Explainer: सीवर सफाई में लगातार मर रहे मजदूर, कैसे दुनियाभर में अब मशीनों से ये काम


हाइलाइट्स

पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी सीवर सफाई काम देशी खतरनाक तौरतरीकों से ही एशियाई देशों में चीन, जापान, मलेशिया जैसे देश पूरी तरह मशीनों का इस्तेमाल करने लगे हैं

14 मई 2024 – दिल्ली के मॉल में ‘सीवर लाइन’ की सफाई करते समय एक व्यक्ति की मौत
4 मई 2024 – नोएडा में सीवर की सफाई करने उतरे दो मजदूरों की हुई मौत
01 मई 2024 – लखनऊ में सीवर लाइन की सफाई करने उतरे पिता-बेटे की दम घुटने से मौत
23 अप्रैल 2024 – मुज़फ्फरनगर में सीवर लाइन में सफाई कर रहे दो मजदूरों की दम घुटने से मौत

ये पिछले करीब एक महीने में उत्तर भारत के वो हादसे हैं, जिसमें सफाई मजदूर सीवर में उतरे और उसमें उनकी मौत हो गई. वैसे आंकड़े ये कहते हैं कि हर साल हमारे देश में सीवर सफाई के मामलों में कम से कम 100 से ज्यादा मौतें होती हैं. भारत में आमतौर पर सीवर सफाई का अब भी पुराने तौर तरीकों से चलता है.हालांकि कुछ मशीनें कुछ शहरों में जरूर विदेशों से मंगाई गईं लेकिन मोटे तौर पर अब भी मजदूर मेनहोल में नीचे उतरते हैं. कई बार उसमें फंसने तो कई बार उसकी गैस से दम घुटने के कारण वो जान से हाथ धो देते हैं. इस मामले में अमेरिका और यूरोप के देश तो बहुत आगे हैं, कुछ एशियाई देश भी पूरी तरह मशीनीकृत हो चुके हैं.

इसे लेकर लंबे समय से आवाज उठाई जाती रही है. हैरानी की बात है कि हमारे देश में सीवर और सीवेज सफाई सिस्टम अब भी पूरी तरह पुराने तौरतरीकों से चल रहा है. अदालती आदेशों के बावजूद इसका मशीनीकरण या आटोमेशन नहीं हो पाया है. सुप्रीम कोर्ट और अदालतें सीवर की मैन्युअल यानि मानवआधारित सफाई को गैरकानूनी ठहरा चुकी हैं.

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भारत में सीवर सफाई का काम अब भी पुराने तरीकों से होता है. इसे लेकर लगातार चिंता जाहिर की जाती रही है. इससे हमारे देश में हर साल 100 से ज्यादा सफाई मजदूरों की मौत हो जाती है.

पिछले साल सामाजिक न्याय और अधिकार राज्य मंत्री रामदास अठावले ने संसद में एक सवाल के जवाब में बताया था कि पिछले पांच सालों में (2018-2022) सीवर सफाई से संबंधित हादसों में 308 लोगों की मृत्यु हो गई. हालांकि नेशनल कमीशन फॉर क्लीनिंग लेबर के आंकड़ें कहते हैं कि हर साल सीवर सफाई से संबंधित हादसों में 130 से ज्यादा लोगों की जान जाती है.

दुनिया के ज्यादातर देशों ने इसके लिए मशीनीकृत और आटोमेटेड बेहद सुरक्षित प्रणाली अपना ली है. इसमें कई एशियाई मुल्क भी शामिल हैं.

पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी यही हाल
भारत ही नहीं बल्कि उसी ही तरह की संस्कृति साझा करने वाले पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों में भी सीवेज सफाई सिस्टम अब भी पुराना और लचर है. पाकिस्तान और बांग्लादेश में ये काम ठेके पर कराया जाता है. हमारे देश में भी बहुत सी जगह ये सफाई ठेकेदार अपनी लेबर से कराता है.

देश में क्या है सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स की स्थिति
भारत में 70 फीसदी सीवेज लाइनों की सफाई आमतौर पर होती ही नहीं. 2015 में एक सर्वे में पता लगा कि तब हमारे देश में 810 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स थे लेकिन चालू हालत में केवल 522 ही थे. बाकि या तो खराब थे या बनने की प्रक्रिया में थे.

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अमेरिका में भी सीवर की सफाई के लिए मशीनों और उपकरणों का समुचित ढांचा है. सीवेज टनल्स को हमेशा मशीनों के जरिए धोया और साफ किया जाता रहता है.

मैक्सिको में इकोलाजिकल सेनिटेशन सिस्टम
मैक्सिको में सीवेज का पूरा सफाई का काम इकोलॉजिकल सेनिटेशन मॉडल पर होता है, ये मॉडल सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स से जुड़ा होता है. ये मानव अपशिष्ट को ट्रीट करता है. इसमें कूडे़ को पहले चरण में अलग अलग रखा जाता है. सूखा कूड़ा अलग और द्रव आधारित वेस्ट अलग. दोनों का ट्रीटमेंट प्लांट्स में अलग तरीकों से होता है. फिर द्रव को ट्रीट करके एग्रीकल्चर के कामों में यूज करते हैं.

अमेरिका और यूरोप में पूरी तरह मशीनों का इस्तेमाल
अमेरिका में मशीनों का इस्तेमाल होता है. वहां इसके लिए समुचित सुरंगें और उपकरण हैं. इससे ही काम होता है. इस काम में मानव का इस्तेमाल बहुत कम है. यूरोप में भी यही सिस्टम है. वहां सीवेज और सीवर की सफाई पूरी तरह नई तकनीक आधारित और मशीनों के जरिए होती है. साथ ही आटोमेटेड है. लगातार नई तकनीक से इस प्रक्रिया को बेहतर करने का काम भी चलता रहता है.

मलेशिया ने तो सीवर सफाई का कायापलट ही कर डाला
अब बात करते हैं एशियाई देश मलेशिया की. ये देश 1957 में आजाद हुआ और उसके बाद से ही उसने अपनी सीवर सफाई व्यवस्था पर भी ध्यान देना शुरू किया. पहले वहां भी ये सफाई आदमी ही करते थे लेकिन धीरे धीरे इसे मशीन और फिर चरणबद्ध आटोमेटेड सिस्टम से रिप्लेस कर दिया गया. अब यहां सीवर से जुड़ी सफाई का सारा काम मशीनें करती हैं.

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मलेशिया में सीवर की सफाई का काम अब पूरी तरह मशीनीकृत है. यहां सफाईकर्मी मशीनों के जरिए ही सेप्टिक टैंक और सीवर लाइन की सफाई करता है. अंदर कभी नहीं जाता.

लगातार रिसर्च और नए उपकरणों का इस्तेमाल
मलेशिया की सीवेज इंडस्ट्री काफी बेहतर स्थिति में है. वो लगातार रिसर्च के बाद बेहतर और नए उपकरणों को पुरानों से बदलती रहती है. फिर वहां की सरकार ने सीवेज कंस्ट्रक्शन में इस्तेमाल होने वाले उपकरणों को सब्डाइज्ड किया हुआ है. वो लगातार सर्वे कराते हैं, लोगों को एजुकेट करते हैं औऱ ये भी बताते हैं कि अपने सैप्टिक टैंक को साफ रखने के लिए उन्हें क्या करना चाहिए.

जापान और सिंगापुर में भी यही सिस्टम
मलेशिया में अब कोई सफाई कर्मचारी सेप्टिक टैंक में नहीं उतरता. अगर उसको लगता है कि मशीनों से भी ये साफ नहीं हो पा रहा है तो वो नया सैप्टिक टैंक ही बना देते हैं. कुछ ऐसी ही प्रक्रिया जापान और सिंगापुर में भी है.

सीवेज में जहरीली गैस बनने लगती है
हमारे देश में सीवेज प्लांट्स में हर तरह की गंदगी गिरती है. इसमें सूखा, गीला, प्लास्टिक और मलबा सभी कुछ होता है. ये गलत है. इससे जानलेवा जहरीली गैस बनने लगती है और जब कोई सफाई कर्मचारी सीवर या सैप्टिक टैंक में सफाई के लिए घुसता है तो दम घुटने की स्थिति बन जाती है. इस काम को अब पूरी तरह मशीनों से किया जाना चाहिए.

मशीनें आईं लेकिन इक्का-दुक्का ही इस्तेमाल में
ये जरूर है कि भारत में कुछ समय पहले सुलभ इंटरनेशनल ने बाहर से आयात करके दिल्ली में एक सीवेज क्लिनिंग मशीन पेश की थी, जिसकी कीमत तब 43लाख थी. अब दिल्ली में ऐसी कितनी मशीनें हैं और इनसे कितना काम लिया जाता है-ये जानकारी नहीं है.

Tags: Cleaning, Sewer Worker



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