Fish Farming Tips: जानवर तो छोड़ो…इंसान का मांस भी खा जाती है ये मछली, पालन किया तो समय हो जाएंगे बर्बाद!
पश्चिम चम्पारण:- यदि आप मत्स्य पालक हैं या फिर इस कारोबार को शुरू करना चाहते हैं, तो आज हम आपको मछली पालन से जुड़े कुछ बेहद ही अनिवार्य एवं प्रमाणित जानकारी देने वाले हैं. विशेषज्ञों की मानें तो, ज्यादातर लोग तालाब में मछलियों की ऐसी प्रजातियों का पालन शुरू कर देते हैं, जो तालाब के इको सिस्टम को नष्ट कर उनके खाद्य श्रृंखला को बुरी तरह से प्रभावित कर देती है. ऐसे में यह कारोबार आपके गले का घेघ बन जाता है और आपको बड़े नुकसान से गुजरना पड़ता है. इसके पहले कि ऐसा कुछ हो, हम आपको मछलियों की उन सभी प्रजातियों की जानकारी देने वाले हैं, जिनका पालन आपको भूलकर भी नहीं करना चाहिए, या फिर मत्स्य पालन के लिए बेहतर मानी जाती है.
थाई मांगुर, सड़े गले मांस खाने के लिए बदनाम
कृषि विज्ञान केंद्र माधोपुर में कार्यरत पशु वैज्ञानिक डॉ. जगपाल लोकल 18 को बताते हैं कि प्रतिबंधित या फिर मत्स्य पालन के दृष्टिकोण से हानिकारक मछलियों की सूची में सबसे पहला नंबर थाई मांगुर का आता है. इस मछली को सन 2000 में भारत सरकार द्वारा प्रतिबंधित कर दिया गया था, क्योंकि यह मछली पानी के अंदर पाए जाने वाले लाभदायक शैवालों और लाभदायक प्रजातियों की छोटी मछलियों को अपना आहार बना लेती थी. इतना ही नहीं, यह मछली मांसाहारी है और मांस को बड़े चाव से खाती है. सबसे डरावनी बात यह है कि ये किसी भी जीव, यहां तक कि इंसानों के सड़ते मांस को भी बड़े चाव से खाती है, जिसकी वजह से इनके शरीर की वृद्धि एवं विकास बहुत तेजी से होता है.
इंसान और तालाब के इको सिस्टम के लिए हानिकारक
मांस खाने की वजह से इस मछली का वजन सिर्फ तीन महीने में 10 किलोग्राम तक हो जाता है. बकौल डॉ. जगपाल, इन मछलियों के अंदर घातक हेवी मेटल्स जैसे आरसेनिक, कैडमियम, क्रोमियम, मरकरी, लेड इत्यादि की अधिक मात्रा पाई जाती है, जो स्वास्थ्य के लिए बहुत अधिक हानिकारक है. मत्स्य पालकों द्वारा तालाब में इनके पालन से तालाब का इको सिस्टम बुरी तरह से प्रभावित हो जाता है. यही कारण है कि उनके पालन पर पूर्णतया प्रतिबंध लगा दिया गया है.
बिग हेड कार्प, प्रतिबंधित है पालना
विशेषज्ञों की मानें तो, थाई मांगुर के अलावा बिग हेड कार्प भी एक ऐसी मछली है, जिसका पालन किसी को नहीं करना चाहिए. यह मछली भी तालाब के इको सिस्टम के लिए बेहद हानिकारक होती है. दरअसल, थाई मांगुर की तरह ही बिग हेड कार्प भी नदी, तालाबों में मौजूद जरूरी पोषक तत्वों को बड़ी तेजी से सफाचट कर जाती है. ऐसे में इनके साथ मौजूद अन्य मछलियों को जल से जरूरी पोषक तत्व और आहार नहीं मिल पाता है. ऐसे में तालाब की खाद्य श्रृंखला बुरी तरह से प्रभावित हो जाती है. यही कारण है कि थाई मांगुर की तरह ही सरकार द्वारा इनके पालन को भी प्रतिबंधित किया गया है.
पालन के लिए करें इन मछलियों का चयन
डॉ. जगपाल बताते हैं कि मछली पालन में बेहतर मुनाफे के लिए बिहार सहित अन्य राज्यों के भी मत्स्य पालकों को मछलियों की कुछ खास प्रजातियों का पालन करना चाहिए. इनमें भारतीय मेजर कार्प, ऊपरी सतह पर रहने वाली कतला, मध्यम सतह पर रहने वाली रोहू और निचली सतह पर रहने वाली मृगल शामिल हैं. इनके अलावा मत्स्य पालक कुछ खास प्रजाति की विदेशी मछलियों का भी पालन कर सकते हैं. इनमें सिल्वर कार्प, ग्रास कार्प और कॉमन कार्प शामिल हैं.
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बाजार में होती है उच्च डिमांड
ऊपर में बताई गई इन मछलियों की सबसे बड़ी खासियत यह है कि आप देसी और विदेशी, सभी मछलियों का पालन एक साथ एक ही तालाब में सरलता से कर सकते हैं. स्वाद और सेहत के दृष्टिकोण से बेहतर होने की वजह से बाजार में इनकी डिमांड भी खूब की जाती है. ऐसे में इन्हें पालना किसी भी पालक को अच्छा मुनाफा दे सकता है.
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FIRST PUBLISHED : December 24, 2024, 15:44 IST