Cyclone Biporjoy : सोशल मीडिया हुआ एक्टिव, यूज़र्स कविताओं के माध्यम से जाहिर कर रहे हैं तूफान का प्रकोप
भाव कोई भी हो, कवि की कलम से नहीं बच पाता है. कवि मन इतना रचनात्मक और संवेदनशील होता है, कि हर विषय पर और हर समय-काल को अपने मन के भावों द्वारा कविता के रूप में बखूबी ढालना जानता है. अरब सागर से उठा चक्रवाती तूफान बिपरजॉय भी कविता प्रेमियों के लिए तूफान से जुड़ी कविताओं को साझा करने की हरकत में ले आया है. यहां हम आपसे उन कविताओं को साझा कर रहे हैं, जो शायद न तो किसी किताब में मिलेंगी, ना ही आपने इन्हें कहीं सुना होगा, लेकिन ऐसे कई कवि हैं जिन्होंने विनाशकारी तूफानों पर अपने-अपने हिसाब से खतरनाक तूफानों को कविता में ढालने की कोशिश की है. ये कविताएं इन दिनों व्हाट्सएप से लेकर सोशल मीडिया पर लोगों के बीच साझा की जा रही हैं, आप भी पढ़ें…
1)
पागल हुई नदी
पागल हुई नदी, डूब गए किनारे
बेघर हुए लोग, फिरते मारे मारे
खेत खलिहान की पहचान मिटी
कल के सुखी लोग लगते बेचारे
पागल हुई नदी…
जल प्रलय ने कोहराम मचाया है
ज़िंदगी आज खोज रही है सहारे
पागलपन नदी का उतरा नहीं है
सपने बिखर गए हैं प्यारे-प्यारे
पागल हुई नदी…
मद्धिम हो गई रोशनी जीवन की
लगता है डूब चमके सितारे
क्या करें लोग और कहां जाएं अब?
गांव-गांव दिख रहे आज थके हारे
पागल हुई नदी…
-सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह, नासिक महाराष्ट्र
2)
प्राकृतिक आपदा और हम
देखो कैसी प्राकृतिक आपदा आई है,
हर जगह खामोशी-सी छाई है
एक वक़्त वो हुआ करता था,
जब खूब शोर हुआ करता था
आज बड़ी खामोशी है
शायद आने वाले वक़्त की कोई बदमाशी सी है
चारो और सन्नाटा है,
हर कोई छिपकर बैठा है
हैं मन मे कई सवाल
पर पूछने से घबराहा रहा है
ईश्वर से लगातार प्रार्थना कर रहा है
शायद अपने आप को बचाने की गुहार कर रहा है
देखो आज मानवता कैसी जागी,
दान-धर्म हर कोई करना चाहता
शायद अपने पापों को यूं धोना चाहता
रह-रह कर अपनों को याद कर रहा है,
शायद अपनों से मिलने की अरदास कर रहा है
अरे देखो, यह कैसी विपदा आई
जिसने हर किसी के मुख पर तालाबंदी लगाई
हर कोई एक दूसरे की खैर-खबर पूछ रहा है,
उन्हें घर पर सुरक्षित रहने की सलाह दे रहा है
देखों आज सड़कें कितनी खामोश हैं
कभी यह भी तंग होती थीं
तुम्हारे शोर से यह भी गरम होती थीं
आज सुकूं से सो रही
अब हम उकता से जाते,
यूं ही खामोश सड़कों को देख-देख कर बोर से हो जाते
अब हम भी पिंजरे मे क़ैद पंछी की तरह फड़फाड़ने लगे
शायद उड़ने के लिए अब मचलने लगे
कहां जाना है, क्या करना है, पता नहीं
बस निकलना चाहते हैं इस क़ैद के पिंजरे से
शायद सोई सड़कों को उठाना चाहते
उसके साथ भी कुछ पल बिताना चाहते
-शरद भाटिया
3)
बाढ़
नदियों की है पीठ भरी
धारा फैली हैं चारों ओर
भारी बारिश करे तबाही
फंसी पड़ी जीवन की डोर
गुंजन करती गंगा-जमुना
पानी का दिखता न छोर
मानव बस्ती डूबी पड़ी है
हाहाकार मचा चहुंओर
तन मजबूर खुला सोने को
रुकती नहीं नयन की लोर
भ्रष्ट तंत्र नाकाम पड़ी है
कथनी कुछ करनी कुछ और
किया कमाई डूब गया सब
पीर दिलों की हुई घनघोर
मानव बस्ती डूबी पड़ी है
हाहाकार मचा चहुंओर
दुखियों को नहीं दिखे आसरा
राजनीति की फैली डोर
फोटो में सब व्यस्त पड़े हैं
लूटखसोट करें हैं चोर
पीड़ा में परिवार पड़ा है
भूखे बच्चे करते शोर
मानव बस्ती डूबी पड़ी हैं
हाहाकार मचा चहुंओर
-चंद्रगुप्त नाथ तिवारी (आरा, भोजपुर)
4)
कहीं सूखा-कहीं बाढ़
कहीं-कहीं सूखा कहीं
बाढ़ की विभीषिका है
कहीं पर जंगलों में
आग है पसरती
कहीं ज्वालामुखी कहीं,
फटते है बादल तो
कहीं पर भू-कंपनों से,
शिला है दरकती
तेज धूप कहीं कहीं
लोग भूखे मरे कहीं
पेड़ों की कमी से आंधी
घर है उजाड़ती
कहीं ठिठुरन बस
बेहताशा लोग मरे
कहीं तीव्र धूप बस
बरफ़ पिघलती
कहीं पानी बिन देखो
पड़ता अकाल भाई
लहरें समुद्र कहीं
सुनामी उफनती
जाने ऐसी बुद्धि काहे
लोग हैं लगा रहे
जिसके कारण अब
आपदा पसरती
बुद्धिमान होना भी तो
जरूरी है सबको ही
कुबुद्धि विकास की है
चुहिया कतरती
यदि हमें अपनी बचानी
आगे पीढ़ियां तो
बुद्धिमता बस तुम,
बचा लो यह धरती
-अशोक शर्मा, कुशीनगर
5)
आई यह कैसी आफत
आई यह कैसी आफत
करती विनाश चारों ओर
पानी में डुबते हैं घर
मंजर फैला है घनघोर
माता चली टोकरी में डाले
है उसका अपना वह लाल
हो रही महामारी चहुं देखो
सभी आज होते कंगाल
खाने को दाना-पानी
नहीं किसी के पास
पानी से बेहाल हुए सब
अब बस प्रभु की आस
-पुष्पा निर्मल
6)
प्राकृतिक आपदा
कहीं बूंद-बूंद को तरसते लोग
तो कहीं जल का उमड़ा सैलाब है
प्यासी है धरती कहीं
तो कहीं बादलों की टकराकर है
प्रकृति का क्रोध है यह
मनुष्य की तृष्णा का है कारण
तबाह हो गई है आम जिंदगियां
दो वक्त की रोटी को मोहताज है
न सर पे छत है
न है उम्मीद की कोई किरण
हर तरफ हाहाकार है
प्रकृति का प्रकोप है यह
प्रकृति का क्रोध है यह.
-रिचा भारती
साथ ही पढ़ें, गाडरवारा के वरिष्ठ अध्यापक सुशील कुमार शर्मा तीन हाइकु कविताएं–
7)
बाढ़
एक सैलाब
बहाकर ले गया
सारे सपने.
उफनी नदी
डूबते-उतराते
सारे कचरे.
मन की बाढ़
शरीर में भूकंप
कौन बचाए.
8)
तूफान
उठा तूफान
दिल के घरौंदे को
उड़ा ले गया
तेज तूफान
दोहरे होते वृक्ष
उखड़े नहीं.
9)
प्रलय
प्रलय पल
दे रहा है दस्तक
झुके मस्तक
सात सागर
मिलेंगे परस्पर
प्रलय मीत.
प्राण कंपित
मृत्यु महासंगीत
प्रलय गीत.
धरा अम्बर
प्रणय परस्पर
प्रलय संग.
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FIRST PUBLISHED : June 15, 2023, 21:53 IST