first deck of cards who started this game know the history of Playing Card


History of Playing Cards: जब भी हम अपने दोस्तों के साथ होते हैं या घर पर महफिल जमानी होती है तो ताश के पत्तों को फेटते हैं. अक्सर गांव के नुक्कड़ पर लोग ताश खेलते मिल जाते हैं ,कुछ लोग इसको मस्ती के लिए सिर्फ खेलते हैं तो वहीं कुछ इसको कमाई का एक जरिया बना लेते हैं. ताश के खेल में लाखों, करोड़ों की बोली लगती है इसका एक बड़ा व्यापार भी है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा कि  ताश कब बने और इन्हें किसने बनाया. दुनिया के किस देश में इस खेल को पहली बार खेला गया.  

अगर आपके मन में भी इस तरह के सवाल हैं तो चलिए आज हम आपको इन सभी सवालों के जवाब विस्तार से देते हैं.

खेल  से लेकर जादू टोने में इस्तेमाल
खेल के लिए ताश के पत्ते का उपयोग तो आम बात है लेकिन इसका उपयोग जादू दिखाने, शिक्षा देने और टोना करने के लिए भी किया जाता है. ताश के पत्ते नंबर और चित्र दोनों का उपयोग करके बनाए जाते हैं. शुरुआत में पश्चिमी देशों में पेपर का चार कोन के लेयर वाला पत्ता बनाकर खेला जाता था. इसके अलावा पतले कार्डबोर्ड पर इसे चिपकाकर एक सपाट मेटल बनाया जाता था. इसका आकार एक जैसा होता था और इसे एक साथ हाथ में रखा जा सकता था. इसे बार-बार फैलाकर दिखाया जाता था जो नंबर इन पर बना होता है, इन नंबरों पर एक निशान लगा होता है, जिससे सामने वाले की पत्ती के साथ यह मिक्स न हो जाए. 20वीं शताब्दी के आधे तक इसका प्रचलन आम हो गया और इसको प्लास्टिक का बनाए जाने लगा.

कब हुई शुरूआत 

कई रिपोर्ट में बताया जाता है कि ताश के पत्तों की शुरुआत चीन से हुई, जहां 9 वीं या 10 वीं शताब्दी में इसको विकसित किया गया. उस दौरान ताश के पत्तों पर नंबर बने हुए होते थे. हालांकि ब्रिटेनिका की रिपोर्ट के अनुसार चीन में चिह्रों के साथ खेले जाने वाले किसी खेल का कोई सबूत नहीं मिलता है.

ब्रिटेनिका की रिपोर्ट के अनुसार इस खेल को पहली बार यूरोप के इजिप्ट या स्पेन में 1370 के दौरान खेला गया. उस समय ताश के पत्तों पर हाथ से लिखा जाता था. धीरे धीरे व्यापार के जरिए यह बाकी देशों में पहुंचा. 15 वीं शताब्दी में यह अमीरों के टाइमपास का साधन हुआ करता था. 15 वीं शताब्दी में जर्मनी में पत्ते लकड़ी पर बनने शुरू हुए जिससे इसकी छपाई की लागत कम हुई.

कैसे हुआ पत्तों का डिजाइन
आधुनिक समय में 52 पत्तों वाले ताश के डिजाइन को पूरी दुनिया में स्वीकार्य किया जाता है, इसे 4 सूट तथा 13 रैंक में बांटा गया है, ताकि प्रत्येक कार्ड सूट और रैंक को सही  रूप से पहचाना जा सके. मानक डेक में आम तौर पर दो या अधिक अतिरिक्त कार्ड होते हैं, जिन्हें जोकर कहा जाता है.

भारत में ताश के पत्तों का इतिहास 
भारत में ताश के पत्तों की शुरुआत मुगल काल के दौरान मानी जाती है. बताया जाता है कि यह बाबर के समय भारत में आया. उस दौरान इसे गंजीफा के नाम से जाना जाता था और इसके पत्ते आमतौर पर हाथ से रंगे जाते थे. धीरे-धीरे यह भारत में पॉपुलर हुआ और आज हर जगह खेला जाता है.

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