District Level Teams Will Investigate Violence Cases Manipur Government To Supreme Court – 3 महिला जजों का पैनल, 42 स्पेशल टीमें करेंगी जांच : मणिपुर मामलों में SC का आदेश



District Level Teams Will Investigate Violence Cases Manipur Government To Supreme Court - 3 महिला जजों का पैनल, 42 स्पेशल टीमें करेंगी जांच : मणिपुर मामलों में SC का आदेश

DIG स्तर के अफसर 6-6 SIT की निगरानी करेंगे. तीन पूर्व हाईकोर्ट जजों की अध्यक्षता में एक समिति का गठन  होगा. जो मणिपुर में राहत, पुनर्वास की निगरानी करेगी. जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट की पूर्व CJ गीता मित्तल की अगुवाई में बॉम्बे हाईकोर्ट की पूर्व जज शालिनी और दिल्ली हाईकोर्ट की पूर्व जज आशा मेनन की कमेटी का गठन करेंगे.

CJI डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि हम हाईकोर्ट के जजों की कमेटी और IPS अफसर दत्तात्रेय पद्सालजिलकर को समय-समय पर रिपोर्ट दाखिल करने को कहेंगे. हमारा प्रयास कानून व्यवस्था और भरोसे को बहाल करने का होगा.

सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर में जांच की निगरानी करने और सुप्रीम कोर्ट को रिपोर्ट करने के लिए मुंबई के पूर्व कमिश्नर और महाराष्ट्र के डीजीपी दत्तात्रय पडसलगीकर को नियुक्त किया है. सीजेआई का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट यह सुनिश्चित करना चाहता है कि संतुलन बना रहे और जांच ठीक से हो.

मणिपुर हिंसा के मामले में सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने इस मामले पर सुनवाई की. केंद्र की ओर से AG आर वेंकेटरमनी ने कोर्ट में अपनी दलील रखी. वहीं मणिपुर DGP राजीव सिंह भी अदालत में पेश हुए. केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में स्टेटस रिपोर्ट दाखिल की है.

केंद्र ने कोर्ट को बताया कि मणिपुर में हिंसा से संबंधित मामलों की जांच के लिए जिलावार विशेष जांच दल गठित किए जाएंगे. वहीं कोर्ट की निगरानी समिति से जांच कराने की मांग वाली याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय ने अपना आदेश सुरक्षित रख लिया है.

अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने कहा, “किसी भी बाहरी जांच की अनुमति दिए बिना, जिला स्तर पर एसआईटी का गठन किया जाना चाहिए.”

वहीं सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यदि महिलाओं के खिलाफ अपराध से संबंधित 11 से अधिक एफआईआर हैं, जिनकी जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो द्वारा की जा रही है, तो उनकी जांच एक पुलिस अधीक्षक रैंक के अधिकारी की अध्यक्षता में जिला स्तरीय एसआईटी द्वारा की जाएगी. 

उन्होंने कहा, “सीबीआई टीम, जो इसकी जांच करेगी, उसमें दो महिला एसपी अधिकारी होंगी. सीबीआई में देश भर से अधिकारी हैं. हमने वो संतुलन बनाया है.”

अटॉर्नी जनरल ने अदालत को बताया कि सरकार बहुत परिपक्व स्तर पर स्थिति को संभाल रही है, और मामलों को अलग-अलग करके एक हलफनामा दायर किया है.

वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने तर्क दिया कि हिंसा अभी भी जारी है, ऐसे में जांच और आगे के अपराधों पर रोकथाम, ये दोतरफा दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है.

वहीं वकील निज़ाम पाशा ने कहा कि महिलाओं के खिलाफ अपराध के 16 एफआईआर हैं, उन सभी को सीबीआई को स्थानांतरित करने की जरूरत है.

उन्होंने कहा, “वे इसे एसआईटी कह रहे हैं, लेकिन इसका चयन राज्य द्वारा किया जाता है. सक्रिय भागीदारी से लेकर अपराध तक, आरोप राज्य पुलिस के खिलाफ हैं. यदि चयन राज्य कैडर द्वारा होता है तो गंभीरता से जांच में संशय है. चयन अदालत द्वारा होना चाहिए. सरकारी अभियोजकों के लिए अन्य राज्यों के कानून अधिकारी होने चाहिए.”

सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर में मौजूदा संकट को कम करने के उद्देश्य से वकील निज़ाम पाशा के मूल्यवान और ‘निष्पक्ष’ सुझावों के लिए पिछले महीने सराहना की थी.

वकील प्रशांत भूषण ने तर्क दिया कि हथियारों और गोला-बारूद की आपूर्ति की जांच के लिए एक स्वतंत्र निकाय होनी चाहिए.

केंद्र ने तर्क दिया कि जांच में पुलिस पर भरोसा नहीं करना उचित नहीं होगा. एसजी मेहता ने कहा, “सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित की जाने वाली प्रस्तावित समिति में केवल न्यायिक अधिकारियों को ही शामिल किया जाए, नागरिक समाज समूहों को नहीं.”

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के तीन पूर्व जजों की एक समिति का प्रस्ताव रखा, जो जांच के अलावा पुनर्वास और अन्य मुद्दों पर भी गौर करेगी, समिति का दायरा व्यापक होगा.

अदालत ने कहा, “हमारा प्रयास कानून के शासन में विश्वास की भावना बहाल करना है. हम एक स्तर पर तीन पूर्व एचसी न्यायाधीशों की एक समिति का गठन करेंगे. यह समिति जांच के अलावा अन्य चीजों को भी देखेगी, जिसमें राहत और उपचार के उपाय आदि शामिल होंगे.”

गौरतलब है कि एक अगस्त को शीर्ष अदालत ने कहा था कि मणिपुर में कानून-व्यवस्था और संवैधानिक मशीनरी पूरी तरह से चरमरा गई है. कोर्ट ने जातीय हिंसा की घटनाओं, विशेषकर महिलाओं को निशाना बनाने वाली घटनाओं की धीमी और सुस्त जांच के लिए राज्य पुलिस को फटकार लगाई थी और 7 अगस्त को अपने सवालों का जवाब देने के लिए डीजीपी को तलब किया था.

केंद्र ने पीठ से आग्रह किया था कि महिलाओं को भीड़ द्वारा नग्न परेड कराने वाले वीडियो से संबंधित दो एफआईआर के बजाय, महिलाओं और बच्चों के खिलाफ हिंसा से जुड़ी 6,523 एफआईआर में से 11 को सीबीआई को स्थानांतरित किया जा सकता है और मणिपुर से बाहर मुकदमा चलाया जा सकता है.

पीठ हिंसा से संबंधित लगभग 10 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है, जिसमें पुनर्वास और अन्य राहतों के अलावा मामलों की अदालत की निगरानी में जांच सहित राहत की मांग की गई है.

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