Explainer: उमर अब्दुल्ला का पीएम मोदी की ओर क्यों है झुकाव? क्या है J&K के फ्यूचर सीएम के दिल में


Omar Abdullah: नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव जीतने के बाद जो बयान दिया वो काफी मानीखेज है. उमर अब्दुल्ला ने कहा, ‘परिसीमन हो गया, अब चुनाव भी हो गए हैं. इसलिए केवल राज्य का दर्जा देना बाकी है जिसे जल्द ही बहाल किया जाना चाहिए.’ लेकिन यह पूछे जाने पर कि जम्मू-कश्मीर सरकार और केंद्र के बीच समन्वय कितना जरूरी है, इस पर उन्होंने कहा कि नई दिल्ली से टकराव से कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता. 

उमर अब्दुल्ला का बयान नरमी का संकेत दे रहा है. इसका मतलब है कि वह टकराव का रास्ता छोड़कर साथ चलने को तवज्जो दे रहे हैं. जम्मू-कश्मीर में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरने के बाद उमर का यह रुख काफी मायने रखता है. शायद इसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि वह जानते हैं कि मोदी सरकार के तालमेल के बिना राज्य में सरकार चलाना उनके लिए मुश्किल होगा. तो क्या सुलह का यह स्वर उनके और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के संबंधों को मजबूत कर सकता है? 

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मोदी को लेकर लहजे में नर्मी
निश्चित तौर पर जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव के नतीजे कुछ निर्विवाद तथ्य सामने लाये हैं. और ये तथ्य अगले पांच वर्षों के लिए सरकार का आधार बनेंगे. उमर अब्दुल्ला इन तथ्यों से अच्छी तरह वाकिफ हैं. उनकी पार्टी के सबसे बड़े दल के रूप में उभरने के बाद उनके बयान इसकी तस्दीक करते हैं. ध्यान देने योग्य बात यह है कि उमर अब्दुल्ला नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के प्रति सौहार्दपूर्ण लहजे में बात कर रहे हैं.

घाटी में एनसी, मैदान में बीजेपी
जम्मू-कश्मीर चुनाव के बाद जो तथ्य सामने आए हैं, वह यह है कि एनसी के पास 42 सीटें हैं, लेकिन 48 सीटों के साथ एनसी-कांग्रेस गठबंधन, जम्मू-कश्मीर विधानसभा में 45 के आधे रास्ते के निशान से थोड़ा ऊपर है. घाटी में एनसी की जीत हुई है, जबकि जम्मू के मैदानी इलाकों ने निर्णायक रूप से बीजेपी को वोट दिया है. जम्मू क्षेत्र में कांग्रेस सिर्फ एक सीट हासिल कर सकी है. दूसरा तथ्य यह है कि जम्मू-कश्मीर एक केंद्र शासित प्रदेश है और केंद्र, उपराज्यपाल (एलजी) के माध्यम से, सरकार के दैनिक कामकाज पर नियंत्रण रखता है.

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उमर का सहज संबंध बनाने पर जोर
उमर अब्दुल्ला, जिनके मुख्यमंत्री बनने की संभावना है, को इसका एहसास है. अब्दुल्ला ने चुनाव परिणाम आने के बाद अपनी टिप्पणी में कहा, “हमें केंद्र के साथ समन्वय की जरूरत है. केंद्र के साथ लड़कर जम्मू-कश्मीर के कई मुद्दों का समाधान नहीं किया जा सकता है.” उन्होंने कहा, ”मैं यह सुनिश्चित करने के लिए हर संभव प्रयास करूंगा कि आने वाली सरकार एलजी और केंद्र सरकार दोनों के साथ सहज संबंधों के लिए काम करे.”

एनसी को कांग्रेस की जरूरत नहीं
उमर अब्दुल्ला ने कहा की कि कांग्रेस के साथ गठबंधन के बिना भी नेशनल कॉन्फ्रेंस कैसे अच्छा प्रदर्शन करती. उमर ने कहा, “कांग्रेस के साथ गठबंधन हमारे लिए सीटों के बारे में नहीं था. हम कांग्रेस के बिना भी सीटें जीत सकते थे, शायद उनमें से एक को छोड़कर.” उन्होंने यह भी कहा कि नई सरकार की प्राथमिकता जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करना है जिसके लिए वह दिल्ली में सरकार के साथ काम करेगी. उन्होंने कहा, “इस संबंध में मेरा मानना ​​है कि प्रधानमंत्री एक सम्माननीय व्यक्ति हैं, उन्होंने यहां चुनाव प्रचार के दौरान लोगों से वादा किया है कि राज्य का दर्जा बहाल किया जाएगा. माननीय गृह मंत्री ने भी ऐसा ही किया.”

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अनुच्छेद 370 पर फिलहाल टकराव नहीं
अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद जम्मू-कश्मीर राज्य को जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया गया, जिसने राज्य को एक विशेष दर्जा दिया. उमर ने यह भी संकेत दिया है कि अनुच्छेद 370 के मुद्दे पर कम से कम फिलहाल कोई टकराव नहीं होगा. उमर अब्दुल्ला ने कहा, “हमारा राजनीतिक रुख कभी नहीं बदला है. भाजपा से अनुच्छेद 370 की बहाली की उम्मीद करना मूर्खता है. हम इस मुद्दे को जीवित रखेंगे. सही समय आने पर हम अनुच्छेद 370 की बहाली के लिए संघर्ष करना जारी रखेंगे.”

बीजेपी का राजनीतिक विरोध जारी रहेगा
उमर अब्दुल्ला ने प्रशासनिक कारणों से व्यावहारिक रुख अपनाया है. लेकिन क्या इससे कोई राजनीतिक मेलजोल देखने को मिलेगा? उन्होंने अपने राजनीतिक रुख को स्पष्ट करते हुए कहा, “बीजेपी को लेकर केवल एनसी का प्रेम नहीं दिखेगा, बल्कि उन्हें विपरीत हालात भी झेलने पड़ेंगे. हम राजनीतिक रूप से एक-दूसरे का विरोध करना जारी रखेंगे. मैं एक तरफ एनसी और भाजपा और दूसरी तरफ जम्मू-कश्मीर सरकार और केंद्र के बीच फर्क बता रहा हूं.”

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एनसी-बीजेपी पहले रहे हैं साझेदार
हालांकि यह बात सही है कि फिलहाल एनसी और बीजेपी के बीच किसी राजनीतिक गठबंधन की उम्मीद नहीं है, लेकिन ये दोनों दल पहले साझेदार रहे हैं. एनसी अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार का एक घटक दल था और उमर अब्दुल्ला 1999 और 2002 के बीच वाजपेयी सरकार में मंत्री थे. इंडिया टुडे वेबसाइट की एक रिपोर्ट के अनुसार भाजपा नेता देवेंद्र सिंह राणा ने बताया कि अनुच्छेद 370 निरस्त होने के बाद भी नेशनल कॉन्फ्रेंस ने 2019 में बीजेपी के साथ सरकार बनाने की कोशिश की थी. 

2019 में एनसी ने की थी कोशिश
देवेंद्र राणा की बात इसलिए नहीं नकारी जा सकती, क्योंकि वह उमर अब्दुल्ला के राजनीतिक सलाहकार थे और तीन साल पहले बीजेपी में शामिल हुए हैं. देवेंद्र राणा ने कहा, “लेकिन उस समय भाजपा नेतृत्व ने एनसी नेताओं के सभी प्रस्तावों को खारिज कर दिया.” इसलिए, अगर बीजेपी और एनसी एक साथ आने का फैसला करते हैं तो अनुच्छेद 370 का मुद्दा बाधा नहीं बन सकता है. 

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