Ground Report: Two Musclemen From Sultanpur Missing; Did Maneka Gandhis Political Path Become Easy? – Ground Report : सुल्तानपुर के 2 बाहुबली गायब; क्या मेनका गांधी की सियासी राह हुई आसान?
नई दिल्ली:
Sultanpur Lok Sabha Seat : उत्तर प्रदेश में वरुण गांधी (Varun Gandhi) का भले बीजेपी (BJP) ने काट दिया हो लेकिन उनकी मां मेनका गांधी (Maneka Gandhi) नौंवी बार लोकसभा चुनाव लड़ रही हैं..सुल्तानपुर में इस बार उनका मुकाबला इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार रामभुआल निषाद से है. इस चुनाव में दो बाहुबली भाइयों के न होने से क्या मेनका गांधी की राह आसान हुई है? वरुण गांधी के सियासी भविष्य को लेकर उनकी क्या उम्मीद हैं? आइए, आपको लेकर चलते हैं सुल्तानपुर की सियासी जमीन पर…
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मेनका गांधी के चुनाव प्रचार में अब तक उनके बेटे और सुल्तानपुर से सांसद रहे वरुण गांधी नहीं दिखे हैं..लेकिन सुल्तानपुर के हजारों समर्थकों के बीच मेनका गांधी ‘माता जी’ के नाम से ही मशहूर हैं. सुल्तानपुर से करीब 25 किलोमीटर दूर जगदीशपुर रैना गांव में एनडीटीवी की टीम पहुंची तो 74 साल की मेनका गांधी चुनाव प्रचार करती मिलीं. यहां जनसभा में वो बात-बात में मोदी सरकार का जिक्र कम और सांसद के तौर पर कराए गए अपने काम ज्यादा गिनवाती हैं. मेनका गांधी कहती हैं कि यहां के सपा विधायक का फोन आया कि दुबई में उनका बेटा फंसा है. मैंने ये नहीं देखा कि वो विरोधी पार्टी के हैं. मैंने तुरंत फोन किया.
मेनका गांधी के बेटे वरुण गांधी का बीजेपी ने टिकट जरूर काटा है, लेकिन मेनका गांधी को नौंवी बार टिकट देकर बीजेपी ने उनको एक नया सियासी कीर्तिमान गढ़ने का मौका दिया है. अपने सियासी विरोधियों पर नपी-तुली बातें बोलने की आदी मेनका गांधी से जब वरुण गांधी के टिकट कटने पर सवाल होता है तो वो सियासी नेता नहीं, बल्कि एक मां के तौर पर जवाब देती दिखती हैं. मेनका कहती हैं, “वरुण पर मुझे पूरा भरोसा है. वो योग्य हैं. जो करेंगे, अच्छा करेंगे. चंद्रशेखर भी जब प्रधानमंत्री बने थे, तब वो सांसद नहीं थे. राजनीति में सांसद बने बिना भी बहुत कुछ हो सकता है.”
रामभुआल निषाद से मुकाबला
सुल्तानपुर की राजनीति में मेनका गांधी बनाम इंडिया गठबंधन के रामभुआल निषाद के बीच मुकाबला है. पिछले चुनाव में मेनका गांधी महज 14 हजार वोटों से जीती थीं. यही वजह है कि सुल्तानपुर में दो लाख से ज्याजा निषाद मतदाताओं को देखते हुए इंडिया गठबंधन ने गोरखपुर से चुनाव लड़ चुके रामभुआल को सुल्तानपुर से उतारा है. हालांकि विरोधी उनको बाहरी और आपराधिक छवि का बताते नहीं थकते हैं. हालांकि, रामभुआल निषाद कहते हैं कि निषादों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का मुलायम सिंह ने आदेश जारी किया था, लेकिन बीजेपी ने उसको रोक दिया.
सोनू और मोनू सिंह क्यों खामोश?
सुल्तानपुर की सियासत में एक बड़ी दखल सोनू और मोनू सिंह नाम के दो बाहुबली भाइयों की रही है. 2019 में चंद्रभद्र सिंह उर्फ सोनू ने मेनका गांधी के खिलाफ चुनाव लड़कर इस लड़ाई को मुश्किल बना दिया था. इसके कारण ही मेनका गांधी महज 14 हजार वोट से जीती थीं, लेकिन इस बार सियासी तौर पर प्रभावशाली दोनों भाई खामोश हैं, जिसका फायदा मेनका गांधी को मिल सकता है. देश दुनिया की निगाहें रायबरेली और अमेठी के अलावा गांधी परिवार से जुड़ी सुल्तानपुर लोकसभा सीट पर भी लगी है. अब चार जून को ही पता चलेगा कि क्या नौवीं बार मेनका गांधी जीतकर कीर्तिमान गढ़ेंगी या रामभुआल की सियासी तकदीर चमकेगी?