D Voters Are The Main Election Issue In Barak Valley Of Assam, Who Are The D Voters And Where Did They Come From? – असम की बराक घाटी में ‘डी’ मतदाता प्रमुख चुनावी मुद्दा, कौन हैं ये मतदाता और कहां से आए?


असम की बराक घाटी में ‘डी’ मतदाता प्रमुख चुनावी मुद्दा, कौन हैं ये मतदाता और कहां से आए?

निर्वाचन आयोग द्वारा 1997 में असम में ‘डी’ मतदाताओं की अवधारणा पेश की गई थी.

सिलचर/करीमगंज:

विदेशी न्यायाधिकरण द्वारा 2015 में भारत की प्रामाणिक नागरिक घोषित किये जाने के बावजूद असम के कछार जिले के सैदपुर गांव की अंजलि रॉय अपने मताधिकार का इस्तेमाल करने में असमर्थ हैं क्योंकि मतदाता सूची में उनके नाम के सामने अंकित किये गये ‘संदिग्ध (डाउटफुल)’ मतदाता चिह्न को अभी तक नहीं हटाया गया है. ‘संदिग्ध’ मतदाता वे व्यक्ति हैं जिनकी पहचान मतदाता सूची पुनरीक्षण के दौरान ‘डी’ मतदाता के रूप में की गई है, या जिनके मामले विदेशी न्यायाधिकरण के पास लंबित हैं या न्यायाधिकरण द्वारा विदेशी घोषित किए गए हैं.

रॉय की पहचान 2012 में ‘डी’ मतदाता के रूप में की गई थी. ऐसा ही मामला जिले के चेइल्ताकंडी गांव की रहने वाली बनीसा बेगम का है, जिन्होंने विदेशी घोषित होने के बाद सिलचर के निरोधक शिविर में दो साल बिताये थे.

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उनके परिवार के अन्य सभी सदस्यों का नाम हालांकि राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) में दर्ज कर लिया गया है और उन्हें मतदान करने का अधिकार है, लेकिन बनेसा 26 अप्रैल को सिलचर लोकसभा चुनाव क्षेत्र में अपने मताधिकार का इस्तेमाल करने के लिए मतदान केंद्र पर नहीं जा सकेंगी.

अंजलि और बनीसा उन कई लोगों में शामिल हैं, जो बराक घाटी में करीमगंज और सिलचर निर्वाचन क्षेत्रों में ‘डी’ मतदाता होने के कारण अपना वोट नहीं डाल पाएंगे. पड़ोसी देश बांग्लादेश से विस्थापित होकर, बड़ी संख्या में हिंदू बंगाली पिछले कुछ वर्षों में घाटी में बस गए थे, और सभी राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों ने लोकसभा चुनावों में उनकी नागरिकता और ‘डी’ मतदाता टैग से संबंधित मुद्दों को चुनावी मुद्दा बनाया है.

निर्वाचन आयोग द्वारा 1997 में असम में ‘डी’ मतदाताओं की अवधारणा पेश की गई थी. यह भारत में कहीं और मौजूद नहीं है. मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा ने विधानसभा में कहा था कि राज्य में 96,987 ‘डी’ या ‘संदिग्ध’ मतदाता हैं. बराक घाटी में दो निर्वाचन क्षेत्रों में जारी प्रचार अभियान के दौरान, शर्मा ने घोषणा की थी कि बंगाली हिंदुओं की नागरिकता का मुद्दा और ‘डी’ मतदाता टैग चुनाव के बाद छह महीने के भीतर हटा दिया जाएगा.

शर्मा ने प्रचार अभियान के दौरान कहा, ‘‘हम इसके समाधान के लिए पहले कोई वादा नहीं कर सके क्योंकि केंद्र को कुछ काम करना बाकी था लेकिन अब यह पूरा हो गया है. मैं आश्वासन दे सकता हूं कि ‘डी’ मतदाताओं का मुद्दा और बंगाली हिंदुओं की नागरिकता से संबंधित अन्य समस्याओं को छह महीने के भीतर सुलझा लिया जायेगा.”

मुख्यमंत्री के बयान पर पलटवार करते हुए, करीमगंज में कांग्रेस के उम्मीदवार हाफिज अहमद राशिद चौधरी ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि सरकार इसके बारे में कुछ नहीं कर सकती क्योंकि ‘डी’ मतदाता की अवधारणा निर्वाचन आयोग के दिशानिर्देश के अनुसार पेश की गई थी. उन्होंने कहा, ‘‘सरकार इसे वापस नहीं ले सकती या अपनी ओर से कुछ नहीं कर सकती। वह आयोग से यह आग्रह कर सकती है कि 1997 में जारी दिशानिर्देश को वापस लिया जाये.”

सिलचर से भाजपा उम्मीदवार परिमल शुक्लाबैद्य ने दावा किया कि एक बार नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के तहत नागरिकता का मुद्दा हल हो जाएगा, तो बंगाली हिंदुओं से जुड़े ‘डी’-मतदाताओं के मुद्दे का समाधान किया जायेगा. कांग्रेस के उनके प्रतिद्वंद्वी सूर्यकांत सरकार ने कहा कि मुख्यमंत्री इसे चुनावी मुद्दा बना रहे हैं लेकिन ‘लोग उनके वादों को लेकर आश्वस्त नहीं हैं.’ उन्होंने कहा, ‘‘यदि शर्मा बंगाली हिंदुओं के मुद्दे का समाधान करना चाहते थे, तो वह इसे पहले ही कर सकते थे। किसी भी सरकारी नीति के जरिये छह माह में ऐसा करना संभव भी नहीं है.”

 



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