Explainer: किंतु-परंतु के बीच COP29 में समझौता, भारत ने जताई आपत्ति, कहा- डाक्यूमेंट एक भ्रम से अधिक कुछ नहीं


नई दिल्ली. दुनिया में भगौलिक कूटनीतिक स्तर पर हो रहे दांव-पेंच और बदलावों के साथ साथ विश्व में जीवाश्म ईंधन के सबसे बड़े उत्पादक देश अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के फिर से राष्ट्रपति चुने जाने जैसी बड़ी और मुश्किल घटनाओं के बीच भी संयुक्त राष्ट्र के जलवायु परिवर्तन महासम्मेलन में वार्ताकार सदस्य देश एक समझौते पर पहुंचने में सफल रहे. हालांकि भारत ने इस पर आपत्ति जताते हुए कहा कि ‘डाक्यूमेंट एक भ्रम से अधिक कुछ नहीं.’ धरती के इतिहास के सबसे गर्म साल 2024 में वह मौके भी आए हैं, जब अमेरिका और जापान जैसे अमीर देशों ने गरीबों के लिए अपने खजाने का मुंह बंद कर लिया. जीवाश्म ईंधन पर निर्भर सऊदी अरब जैसी अर्थव्यवस्था ने क्लाइमेट एक्शन के समर्थन में बन रहे माहौल को बिखेरने का प्रयास किया.

जिससे दुनिया में सबसे अधिक खतरे का सामना कर रहे देशों को झुकने के लिए विवश होना पड़ा. इन गंभीर विपरीत परस्थितियों और आपा-धापी वाले माहौल के बीच भी आखिरकार एक ऐसा मसौदा तय हो सका जिसपर सब देश एकमत हों. फाइनेंस COP कही जा रही इस बैठक में अमीर देशों ने एक इस तरह ही स्थिति का निर्माण किया जो गरीब और खतरे की जद में बैठे देशों के लिए फौरी राहत सरीखी प्रतीत हो रही है. जो अन्य विकासशील देशों की ओर पूरी तरह से जिम्मेदारी मोड़ने पर ही केंद्रित है. युद्ध और कोविड के कारण और बढ़ी अमीर और गरीब देशों के बीच खाई और विश्वास की कमी का असर काप में देशों की प्रतिक्रियाओं पर साफ दिखा. लेकिन विकासशील देशों ने ग्लोबल नार्थ में साझेदारों के साथ मिलकर काम करते हुए जलवायु परिवर्तन रोकने को 2035 तक 1.3 खरब अमेरिकी डॉलर के लक्ष्य के सापेक्ष वैश्विक अर्थतंत्र को फिर से पटरी पर लाने का प्रयास किया है.

अमीर देश पहली बार रजामंद
अमीर देशों ने पहली बार, खासकर दक्षिण की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं ने साल 2035 तक 300 अरब अमेरिकी डॉलर के वित्त प्रबंधन की व्यवस्था को सफल बनाने के लिए कुछ भुगतान पर भी रजामंदी दी. भले ही इससे व्यय में बड़ी वृद्धि न दिखती हो लेकिन यह वैश्विक स्तर पर जलवायु संबंधी एक्शन के लक्ष्य को पाने की दिशा में एक सकारात्मक कदम जरूर है. सऊदी अरब की अब तक हुई प्रगति पर पानी फेरने के प्रयासों में असफल रहा. जब लग रहा था कि कुछ खास नहीं हो सकेगा जब COP29 के अंतिम कुछ घंटों में रास्ता खुला और जी 20 नेताओं तथा खतरे का सामना कर रहे देशों ने बहुपक्षीय समाधान के प्रति अपने संकल्प को फिर से दृढ़ किया.

ग्लोबल वार्मिंग की सम्भावना बढ़ी
इस फैसले से ब्राजील में अगले साल होने वाले COP30 में एक सकारात्मक हल निकलने की संभावना है. साथ ही दुनिया में जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग होने की सम्भावना बढ़ी है. ब्राजील के राष्ट्रपति लूला डा सिल्वा ने इसे परिवर्तनकारी काप कहा है और उनके पास मौका होगा कि वह COP 30 को एक परिणाम जनक कार्यक्रम बनाएं. उत्सर्जन अब भी कम होने के बजाय बढ़ रहे हैं और जब दुनिया में बीते 20 साल में चरम मौसमी घटनाओं के कारण करीब पांच लाख लोगों की मौत हो चुकी है और इसका कारण जलवायु परिवर्तन बताया जा रहा है. ऐसे में लगातार बिगड़ रहे मौसम से दुनिया को हर साल 227 अरब डॉलर का नुकसान हो रहा है. अगली फरवरी तक अधिकांश विकसित देशों को आगे बढ़कर ऊर्जा के क्षेत्र में काम करना होगा. COP29 का परिणाम दुनिया भर में स्टॉक मार्केट, बोर्डरूम और सरकारी विभागों में हो रहे फैसलों को समर्थन देने का भी स्पष्ट संकेत देता है.

बाकू में कई प्लान पेश
बाकू में यूनाइटेड किंगडम और ब्राजील ने बहुत मजबूत राष्ट्रीय क्लाईमेट प्लान सामने रखे. जी20 देशों ने यह इशारा किया कि वे अंतर्राष्ट्रीय फाइनेंशियल सिस्टम को सुधारने की जरूरत को समझते हैं ताकि जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए अधिक धन की व्यवस्था की जा सके. एमडीबी की बात करें तो बैंकों का अनुमान है कि वे 2030 तक हर साल 120 अरब डॉलर की रकम निम्न और मध्यम आय वाले देशों को दे सकेंगे जिसमें एडाप्टेशन के लिए 42 अरब डॉलर की रकम भी शामिल है. निजी क्षेत्र से भी 65 अरब डॉलर की रकम की उम्मीद है. जितना एमडीबी में सुधार होगा उतना ही रकम बढ़ेगी. बिना रेटिंग गिराए इस रकम को 480 अरब डॉलर तक ले जाया जा सकता है.

जीवाश्म ईंधन से दोगुना से अधिक धन स्वच्छ ऊर्जा पर लगा
विश्व में अब जीवाश्म ईंधन की तुलना में दोगुना से अधिक धन स्वच्छ ऊर्जा पर लग रहा है. सोलर पीवी में निवेश अब अन्य इस तरह की तकनीकी में हो रहे निवेश से अधिक है. स्वच्छ ऊर्जा अब जीवाश्म ईंधन से दोगुनी अधिक गति से बढ़ रही है और इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी के अनुसार 2030 तक इसकी मांग चरम पर होगी. चीन ने 2022 की तुलना में 2023 में स्वच्छ ऊर्जा तकनीक में 40 प्रतिशत अधिक निवेश किया है. विश्व में पांच मे से चार निवेशक रिन्युएबिल ऊर्जा पर अगले तीन साल में निवेश का स्तर बढ़ने की उम्मीद रखते हैं. जीवाश्म ईंधन की पैरोकारी करने वाले लाबीस्ट ने कॉप29 में भी समझौते की राह बाधित करने की कोशिश की लेकिन जो वह करना चाहते थे, उसमें सफल नहीं रहे. उन्होंने जलवायु परिवर्तन से हो रहे खतरे से निपटने की दुनिया की कोशिश का कीमती समय खराब किया. वह भले ही असफल रहे लेकिन फिर भी भविष्य में यह प्रगति कराने के लिए उनके द्वारा बनाए गए अवरोध को खत्म करना होगा.

कॉप29: अहम बिंदु
– फाइनेंसः 300 अरब डॉलर के कोर टारगेट 2035 तक पहुंचना…ओवरआल टारगेट 1.3 खरब डालर.
– डोनर बेसः विकासशील देशों को स्वैच्छिक योगदान के लिए प्रेरित करना.
– एडाप्टेशन गारंटी सर्वाधिक खतरे की जद वाले देशों के लिए एडाप्टेशन फंड से मदद तीन गुनी करना.
– रिव्यू मैकेनिज्मः 1.3 खरब डॉलर के कुल लक्ष्य की समीक्षा के लिए 2026 और 2027 में रिव्यू रिपोर्ट्स की व्यवस्था.
– स्माल आईलैंड्स, एलडीसी, अफ्रीका पैसिफिकः एलडीसी और एसआईडीसी के लिए फाइनेंस बढ़ाने की तैयारी के साथ 2026 व 2027 में न्यूनतम एलोकेशन की व्यवस्था.
– क्वालिटी आफ डॉलरः पब्लिक और ग्रांट आधारित आर्थिक मदद पर जोर.
– लास एंड डैमेज फाउंड का आगे का रास्ता: लास और डैमेज फाइनेंसिंग में अंतर की पहचान के साथ उन्हें कम करने पर जोर.

भारत का अंतिम समय में दखल
भारत की प्रतिनिधि इकोनमिक अफेयर्स विभाग में सलाहाकर चांदनी रैना ने इस डाक्यूमेंट को स्वीकारने पर आपत्ति जताई और कहा कि ‘मुझे खेद है कि यह डाक्यूमेंट एक भ्रम से अधिक कुछ नहीं है. हमारे विचार में यह हम सबके सामने खड़ी विशाल चुनौती का सामना नही कर सकेगा. इस कारण हम इस डाक्यूमेंट का समर्थन नहीं करते हैं.’ क्लाइमेट ट्रेंडस की निदेशक आरती खोसला ने कहा कि ‘सौ अरब डॉलर प्रतिवर्ष के स्थान पर नया क्लाइमेट फाइनेंस लक्ष्य विकसित देशों से पैसा एकत्र कर पाने की मुश्किलों से घिरा है. सभी स्रोतों से 2035 तक 300 अरब डॉलर जुटाना भी अनिश्चित और अस्पष्ट है लेकिन फिर भी विश्व में बढ़ रहे तनाव के बीच सर्वश्रेष्ठ उपाय है. फाइनल एग्रीमेंट पर भारत ने आपत्ति की है. धन जुटाने के लिहाज से यह अपर्याप्त है और कड़वी गोली निगलने के समान है. हालांकि कम विकसित देशो के लिए धन की व्यवस्था करने का कदम थोड़ी प्रगति वाला है. कुछ देशों के लिए जलवायु परिवर्तन जीवन और मृत्यु का सवाल है.’

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300 अरब डॉलर पर रजामंदी स्वागत योग्य
वहीं टेरी में अर्थ साइंस और क्लाईमेट चेंज के डिस्टिंग्सिश्ड फेलो और आईपीसी एआर6 डब्लूजी3 के लेखक दीपक दासगुप्ता कहते हैं कि ‘पंडोरा के पिटारे में उम्मीद आखिरी आइटम था. 300 अरब डॉलर पर रजामंदी स्वागत योग्य है. यदि यह ग्रांट या अत्यधिक रियायत वाले धन के रूप में हो न कि एमडीबी या निजी क्षेत्र से लोन के रूप में. दूसरी बात, यदि 1.3 खरब डॉलर का लक्ष्य टिका रहता है तो स्वागत योग्य है.’ अब ये फैसले आगे की चर्चा के लिए बान तक जाएंगे. सरकार की महत्वाकांक्षा की असली परीक्षा 2025 में होगी जब जीवाश्म ईंधन में कमी के लिए नेशनल क्लाइमेट प्लान पर अमल की बात होगी. यूके ने लक्ष्य ऊंचा रखा है-1990 के स्तर से 2035 तक 81 प्रतिशत की कमी. अन्य बड़ी इकोनमी को भी इसी तरह करने की जरूरत है. कॉप29 में बरसों से लंबित चल रहे गवर्नमेंट टू गवर्नमेंट कार्बन मार्केट्स पर रजामंदी बनी. हालांकि विशेषज्ञों को अभी संदेह है. कार्बन मार्केट वाच ने आर्टिकल 6.2 को अपारदर्शी और अत्यंत खतरनाक बताते हुए इसे फ्री फार आल करने वालों के लिए टेलर मेड कहा है.

Tags: Climate Change, Climate change report, UN climate change report, United nations



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