुए प्राथमिकी दर्ज करने या फिर कोई भी कठोर कदम उठाने से परहेज करने का निर्देश दिया. कोर्ट ने ये भी निर्देश दिया कि सभी लंबित जांच और अपील पर कार्रवाई स्थगित की जाय. कोर्ट ने ये आदेश एक याचिका पर सुनवाई के बाद के दिया था, जिसमें IPC की धारा 124A की संवैधानिकता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी.
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