Diwali 2024: सालभर के इंतजार के बाद घूमने लगे कुम्हारों के चाक, मिट्टी न होने से गहराता संकट
देहरादून. दिवाली (Diwali 2024) का हर किसी को बेसब्री से इंतजार रहता है. सालभर के इंतजार के बाद उत्तराखंड में इस साल 1 नवंबर को दीपावली का त्योहार मनाया जाएगा. ऐसे में देहरादून की कुम्हार मंडी में कुम्हारों के चाक घूमने लगे हैं. दिवाली दीपों की आवली यानी कतारों को कहा जाता है, जिसके लिए बहुत सारे दीयों की जरूरत होती है और कुम्हार इन्हें मिट्टी से बनाते हैं, इसलिए सिर्फ दिवाली पर ही कुम्हारों की अच्छी आमदनी हो जाती है.
देहरादून के कुम्हारों को मिट्टी आसानी से उपलब्ध नहीं हो पाती है क्योंकि शहर के बीचोंबीच स्थित कुम्हार मंडी में दूर-दूर तक मिट्टी नजर नहीं आती है. दूर इलाकों से मिट्टी खरीदकर लानी पड़ती है, जो बहुत महंगी मिलती है. मुश्किल से मिट्टी मिलने के बाद देहरादून के कुम्हार दीये और मिट्टी के बर्तन बनाने का काम करते हैं. दिवाली के लिए राजधानी की कुम्हार मंडी में बाजार सजने लगा है. दीये, भगवान की मूर्तियां और कई सजावटी सामान यहां बेचे जा रहे हैं. यहां के कुछ कुम्हार इन्हें खुद ही तैयार करते हैं, तो कुछ कुम्हार चंडीगढ़, यूपी और कोलकाता से कई तरह के आइटम मंगवाते हैं. कुम्हार की सालभर ठहरी हुई चाक को दिवाली जैसे त्योहारों पर ही गति मिलती है और इस साल उनकी अच्छी आमदनी होने की उम्मीद है. एक दर्जन दीयों की कीमत 20 रुपये है.
मिट्टी के दीयों का अपना महत्व
कुम्हार लक्ष्मीचंद ने लोकल 18 से कहा कि दिवाली पर मिट्टी के दीपकों से घर को रोशन करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. भले ही आज कई चाइनीज प्रोडक्ट्स आ गए हों लेकिन दीयों का अपना महत्व होता है. वह पांच साल की उम्र से अपना पुश्तैनी काम करते आ रहे हैं. वह कई तरह के मिट्टी के बर्तन-शोपीस आदि बना रहे हैं. पहले मिट्टी के बर्तनों का उपयोग होता था लेकिन धीरे-धीरे मिट्टी के बर्तनों का चलन खत्म होने से उनका रोजगार ढीला पड़ गया है. वहीं दिवाली पर ही उनकी आमदनी होती है.
महंगी मिट्टी से परेशान हैं कुम्हार
लक्ष्मीचंद ने कहा कि वह अपना पुश्तैनी काम कई दशकों से कर रहे हैं. पहले मिट्टी आसानी से मिल जाती थी लेकिन जनसंख्या के दबाव और शहरीकरण ने खेतों को खत्म कर दिया है, जिससे कुम्हार मंडी के कुम्हारों के सामने मिट्टी का संकट भी खड़ा हो गया है. उन्होंने कहा कि उन्हें दूरदराज के इलाकों से मिट्टी खरीदनी पड़ती है, जो बहुत महंगी मिलती है. इस बार उन्हें बड़ी मुश्किल से मिट्टी मिली है, जो अन्य बार के मुकाबले महंगी पड़ी है. अब मोटर मशीन में मिट्टी के उत्पाद बनाए जाते हैं जबकि पुराने वक्त में चाक से बनाए जाते थे. काम आसान हो गया है लेकिन आज के युवा अपना पुश्तैनी काम मिट्टी उपलब्ध न होने के कारण उसे छोड़ने को मजबूर हैं.
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FIRST PUBLISHED : October 30, 2024, 02:22 IST