Explainer: इजरायल के खिलाफ 104 देश, पर क्यों भारत ने नहीं किया सिग्नेचर? क्यों उठ रहे सवाल


भारत ने एक बार फिर इजरायल के खिलाफ लाए गए एक प्रस्ताव से खुद को अलग कर लिया. यह प्रस्ताव यूएन जनरल सेक्रेटरी एंटोनियो गुटेरेस के इजरायली क्षेत्र में प्रवेश पर पाबंदी के खिलाफ लाया गया था. 104 देशों ने इस पत्र पर हस्ताक्षर किया और इजरायल द्वारा गुटेरेस पर लगाए गए प्रतिबंध की निंदा की, लेकिन भारत ने इस पत्र पर हस्ताक्षर नहीं किया. भारत के स्टैंड पर सियासी घमासान मच गया है. कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने इस पर सवाल उठाए हैं.

क्या था इजरायल के खिलाफ प्रस्ताव?
यूएन जनरल सेक्रेटरी एंटोनियो गुटेरेस पर इजरायली प्रतिबंध के खिलाफ चिली प्रस्ताव लाया. इसे ब्राजील, कोलंबिया, दक्षिण अफ्रीका, युगांडा, इंडोनेशिया, स्पेन, गुयाना और मेक्सिको ने समर्थन दिया. कुल 104 देशों ने इस पर हस्ताक्षर किये. जिसमें यूरोप से लेकर अफ्रीकी देशों के साथ-साथ ग्लोबल साउथ के भी कई देश शामिल हैं. इस प्रस्ताव को इजरायल, ईरान या लड़ाई में शामिल किसी देश के समर्थन के तौर पर नहीं बल्कि यूएन के समर्थन के तौर पर देखा जा रहा था. ऐसे में भारत का रुख अहम हो जाता है.

पी चिदंबरम ने भारत के स्टैंड पर क्या कहा?
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी. चिदंबरम ने भारत के स्टैंड पर सवाल उठाया. चिदंबरम ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर भारत के रुख को “अस्पष्ट” करार दिया और कहा कि यह भारत के ब्रिक्स साझेदारों जैसे- ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका और ग्लोबल साउथ के अधिकांश देशों के विपरीत है. चिदंबरम ने लिखा- “भारत ने हमारे ब्रिक्स साझेदार ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका से अलग रुख अपनाया. भारत का रुख दक्षिण एशिया, पश्चिम एशिया और अफ्रीका के कई देशों से भी अलग है, जिनके साथ हमारे मैत्रीपूर्ण और सौहार्दपूर्ण संबंध हैं…’ चिदंबरम ने आगे यूएन जनरल सेक्रेटरी ऑफिस की निष्पक्षता पर जोर देते हुए कहा, “संयुक्त राष्ट्र महासचिव का कार्यालय गैर-पक्षपाती होता है.

संयुक्त राष्ट्र ही एकमात्र अंतरराष्ट्रीय मंच है जहां राजनीतिक मतभेदों को व्यक्त किया जा सकता है. ऐसे में इज़रायल का संयुक्त राष्ट्र महासचिव को इज़रायली इलाके में प्रवेश करने से रोकना पूरी तरह गलत था. भारत को सबसे पहले चिट्ठी पर हस्ताक्षर करने चाहिए थे…”

क्यों भारत ने चिट्ठी पर हस्ताक्षर नहीं किया?
तो अगर ये प्रस्ताव एक संस्था के तौर पर यूएन के समर्थन में था तो भारत ने इस पर हस्ताक्षर क्यों नहीं किया? जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के स्कूल ऑफ़ इंटरनेशनल स्टडीज में प्रोफेसर डॉ. शांतेष कुमार सिंह hindi.news18.com से कहते हैं कि भारत का हमेशा से स्टैंड रहा है कि अंतरराष्ट्रीय दबाव से अपने आप को बचाकर रखना है. भारत ऐसे केसेज में अपने राष्ट्रीय हितों को देखता है, जो बहुत सारी परिस्थितियों पर निर्भर करते हैं. इस केस में इजरायल के साथ हमारे बहुत अच्छे संबंध हैं और कई तरह के हित जुड़े हैं. वेस्ट एशिया और मिडिल ईस्ट में इजरायल एकमात्र यहूदी देश है. उसके प्रोटेक्शन और इंट्रेस्ट की कोई बात नहीं नहीं करता है. इजरायल लगातार हमले झेल रहा है, इसके बावजूद यूएन जैसी संस्थाओं का कोई ठोस बयान उसके समर्थन में नहीं मिलेगा. समस्या यही है.

इजरायल जैसे ही फाइट बैक करता है, तब यूएन जैसी संस्थाएं उस पर सवाल खड़े करने लगती हैं, लेकिन उस पर हमले के वक्त सामने नहीं आतीं. प्रो. शांतेष कहते हैं कि भारत का हमेशा से मानना रहा है कि प्रत्येक देश को अपनी संप्रभुता-सुरक्षा का पूरा हक है. अगर इजरायल अपनी सुरक्षा के लिए कदम नहीं उठाएगा तो क्या लगता है कि वह सुरक्षित रहेगा? भारत भी करीबन इजरायल जैसी परिस्थिति का सामना कर रहा है. अफगानिस्तान, बांग्लादेश, पाकिस्तान, चीन जैसे पड़ोसी देशों के साथ हमारी यही स्थिति है. हो सकता है कल हमारे सामने भी यही रास्ता हो और राष्ट्रीय सुरक्षा का सवाल बन जाए. तब क्या भारत अपनी सुरक्षा के लिए कदम नहीं उठाएगा?

इजराइल जो भी कर रहा है वह अपने अस्तित्व को बचाने और अपनी सुरक्षा के लिए कर रहा है. भारत का हमेशा से यही स्टैंड रहा है कि हर देश अपनी संप्रभुता को बचाने के लिए स्वतंत्र है. नैतिकता और आदर्शवाद तब तक सही लगता है जब तक कोई चीज अपने ऊपर नहीं आती है.

क्या ब्रिक्स या ग्लोबल साउथ के देश नाराज होंगे?
क्या भारत के स्टैंड से उसके ब्रिक्स साझेदार या ग्लोबल साउथ देश नाराज हो सकते हैं? प्रोफेसर शांतेष कुमार कहते हैं कि ऐसा नहीं है. भारत पहले भी इजरायल के खिलाफ ऐसे प्रस्ताव से दूर रहा है.
यूक्रेन और रूस वाले मामले में भी वोटिंग से दूर रहा. यह सिर्फ नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में नहीं है. अतीत में कांग्रेस के कार्यकाल में भी ऐसा होता रहा है. इसका मतलब यह नहीं है कि हम किसी देश के खिलाफ हैं. सबकी जिओ पॉलिटिक्स अलग-अलग हो सकती है.

हो सकता है चिली, ब्राज़ील या दक्षिण अफ्रीका के लिए इजराइल उतना महत्वपूर्ण ना हो जितना हमारे लिए है. दूसरे देशों के एस्पिरेशन भी वह नहीं हैं, जो भारत के हैं. भारत अगले 25 साल में एक विकसित देश बनना चाहता है. ऐसे में इन परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए जिओ पॉलिटिक्स होती है.

इजरायल ने UN जनरल सेक्रेटरी को क्यों बैन किया?
इजरायल ने हाल में संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस को ‘पर्सोना नॉन ग्राटा’ घोषित करते हुए उनके इजरायली इलाके में प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया था. इजरायली विदेश मंत्री इजरायल काट्ज़ ने X पर एक पोस्ट में कहा, “जो कोई भी ईरान द्वारा इजरायल पर घृणित हमले की स्पष्ट रूप से निंदा नहीं कर सकता, जैसा कि दुनिया के लगभग हर देश ने किया है, उसे इजरायली धरती पर कदम रखने का हक नहीं है…” काट्ज़ ने एंटोनियो गुटेरेस पर “हमास, हिज़बुल्लाह, हूथी और अब ईरान के समर्थन का भी आरोप लगाया.

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