दिल्ली विश्वविद्यालय के VC ने भी माना, राज्यों के बोर्ड नहीं करते एक जैसी मार्किंग, ऐडमिशन प्रॉसेस की समीक्षा ज़रूरी

दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति ने कहा है कि अगले साल से ऐडमिशन प्रक्रिया में कुछ बदलाव करने पर विचार किया जा रहा है। हालांकि फाइनल फैसला बैठक के बाद ही लिया जाएगा।

दिल्ली विश्वविद्यालय के वीसी योगेश सिंह ने शुक्रवार को कहा कि जिस प्रक्रिया के तहत यूनिवर्सिटी में ऐडमिशन किए जाते हैं, उसमें कुछ ख़ामियां भी हैं जिनमें सुधार की ज़रूरत है। उन्होंने कहा कि राज्यों के अलग-अलग बोर्ड अपने हिसाब से मार्किंग करते हैं। कहीं उदारवादी व्यवस्था है तो कहीं बहुत ही कड़ी मार्किंग होती है। ऐसे में ऐडमिशन प्रक्रिया में इस बात पर ध्यान देना बहुत ज़रूरी है।

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ को दिए गए एक इंटरव्यू में सिंह ने कहा, ‘मौजूदा सिस्टम में कई कमियां हैं। हम छात्रों के प्रदर्शन को इस तरह से केवल मार्क्स के भरोसे नज़र अंदाज नहीं कर सकते। उदाहरण के तौर पर उत्तर प्रदेश बोर्ड में मार्किंग काफी कड़ी होती है। ऐसे में उन्हें नुकसान उठाना पड़ता है। अगर वे दिल्ली यूनिवर्सिटी में ऐडमिशन लेना चाहते हैं तो उन्हें पूरा मौका नहीं मिल पाता है।’

उन्होंने कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय इस बात पर विचार कर रहा है कि अगले साल ऐडमिशन किस तरह से किया जाए। 10 दिसंबर को होने वाली अकैडमिक काउंसिल की मीटिंग के बाद इस बात का फैसला किया जाएगा।

योगेश सिंह ने कहा, ‘पहला विकल्प यह है कि मौजूदा सिस्टम चलता है। वहीं दूसरा ऑप्शन यह है कि सभी बोर्ड के मार्क्स का नॉर्मलाइजेशन किया जाए। मान लीजिए एक बोर्ड में टॉपर 90 प्रतिशत वाला है औऱ दूसरे में 70 प्रतिशत वाला ही टॉपर है। हमें सभी को 100 फीसदी नॉर्मलाइज करना होगा फिर मेरिट लिस्ट निकालनी होगी। हालांकि यह तरीका आसान नहीं है। BITS इसी नियम के तहत ऐडमिशन लेता है।’

सिंह ने कहा कि अगला विकल्प एंट्रेंस टेस्ट है। यह अच्छा विकल्प है या नहीं, ये तो अभी मैं नहीं कह सकता। लेकिन बैठक में इस विकल्प पर भी चर्चा की जाएगी। इस महीने के आखिरी तक आखिरी फैसला ले लिया जाएगा ताकि छात्रों को तैयारी के लिए पर्याप्त समय मिल जाए।

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