Explainer: क्या हैं हिंद महासागर की गहराई में मिले ‘गर्म पानी के चश्मे’, जिन्हें कहा जा रहा है खजाना?


हाइलाइट्स

हाइड्रोथर्मल वेंट हिंद महासागर में मिले हैं.इनका यहां मिलना हैरान करने वाला हैइनमें बहुत सा खनिज भरा होता है

भारतीय समुद्र विज्ञानिनों ने पहली बार हिंद महासगर के गहरे तल में एक सक्रिय गर्म पानी के चश्मे यानी हाइड्रोथर्मल वेंट की तस्वीर हासिल की है. गहरे पानी में इस जगह पर ऐसे वेंट का मिलना सामान्य बात नहीं हैं. सीधे मिट्टी के पाइप जैसी बनी आकृतियों से निकलते इन बुलबुलों का मिलना एक बहुत बड़ी खोज माना जा रहा है क्योंकि यह ना केवल वैज्ञानिक तौर से बल्कि आर्थिक और खनन के लिहाज से भी एक बड़ी उपलब्धि है. पर ये हाइड्रोथर्मल वेंट होते क्या हैं? इनका ऐसी जगह पर मिलना क्यों बड़ी बात है और क्या वाकई ये इतनी अहमियत देने वाली खोज है?

क्या होते हैं ये गर्म पानी के चश्मे?
इन गर्म पानी के चश्मे को असल में हाइड्रोथर्मल वेंट कहते हैं. जिस तरह से ये बुलबुले जमीन के अंदर से निकलते हैं, ऐसा लगता है कि किसी पाइप या वेंट में से ये बुलबुले निकल कर पानी की सतह की ओर जा रहे हैं. ये समुद्र की तल की सतह पर पड़ी दरारों निकलते हैं और आसपास के पानी को बहुत ही ज्यादा गर्म कर देते हैं और साथ ही कई धातु और खनिजों को पृथ्वी की सतह के ऊपर तक पहुंचाते हैं.

बन जाती है बेलनाकार नुमा खास आकृति
जैसे ही समुद्र तल की दरारों से बहुत ही ज्यादा गर्मी निकलती है, ठंडे पानी को छूने पर दरारों से निकलने वाली धातु, खनिज आदि ठोस होकर जमने लगते हैं और एक चिमनी नुमा बेलनाकार की ऊंची आकृति तैयार होने लगती है जो समय के साथ लंबी होती जाती है कई बार तो ये 60 मीटर लंबी भी देखी गई हैं. इसके बाद इनके ऊपर से बुलबुले ऊपर जाते दिखते हैं.

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यही वह तस्वीर है जो भारतीय वैज्ञानिकों ने हिंद महासागर के हाइड्रोथर्मल वेंट की खींची है. तस्वीर: @MoesNiot On X)

कहां मिलते हैं ये?
हाइड्रोथर्मल वेंट जहां मिला है मूल रूप से टेक्टोनिक प्लेट्सके पास मिलते हैं और इनमें से पृथ्वी अंदर की पिघली हुई चट्टान यानी मैग्मा की गर्मी निकलती है लेकिन गहरे समुंदर में तापमान करीब 2 डिग्री सेल्सियस तक हो सकता है. वहां समुद्र तल की सतह की दरारों से निकलने पर ये पानी को 370 डिग्री सेल्सियस तक गर्म कर सकता है, जो गुबार का रूप लेकर इन खनिज और गैसों से भर जाता है, जिससे ये आकृतियां बनती हैं.

हिंद महासागर में अहम क्यों?
ये वेंट हिंद महासागर के मध्य और दक्षिण पश्चिमी उठे हुए भूभाग में 4.5 किलोमीटर की गहराई में देखने को मिले हैं, जहां इस तरह के वेंट देखने को नहीं मिलते हैं. आमतौर पर ऐसे हाइड्रोथर्मल वेंट प्रशांत महासागर में अधिक मिलते हैं. ऐसे में भारतीय हिंद महासागर में इनका मिलना, भारत के लिए नए अवसर और संभावनाएं पैदा करने वाला माना जा रहा है.

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भारतीय हिंद महासागर के मध्य और दक्षिणी हिस्से में ये देखे गए हैं. (तस्वीर: @MoesNiot On X)

खनिजों का भंडार?
हाइड्रोथर्मल वेंट के जरिये पृथ्वी की गहराई से केवल गैस ही नहीं निकलती है, बल्कि उसके साथ तांबा, जिंक, सोना, चांदी, प्लैटिनयम, आयरन, कोबाल्ट, निकल सहित कई खनिज और धातुएं निकलते हैं जो किसी खजाने के कम नहीं होता है क्योंकि ऐसी सामग्री केवल एक बार में ही निकल कर नहीं जमी होती है, बल्कि लगातार निकलती रहती है और चिमनियों का आकार लेती रहती है. एनसीपीओर के वैज्ञानिक जॉन कुरियन का कहना है कि खोजे गए हाइड्रथर्मल वेंट कुछ सैकड़ों साल से 3 हजार साल पुराने हो सकते हैं.

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ये वेंट एक और लिहाज से भी खास होते हैं. यहां पर अलग ही तरह का जीवन देखने को मिलता है. गहरे ठंडे समुद्र में गर्मी आने से जीवन की कई तरह की संभावनाएं बन जाती हैं. यहां आम समुद्री जीवन से बहुत ही अलग तरह का जीवन देखने को मिलेगा. दिलचस्प बात ये है कि वैज्ञानिक मानते हैं कि बृहस्पति के चंद्रमा यूरोपा की बर्फीली सतह के नीचे इस तरह के वेंट जीवन का कारण हो सकता है. यही वजह है कि हर लिहाज से यह भारत के लिए एक बड़ी खोज है.

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