Explainer: Why World Is Expecting India To Become Manufacturing Hub
नई दिल्ली:
विदेश मंत्री एस जयशंकर (S Jaishankar) ने कहा है कि दुनिया भारत को मैन्युफैक्चरिंग हब के तौर पर देखना चाहती है. हालांकि इस दिशा में कुछ चुनौतियां हैं, जिन्हें सरकार दूर करने की कोशिश कर रही है. एनडीटीवी के एडिटर इन चीफ संजय पुगलिया (Sanjay Pugalia) से हुई ख़ास बातचीत में जयशंकर के इस बयान के तीन अहम मायने हैं. सिलसिलेवार ढंग से जानिए कि भारत को दुनिया क्यों बनाना चाहती है मैन्युफैक्चरिंग हब (India to become manufacturing hub)…
यह भी पढ़ें
सबसे पहला कारण, बाधित और एकाधिकार वाली सप्लाई चेन से मुक्ति.
याद कीजिए, मार्च 2020, जब दुनिया को झकझोरने वाली कोरोना महामारी ने हम तक पहुंचने वाली छोटी-बड़ी जरूरी चीजों की आपूर्ति एकदम ठप कर दी थी. इसकी एक बड़ी वज़ह ख़ुद चीन था, जहां से महामारी फैली थी. पूरी दुनिया फार्मा एपीआई से लेकर इलेक्ट्रॉनिक आयटम्स और कंज्यूमर ड्यूरेबल्स के लिए चीन तो सेमीकंडक्टर के लिए ताइवान पर अति निर्भरता के चलते जूझती रही. दुनियाभर में 40 फीसदी तो भारत में 70 फीसदी एपीआई अकेले चीन से आयात होता हैं, जिससे दवाएं बनती हैं. वहीं, दुनिया का 60 फीसदी सेमीकंडक्टर सिर्फ ताइवान निर्यात करता है और कोरोनाकाल में ऑटो सेक्टर को इसकी किल्लत के चलते भारी मार झेलनी पड़ी. महीनों तक गाड़ियां प्लांटों में खड़ी रहीं और फ़िर ग्राहकों को डिलिवरी के लिए लंबा इंतज़ार करना पड़ा. साथ ही वाहनों की ज्यादा कीमत भी चुकानी पड़ी.
जयशंकर की इस बात में इसलिए दम है क्योंकि एक ओर चीन पर निर्भरता के कारण दुनिया जरूरी वस्तुओं के लिए कोरोनाकाल में जूझती रही तो इसके उलट कोरोना वैक्सीन के लिए भारत, अमेरिका और ब्रिटेन समेत अलग-अलग देशों में उत्पादन के कारण ही दुनियाभर तक तेज़ी से टीके पहुंच पाए.
दूसरी वज़ह. भारत का तेज़ी से 5 ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी के आंकड़े को छूने की दिशा में आगे बढ़ना. किसी भी देश के लिए शीर्ष अर्थव्यवस्था बनने में मैन्चुफैक्चरिंग और निर्यात का बड़ा योगदान होता है. 1987-88 तक भारत और चीन की जीडीपी कमोबेश बराबर थी. लेकिन तेज़ मैन्युफैक्चरिंग और निर्यात आधारित अर्थव्यवस्था बनकर चीन ने अगले 30 वर्षों में ख़ुद पर दुनिया को निर्भर कर डाला और 18 ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था बन गया.
इसके लिए देश में इंफ्रास्ट्रक्चर और ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस में खासा सुधार हुआ है. दुनिया की नामी टेक कंपनियां भारत में निवेश करने को आतुर हैं.
तीसरी वजह, भारत का भरोसे की गारंटी होना. कोरोना महामारी हो या यूक्रेन-रूस युद्ध. भारत ने निष्पक्ष रहते हुए अपने हितों को बढ़ाया तो दूसरे देशों की भी मदद की है. वैक्सीन मैत्री के ज़रिए भारत ने क़रीब 150 देशों तक करोड़ों कोरोना टीकों समेत अन्य मेडिकल सुविधाएं पहुंचाईं. वहीं, यूक्रेन जंग में युद्धविराम के लिए भरसक कोशिशें भी की गईं. इसके चलते दुनिया में भारत की छवि एक स्वतंत्र विदेश नीति वाले, शांतिप्रिय और भरोसेमंद पार्टनर की बनी है, जिसके साथ तमाम देश खड़ा होना चाहते हैं.
भारत के मैन्युफैक्चरिंग हब के तौर पर दुनिया की पसंद बनने पर इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेन ट्रेड के प्रोफेसर राकेश मोहन जोशी कहते हैं, कोरोना के वक्त सप्लाई चेन बाधित होने से बड़ी-बड़ी अर्थव्यवस्थाओं पर असर पड़ा. नतीजतन वे अब तक नहीं उबर पाए. वहां बेतहाशा महंगाई बढ़ी और इनमें कई देश आज स्लोडाउन की हालत में हैं.
हमारी न सिर्फ अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है बल्कि हम तीसरी बड़ी आर्थिक शक्ति बनने जा रहे हैं. हमारा पीएमआई यानी परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स लगातार 50 से ऊपर बना हुआ है, जो सकारात्मक पहलू है. साथ ही उत्पादन लागत भी कम है और इंफ्रासट्रक्चर तेजी से वैश्विक स्तर का हो रहा है.