Do Not Complete Marriage Proposal After Promise Is Not Cheating Says Supreme Court – वादा करने के बाद शादी नहीं करने वाले शख्स को बेगुनाह करार दिया सुप्रीम कोर्ट ने
नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक ऐसे शख्स के खिलाफ धोखाधड़ी का मामला खारिज कर दिया, जिसने लड़की के परिवार से वादा करने के बाद भी शादी (Marriage Proposal) नहीं की. राजू कृष्ण शेडबलकर के खिलाफ ऐसे मामले को रद्द करते हुए जस्टिस सुधांशु धूलिया और प्रसन्ना बी वराले ने कहा, “शादी का वादा करके भी शादी नहीं करने के कई कारण हो सकते हैं…”
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बता दें कि राजू कृष्ण शेडबलकर ने 2021 के कर्नाटक हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) का दरवाजा खटखटाया था. दरअसल कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High Court) ने अपने आदेश में राजू को धारा 417 के तहत धोखाधड़ी का दोषी ठहराया था. इसके तहत एक साल तक की जेल या जुर्माना या दोनों का प्रावधान है.
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“शुरू से धोखा देने का इरादा अपराध होता है”
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “अदालत ने बार-बार कहा है कि धोखाधड़ी का अपराध बनाने के लिए धोखा देने या धोखा देने का इरादा शुरू से ही होना चाहिए. सोचने की कोई लिमिट नहीं, यह मिली हुई शिकायत से भी पता चलता है.” बता दें कि एक लड़की की शिकायत पर राजू कृष्ण शेडबलकर, उनके भाइयों, बहन और मां के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था. लड़की ने राजू और उसके परिवार को शादी न करके उसे धोखा देने का आरोप लगाया था.
“मुझे किया वादा और शादी किसी और से की”
लड़की का आरोप था कि उसके परिवार को राजू शेडबलकर उसके लिए अच्छा लगा, जिसके बाद दोनों ने एक-दूसरे से बात करना शुरू कर दिया था. लड़का का कहना है कि उसके पिता 75 हजार रुपए देकर शादी के लिए वेन्यू भी बुक करवा चुके थे, लेकिन बाद में पता चला कि राजू शेडबलकर ने किसी और से शादी कर ली है.
सुप्रीम कोर्ट ने पलटा कर्नाटक हाई कोर्ट का फैसला
कर्नाटक हाई कोर्ट ने राजू शेडबलकर को छोड़कर सभी आरोपियों के खिलाफ मामला खारिज कर दिया था. हाईकोर्ट ने कहा कि राजू की वजह से ही लड़की के परिवार ने मैरिज हॉल बुक करवाया, तो प्रथम दृष्टया मामला बनता है. कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं है कि लड़के का इरादा लड़की को धोखा देने का था. “सैद्धांतिक रूप से ऐसे मामलों में धोखाधड़ी का अपराध साबित करने के लिए अभियोजन पक्ष के पास मुकदमा चलाने के लिए विश्वसनीय और विश्वसनीय सबूत होना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष के पास ऐसा कोई सबूत नहीं है, इसलिए धारा 417 के तहत कोई अपराध भी नहीं है.