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फर्रुखाबाद: बांसुरी जी हां वही जो श्री कृष्ण जी के हाथों में सदैव रहती हैं. जिसके संगीत की धुन भी हमेशा से ही प्रेम प्रकट करती हैं. ऐसे में बांसुरी की धुन जो कि पौराणिक काल से ही प्रेम और समर्पण का प्रतीक रही हैं. ऐसे में यह बांसुरी सभी धर्मों और संप्रदाय के लोग बजाते आए है. ऐसे में जब भी बांसुरी की बात आती हैं तो श्री कृष्ण जी की झलक दिखती हैं. क्योंकि उनके दोनों हाथों में यह बांसुरी दिखाई देती हैं.

कारीगर जावेद का पुश्तैनी काम
लोकल18 को कारीगर जावेद ने बताया कि वह अपने पुश्तैनी कार्य को आगे बढ़ा रहे हैं. बांसुरी बनाने की कला उन्होंने अपने पूर्वजों से सीखी थी. आज वह बांसुरी बनाने के लिए सबसे पहले असम से अलग प्रकार का बांस मांगते है इसके बाद उसकी सफाई करने के बाद छोटे छिद्र करते है. फिर इसमें डॉट लगाने के बाद रंगीन रंगों से रंगने के बाद बिक्री कर देते है. इनके पास तीन रुपए की बांसुरी से लेकर साठ रुपए तक की बांसुरी बना और बेंच रहे हैं. इनका यह कारोबार फर्रुखाबाद ही नहीं बल्कि प्रदेश के कई जिलों के साथ ही मध्य प्रदेश से लेकर राजस्थान तक फैला हुआ है. इसी व्यवसाय से वह अच्छी कमाई कर लेते हैं.

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बदलते समय में बांसुरी का महत्व
बदलते समय के साथ ही भले ही इसका चलन कम हो गया हो, लेकिन इनको बनाने वाले कारीगर आज भी इसे बनाकर कमाई कर रहे हैं. उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में बांसुरी बनाने के कारीगर अपने परंपरागत कार्य को आगे बढ़ा रहे है. इनके यहां पर एक अलग प्रकार के बांस की छड़ को आग में तपाने के बाद उसमें छोटे छोटे छिद्र करने के बाद उसमें से स्वर निकाले जाते है. जिससे की इसके अंदर आने वाली प्रत्येक आवृत्ति मधुर धुन बन जाती हैं. बांसुरी को लोग वंशी, बेन, बीन, बंसी भी कहा जाता हैं. वहीं, श्री कृष्ण जी भी इसका उपयोग करते थे. इसी कारण इन्हें भी बंशीधर, मुरलीधर के नाम से लोग पुकारते हैं.

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