Ekadashi Vrat: त्रिस्पर्शा योग में एकादशी, व्रत से मिलेगा 1000 एकादशी का फल, ज्योतिष से जानिए विस्तार से


Papkunsha Ekadashi : एकादशी, हिंदू पंचांग के मुताबिक हर महीने में आने वाली ग्यारहवीं तिथि को कहते हैं, यह तिथि दो बार आती है, एक पूर्णिमा के बाद और दूसरी अमावस्या के बाद. पूर्णिमा के बाद आने वाली एकादशी को कृष्ण पक्ष की एकादशी और अमावस्या के बाद आने वाली एकादशी को शुक्ल पक्ष की एकादशी कहते हैं.ये तिथि भगवान विष्णु को समर्पित है.इस दिन व्रत रखने से शारीरिक परेशानियां दूर होती हैं, साथ ही अनजाने में हुए पाप भी खत्म होते हैं और शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है. इस बार 14 अक्टूबर को एकादशी, द्वादशी और त्रयोदशी तीनों तिथियां एक साथ आ रही हैं, इससे त्रिस्पर्शा योग भी बन रहा है. कहा जाता है कि इस शुभ योग में पूजा-पाठ करने से तीन गुना पुण्य मिलता है.

क्या है त्रिस्पर्शा योग: सूर्योदय से कुछ मिनटों पहले एकादशी हो, फिर पूरे दिन द्वादशी रहे और उसके बाद त्रयोदशी तिथि हो तो ये त्रिस्पर्शा द्वादशी कहलाती है.यानी की एक ही दिन में तीनों तिथियां आने से ऐसा योग बनता है.ऐसा संयोग अतिदुर्लभ है. इसलिए इस दिन पूजा-पाठ का महत्व बढ़ जाता है.

पूजा विधि: इस दिन सूर्योदय से पहले तिल के पानी से स्नान करने का महत्व है.नहाने के बाद पीले या सफेद वस्त्र पहनकर पंचोपचार से भगवान विष्णु की पूजा करें.पूजा में पंचामृत के साथ ही शंख में दूध और जल मिलाकर भगवान का अभिषेक करने का विशेष विधान है.ऐसा करने से गोमेध यज्ञ करने जितना फल मिलता है.भगवान विष्णु को धूप-दीप दिखाकर नैवेद्य लगाएं और पूजा के बाद व्रत-कथा सुनें. इसके बाद आरती करें और प्रसाद बांट दें.

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दान से मिलेगा अश्वमेध यज्ञ समान फल : पापांकुशा एकादशी त्रिस्पर्शा योग के दिन दान करने से पापों से मुक्ति मिलती है. इस दिन वस्त्र, अन्न, धन, तुलसी के पौधे, मोरपंख और कामधेनु की प्रतिमा का दान करना अत्यंत विशेष रूप से फलदायक माना जाता है, साथ ही शिवपुराण के अनुसार तिल दान करने से उम्र में बढ़ोतरी होती है.

कैसे बन रहा है त्रिस्पर्शा योग: जब किसी दिन अरुणोदय काल यानी सूर्योदय से कुछ मिनटों पहले एकादशी हो, फिर पूरे दिन द्वादशी रहे और उसके बाद त्रयोदशी तिथि हो तो ये त्रिस्पर्शा द्वादशी कहलाती है. ये द्वादशी भगवान विष्णु को बहुत प्रिय है. एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी – तीनों तिथियां एक ही दिन में आ जाने से त्रिस्पर्शा होती हैं. इस महायोग में व्रत-उपवास, स्नान-दान और भगवान विष्णु की पूजा करने से जाने-अनजाने में हुए हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं.

त्रिस्पृशा एकादशी महायोग कथा: पद्म पुराण के अनुसार देवर्षि नारदजी ने भगवान शिवजी से पूछा सर्वेश्वर! आप त्रिस्पृशा नामक व्रत का वर्णन कीजिए, जिसे सुनकर लोग कर्मबंधन से मुक्त हो जाते हैं.
महादेवजी बोले: विद्वान्! देवाधिदेव भगवान ने मोक्षप्राप्ति के लिए इस व्रत की रचना की है, इसीलिए इसमें वैष्णवी तिथि कही गई है. भगवान माधव ने गंगाजी के पापमुक्ति के बारे में बताया था, जब एकादशी, द्वादशी तथा रात्रि के अंतिम प्रहर में त्रयोदशी भी हो तो उन्हें त्रिस्पृशा भाई चाहिए. यह तिथि धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाली तथा सौ करोड़ तीर्थयात्रियों से भी अधिक महत्वपूर्ण है. इस दिन भगवान के साथ सद्गुरु की पूजा करनी चाहिए. एक त्रिस्पृशा एकादशी के उपवास से एक हजार एकादशी व्रतों का फल प्राप्त होता है. इस एकादशी की रात में जागरण करने वाला भगवान विष्णु के स्वरूप में लीन हो जाता है.

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यह व्रत सम्पूर्ण पाप-राशियों का शमन करने वाला, महान दुःखों का विनाशक और सम्पूर्ण इच्छाओं का दाता है. इस त्रिस्पृशा के व्रत से ब्रह्महत्या जैसे महापाप भी नष्ट हो जाते हैं.  हजार अश्वमेघ और सौ वाजपेय यज्ञों का फल मिलता है. यह व्रत करने वाला पुरुष पितृ कुल, मातृ कुल तथा पत्नी कुल के साथ-साथ विष्णुलोक में प्रतिष्ठित होता है. इस दिन द्वादश अक्षर मंत्र अर्थात ॐ नमो भगवते वासुदेवाय का जप करना चाहिए जिसने यह व्रत कर लिया उसने सम्पूर्ण व्रतों का अनुष्ठान कर लिया.

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