Explainer: शुरुआती ब्रह्माण्ड में कैसे बनते थे ग्रह? जेम्स वेब टेलीस्कोप ने दिया इस सवाल का जवाब


अभी तक के स्पेस के अध्ययन बताते रहे हैं कि ब्रह्माण्ड की शुरुआत में ग्रहों का बनना
उतना आसान नहीं था जितना वह बाद में होता चलता है.  वैज्ञानिकों को इसके बहुत संकेत मिले थे, लेकिन 20 साल पहले हबल टेलीस्कोप ने इस धारणा के उलट कुछ और ही देखा, जिससे वैज्ञानिक कुछ कन्फ्यूज दिखे. अब हाल ही में नासा के जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप की तस्वीरों की स्टडी से वैज्ञानिक इस बात की पुष्टि कर पाए हैं कि हबल का संदेह सही था और वैज्ञानिकों की अब तक की सोच गलत थी.

20 साल पुरानी तस्वीरों से
20 साल पहले हलब टेलीस्कोप की तस्वीरे ऐसे संकेत दे रही थीं कि शुरुआती ब्रह्माण्ड के तारों के बहुत ही कठोर वातावरण में ग्रह बन सकते हैं और जिंदा भी रह सकते हैं. साल 2003 में हबल ने ऐसे बड़े ग्रह की खोज की थी जो एक ऐसे पुराने तारे का चक्कर लगा रहा था जो खुद ब्रह्माण्ड जितना पुराना था. इस खोजने  वैज्ञानिकों को बहुत ही ज्यादा भ्रमित कर दिया था.

भारी तत्वों की कमी
ऐसा इसलिए था क्योंकि वैज्ञानिक मानते थे कि पुराने तारों में भारी तत्व और धातु बहुत ही कम होते हैं. ये तत्व ग्रह को बनाने के लिए बहुत ही जरूरी होते हैं. अभी तक के सिद्धांत  बताते हैं कि ऐसे हालात में ग्रह बन ही नहीं सकते  क्योंकि ऐसे तारों के आसपास की डिस्क गैस और धूल जल्दी ही गायब हो जाते होंगे.

James webb Space telescope, Early universe, Planet formation, Hubble space telescope, Early stars, Planet formation in Early universe, Amazing science, science research, science news, space news, Space science, space knowledge,

जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप ने एक तारामंडल में ऐसे सबूत खोजे हैं जो इस बात को साबित करते हैं शुरुआती ब्रह्माण्ड में भी ग्रह बनते थे. (तस्वीर: NASA)

जेम्स वेब ने कहां देखा समाधान
इस गुत्थी को सुलझाने के लिए वैज्ञानिकों ने नासा के जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप की मदद ली और  मिल्की वे गैलेक्सी के पास छोटी गैलेक्सी “स्मॉल मैगेलैनिक क्लाउड” के अंदर मौजदू तारा समूह एनजीसी 346 का अध्ययन किया. इस गैलेक्सी में भारी तत्वों की खूब कमी है और इस वजह से यह शुरुआती ब्रह्माण्ड के हालात बताने के लिहाज से आदर्श जगह है.

सही देखा था हबल ने
जब जेम्स वेब ने इसका अध्ययन किया तो पाया गया कि इस समूह के तारों में तो आज भी ग्रह बनाने की डिस्क मौजूद हैं और वो भी उम्मीद से कहीं लंबी हैं. यह खोज ग्रह निर्माण विज्ञान के लिए बहुत ही बड़ी खोज है. क्योंकि इसका मतलब है कि कठोर वातावरण वाले तारों की डिस्क करोड़ों साल तक टिकी रह सकती है.  कम से कम उससे तो बहुत ही लंबी जितना के समझा जा रहा था.  ऐसे में ग्रहों को यहां बनने और पनपे में खूब वक्त मिला होगा और बृहस्पति जैसे विशाल ग्रह तक यहां पनप सकते हैं.

पहले भी बनने लगे होंगे ग्रह
अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता गॉदिया जे मार्ची का कहना है कि अब हम जानते हैं कि जब ब्रह्माण्ड युवा होगा तभी ग्रहों का बनना शुरू हो गया होगा. वैज्ञानिकों को कहना है कि डिस्क के इतने लंबे समय तक बने रहने के दो कारण हो सकते हैं. पहला तो ये कि जिन इलाकों में कम भारी धातुएं थीं, कम या धीमे विकिरण के चलते तारों ने वहां से गैस और धूल को हटाने या उड़ाने में ज्यादा समय लिया होगा.

James webb Space telescope, Early universe, Planet formation, Hubble space telescope, Early stars, Planet formation in Early universe, Amazing science, science research, science news, space news, Space science, space knowledge,

शुरुआती ब्रह्माण्ड के तारों में भारीतत्व कम होते थे जिससे ग्रह बनना मुश्किल था. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)

बड़ी डिस्क का बनना
इसकी दूसरी वजह ये हो सकती है कि इन वातवरणों में तारों ने ही बड़ी डिस्क बनाने शुरू कर दिया होगा. इससे उनकी उम्र खत्म होने से पहले ही लंबी हो गई होगी.  यह नई खोज उस धारणा को चुनौती देती है जिसमें माना जाता था कि ग्रह शुरुआती ब्रह्माण्ड में कम बनते थे. लेकिन अब लगता है कि शुरुआती ब्रह्माण्ड में भी ग्रह ज्यादा बनते थे यह स्टडी  द एस्ट्रोफिजिकल जर्नल में प्रकाशित हुआ है.

यह भी पढ़ें: क्या कहता है विज्ञान: आखिर कैसे पता चलता है कि फैल रहा है ब्रह्माण्ड?

गौरतलब है कि हबल ने अपनी तस्वीरों में देखा था उससे पैदा हुए भ्रम को इम्पॉसिबल प्लैनेट समस्या नाम दिया गया था. हबल के अवलोकन तो सही थे, लेकिन वे पुष्ट नतीजे निकालने के लिए काफी नहीं थे. जिसे अब जेम्स वेब स्पेस के अवलोकनों ने सुलझा लिया है ऐसा दावा किया जा रहा है.

Tags: Bizarre news, Science facts, Science news, Shocking news, Weird news



Source link

x