Delhi First Kite Maker: दिल्ली में सबसे पहले किसने बनानी शुरू की थी पतंग? कभी सोनिया गांधी से मिला था अवॉर्ड, अब क्यों ठप हो गया कारोबार?
दिल्ली के खुले आसमान में पहली बार आजादी के वक्त जिस इंसान ने पतंग बनाकर उड़ाई थी, आज भी उस शख्स की पीढ़ी पतंग बना रही है. लेकिन पतंग के घटते कारोबार और लोगों में कम होती हुई पतंगबाजी की दिलचस्पी की वजह से अब यह पीढ़ी जैसे तैसे अपना गुजारा कर रही है. उनके पिता उस्ताद उमर दराज का नाम पूरी दुनियाभर में हैं. रसिया, अमेरिकन और लंदन एंबेसी से लेकर देश में राजीव गांधी की सरकार के दौरान सोनिया गांधी ने भी इनको सम्मानित किया था. पिता के रहते कभी शानो शौकत की जिंदगी जीने वाली इस पीढ़ी का हाल अब बेहाल है.
उस्ताद उमर दराज के बेटे ने कही ये बात
लोकल18 ने पतंगबाजी के उस्ताद उमर दराज के बेटे मोहम्मद फारुख के पास पहुंचकर उनसे बात की. तो वह अपने पुराने दिनों को याद करते हुए भावुक हो गए. मोहम्मद फारूख ने बताया कि उनके पिता उमर दराज का सम्मान दुनिया भर में हुआ. क्योंकि उनके पिता ने कागज के साथ ही कपड़े की पतंग बनानी शुरू की थी जो फैब्रिक की पतंग थी. दुनियाभर में इन पतंगों को खूब पसंद किया जाता था. हमारे देश में भी जोधपुर में उस्ताद ए पतंगबाज में उनका नाम दर्ज है. वह कहते हैं कि पिता को देश-विदेश दोनों जगह सम्मान मिला. पिता ने दिल्ली के आसमान में पहली पतंग उड़ाई. दिल्ली में पतंग बनाने वाले इकलौते और पहले कारोबारी वही थे. जिंदगी बहुत ही शानो शौकत से उन्होंने काटी और हमें भी आगे बढ़ाया लेकिन अब पहले जैसे हाल नहीं हैं.
अर्श से फर्श तक पतंगबाजी का कारोबार
मोहम्मद फारूख ने बताया कि अब पतंग उड़ाने का वक्त लोगों के पास नहीं है. लोग सोचते हैं कि 3 से 4 रुपए की पतंग लाकर वह उड़ा देंगे इससे उन्हें क्या फायदा होगा. अब लोग अपने कारोबार और मोबाइल में ज्यादा व्यस्त रहते हैं. यही वजह है कि पतंगबाजी का कारोबार भारत में अब कम होता जा रहा है. कई पतंगबाजों का काम पूरी तरह से ठप है. उन्होंने बताया कि उनके पिता हमेशा उनसे कहते थे कि पढ़ाई कर लो. लेकिन वह अपने पिता की शानो शौकत देखकर इसे ही आगे बरकरार रखना चाहते थे. लेकिन उन्हें नहीं पता था कि आने वाला वक्त पतंगबाज और पतंग के लिए अच्छा नहीं है इसलिए अब पछतावा होता है.
पतंग बनाना हो गया है महंगा
मोहम्मद फारूक कहते हैं कि उनके पिता का निधन हो जाने के बाद उनके परिवार में पतंगबाजी का कारोबार काफी प्रभावित हुआ. क्योंकि जिस तरह से वह पतंग बनाते थे उस तरह से पतंग आज तक उनकी पीढ़ी में कोई बना नहीं सका और जो नाम उनके पिता ने कमाया उसे भी उनकी पीढ़ी में आज तक कोई कमा नहीं सका. बल्कि पिता के नाम से ही आज भी उनको 12 महीने कहीं ना कहीं से आर्डर मिलता रहता है और वह पतंग बनाते रहते हैं.
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आगे भी अपने पिता के इस कारोबार को वह करते रहेंगे. वह कहते हैं कि अब आर्थिक हालात उतने अच्छे नहीं है क्योंकि एक पतंग बनाना ही काफी महंगा है. कागज से लेकर सब कुछ काफी महंगा हो गया है. छोटी पतंग को बनाने में 3 घंटे का वक्त लगता है जबकि बड़ी पतंग को बनाने में 10 दिन का वक्त लगता है. दिल्ली में कभी कबूतरबाजी और पतंगबाजी मशहूर थी, लेकिन अब ऐसा नहीं रह गया है.
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FIRST PUBLISHED : December 23, 2024, 14:02 IST