Delhi Elections case of violation of Model code of conduct against CM Atishi maximum punishment in Achar Sanhita


Model Code Of Conduct: अगर कहीं बवाल चल रहा हो तो लोग यही कयास लगाते हैं कि वहां चुनाव होने वाले होंगे, दिल्ली में भी इन दिनों कुछ यही सब चल रहा है. यहां तमाम बड़ी सीटों पर उतरे उम्मीदवार एक दूसरे पर इतना कीचड़ उछाल रहे हैं कि अब कीचड़ की भी कमी हो रही है. फिलहाल ऐसे मामलों की शिकायत चुनाव आयोग तक पहुंचाई जा रही है और आयोग की तरफ से आचार संहिता के उल्लंघन का केस दर्ज किया जा रहा है. दिल्ली की सीएम आतिशी के खिलाफ भी ऐसा ही एक मामला दर्ज किया गया है. ऐसे में हम आपको बताते हैं कि क्या होता है आचार संहिता का केस और इसमें कितनी सजा मिल सकती है. 

क्या है आचार संहिता?
अब सबसे पहले ये जान लेते हैं कि ये आचार संहिता होती क्या है, जिसके उल्लंघन की बात आजकल दिल्ली में हर कोई कर रहा है. दरअसल आचार संहिता नेताओं और उम्मीदवारों के लिए बनाई जाती है, जिसमें उन्हें ये बताया जाता है कि क्या चीजें करनी हैं और कौन सी चीजों पर पूरी तरह से पाबंदी होगी. तमाम राजनीतिक दलों की सहमति के साथ कानून के इतर ये संहिता बनाई गई थी. 

बिना कोर्ट के आदेश सुना सकता है आयोग
अब अगर चुनाव से भ्रष्टाचार और बाकी मामले कोर्ट जाएंगे तो वो कानूनी पचड़े में फंसकर अगले चुनावों तक ही सुलझ पाएंगे, ऐसे में चुनाव आयोग को ही ये शक्ति दी गई है कि वो खुद केस दर्ज कर किसी नेता या उम्मीदवार के खिलाफ कार्रवाई कर सकता है. भारत के संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत चुनाव आयोग को ये अधिकार मिले हैं.  

क्या सजा सुना सकता है चुनाव आयोग?
हर चुनाव के दौरान चुनाव आयोग के पास हजारों ऐसे मामले आते हैं जिनमें आचार संहिता का उल्लंघन होता है. इन मामलों में चुनाव आयोग की तरफ से केस दर्ज किए जाते हैं, ज्यादातर बार उम्मीदवार को चेतावनी देते हुए छोड़ दिया जाता है. हालांकि अगर मामला गंभीर है और हेट स्पीच दी गई है तो चुनाव प्रचार पर बैन लगाया जाता है. कई बड़े नेताओं के साथ ऐसा हो चुका है. 

गंभीर मामलों में हो सकती है जेल
गंभीर मामलों में चुनाव आयोग भारी जुर्माना और नामांकन रद्द करने जैसे फैसले भी ले सकता है, हालांकि ऐसे मामले काफी कम ही देखने के लिए मिले हैं. चुनावी हिंसा और जनता को भड़काने वाले भाषण देने के लिए आरोपी को जेल तक भेजा जा सकता है. ऐसे मामलों में दो साल तक की जेल हो सकती है. हालांकि नेता इसे चुनौती जरूर दे सकते हैं. ज्यादातर मामलों में चुनाव आयोग की तरफ से सख्ती नहीं दिखाई जाती है, यही वजह है कि इसे बिना दांत वाला शेर भी कहा जाता है. 

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