Haldwani Violence Is Culmination Of Long-running Communal Tension: Fact Finding Team Report – हल्द्वानी हिंसा लंबे समय से जारी सांप्रदायिक तनाव की परिणति : फैक्ट फाइंडिंग टीम की रिपोर्ट
नागरिक अधिकार समूहों के नेतृत्व वाली तथ्य अन्वेषण टीम ( फैक्ट फाइंडिंग टीम) ने दावा किया है कि आठ फरवरी को हल्द्वानी को हिला देनी वाली हिंसक घटनाएं आकस्मिक नहीं थीं बल्कि लंबे समय से विभाजनकारी बयान और नीतियों की वजह से पैदा हो रहे सांप्रदायिक तनाव की परिणति थी. हल्द्वानी के बनभूलपुरा इलाके में मदरसा की अवैध इमारत को गिराने को लेकर आठ फरवरी को हिंसा भड़क गई थी. हिंसा के दौरान स्थानीय लोगों ने नगर निगम कर्मियों और पुलिस पर पत्थरबाजी की थी और पेट्रोल बम से हमला किया था. इसकी वजह से कई पुलिस कर्मी शरण लेने के लिए थाना पहुंचे जिसे भीड़ ने आग के हवाले कर दिया.
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पुलिस के मुताबिक हिंसा में छह ‘दंगाइयों’की मौत हो गई जबकि 100 से अधिक घायल हुए जिनमें पुलिस कर्मी और मीडिया कर्मी भी शामिल हैं. पुलिस ने शुक्रवार को बताया कि हल्द्वानी हिंसा के मुख्य आरोपी अब्दुल मलिक और उसके बेटे अब्दुल मोइद के खिलाफ लुक आउट नोटिस जारी किया गया है. वहीं, पांच और दंगाइयों को गिरफ्तार किया गया है.
नागरिक समाज तथ्य अन्वेषण टीम ने बुधवार को हल्द्वानी का दौरा किया था जिसमें एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स और कारवां-ए-मोहब्बत के सदस्य शामिल थे. टीम की रिपोर्ट में दावा किया गया कि मामला अदालत में विचाराधीन होने के बावजूद अधिकारियों ने सील मस्जिद और मदरसे को ध्वस्त करने का कदम उठाया, जिससे मुस्लिम समुदाय में नाराजगी फैल गई.
रिपोर्ट के मुताबिक जल्द ही यह निवासियों और कानून प्रवर्तकों के बीच झड़पों में तब्दील हो गई. रिपोर्ट में चश्मदीदों की गवाही के हवाले से आरोप लगाया कि पुलिस बल ने तलाशी व हिरासत में लेने के दौरान अंधाधुंध गोलीबारी, क्रूरता सहित अत्यधिक बल प्रयोग किया.
रिपोर्ट में लंबे समय तक कर्फ्यू लगाने और इंटरनेट बंद करने की आलोचना की गई. रिपोर्ट में दावा किया गया है कि इससे पहले से ही असुरक्षित निवासियों, खासकर महिलाओं और बच्चों की मुश्किलें बढ़ गई हैं. इसमें कहा गया है कि आठ फरवरी को सीधे तौर पर हिंसा से प्रभावित इलाकों में कर्फ्यू लगा है जिसकी वजह से टीम के सदस्यों के लिए सीधे तौर पर प्रभावित लोगें से मिलना और बात करना संभव नहीं हुआ.
रिपोर्ट में कहा गया, ‘‘हमने जिला प्रशासन के सदस्यों से भी संपर्क किया, लेकिन उन्होंने या तो कोई जवाब नहीं दिया या हमें बताया कि वे बहुत व्यस्त थे और इसलिए हमसे मिलने में असमर्थ थे.” इसमें कहा, ‘‘इसलिए, यह एक अंतरिम रिपोर्ट है जो बड़ी संख्या में नागरिक समाज के सदस्यों, पत्रकारों, लेखकों और वकीलों से बातचीत पर आधारित है. कुछ प्रभावित व्यक्तियों के साथ टेलीफोन पर बातचीत की गई, जिन्होंने नाम न छापने की शर्त पर हमसे बात की.”