असमिया साहित्य भारतीयता की केंद्रीयता में विकसित होने वाला साहित्य है – प्रो. चन्दन कुमार

असमिया साहित्य भारतीयता की केंद्रीयता में विकसित होने वाला साहित्य है–प्रो. चन्दन कुमार

हिंदी विभाग, हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय, धर्मशाला द्वारा ‘पूर्वोत्तर का हिंदी साहित्य : स्थिति और संभावनाएं’ विषय पर आयोजित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय ई- संगोष्ठी में दूसरे दिन गुरुवर प्रो. चन्दन कुमार ने अपना अध्यक्षीय वक्तव्य दिया। ‘असम का धार्मिक एवं सांस्कृतिक जीवन और हिंदी साहित्य’ विषय पर बोलते हुए प्रो. चन्दन कुमार ने नागालैंड की एक लोककथा से अपने वक्तव्य की शुरुआत की। उन्होंने कहा कि यह प्रान्त भारतीय लीलाभाव को जीने वाला है। असम के प्रतिष्ठित साहित्यकार ‘ज्योति प्रसाद अगरवाला’ की चर्चा करते हुए उनके योगदान को उन्होंने रेखांकित किया। ब्रजबुलि भाषा के भाषिक बनावट पर उन्होंने दृष्टिपात किया। असम के साहित्यिक, सामाजिक और धार्मिक जीवन में नवीन संचार करने वाले महापुरुष श्रीमन्त शंकरदेव पर बात करते हुए उन्होंने उनकी रचनाधर्मिता के केंद्र में भारतवर्ष की उपस्थिति को रेखांकित किया।

प्रो. चंदन ने कहा कि ज्ञान की सरणि का ब्रम्हपुत्र पार करना ऐतिहासिक है। अरुणाचल से हिमाचल तक की यात्रा भारतीय राष्ट्र को व्याख्यायित करने के सूत्र देती है। उन्होंने अपने वक्तव्य में विभिन उद्धरणों के माध्यम से ‘ब्रम्हपुत्र’ शब्द की उत्पत्ति पर विचार किया और कहा कि ब्रम्हपुत्र महाबाहु है।
उन्होंने असम में सिद्धों के प्रभाव का भी जिक्र किया और बताया कि कई सिद्ध असम के ही रहने वाले थे। उन्होंने नाथपंथियों और कामाख्या पीठ के संबंधों का भी उल्लेख किया। श्रीमन्त शंकरदेव का भाषाबोध उनके भारतबोध से निर्मित होता है। उन्होंने पूरे भारत वर्ष की दो बार यात्राएं कीं। महाकवि ने अपनी यात्राओं के माध्यम से भारत के सांस्कृतिक वैविध्य को समझा था। प्रो. चन्दन ने शंकरदेव और माधवदेव और उनकी शिष्य परंपरा का उल्लेख करते हुए बताया कि दोनों महापुरुषों ने अपनी रचनाओं में सदा भारतवर्ष की बात की है। उन्होंने कीर्तनघोषा और बरगीतों के उदाहरणों से इस बात को सिद्ध भी किया।

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असम में हुए भक्ति आंदोलन की तरफ भी उन्होंने श्रोताओं का ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने श्रीमद्भागवत महापुराण का संदर्भ लेते हुए नारद-भक्ति संवाद को व्याख्यायित किया। उन्होंने नारद-भक्ति संवाद की विस्तार से चर्चा करते हुए भक्ति की उत्पत्ति का विवेचन किया। उत्तर से पूर्वोत्तर तक भक्ति का यह प्रवाह एक सभ्यताबोध है। प्रो. चन्दन ने कहा कि जिसने सत्र, नामघर और भाओना का दर्शन नहीं किया, वह असम के सांस्कृतिक जीवन को नहीं समझ सकता। असम का सांस्कृतिक जीवन सत्रों से गहराई से जुड़ा हुआ है। उन्होंने बताया कि हर घर में असमिया भागवत के दर्शन आपको जरूर होंगे। प्रो. चन्दन ने कहा कि असमिया साहित्य पांथिक नहीं अपितु भारतीयता की केन्द्रीयता में विकसित होने वाला साहित्य है। यही ‘आईडिया ऑफ इंडिया’ है।

असम में हिंदी की सेवा करने वाले अनेक विद्वानों का उल्लेख उन्होंने अपने वक्तव्य में किया। डॉ. कृष्ण नारायण प्रसाद ‘मागध’ के रचनात्मक योगदान को उन्होंने रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि वर्तमान में सक्रिय रचनात्मक व्यक्तित्वों में डॉ. वीरेंद्र परमार और डॉ. Hareram Pathak उल्लेखनीय हैं। डॉ. वीरेंद्र परमार लगातार पूर्वोत्तर और असम के लोकसाहित्य पर लिख रहे हैं जो पूर्वोत्तर में हिंदी के विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

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सत्र में मुख्य वक्ता के रूप में प्रो. किरण हजारिका और विशिष्ट वक्ता के रूप में डॉ. मिलन रानी जमातिया ने अपने विचार व्यक्त किये। संगोष्ठी में विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति प्रो. कुलदीप चंद्र अग्निहोत्री का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। संगोष्ठी का संयोजन हिंदी विभाग के अध्यक्ष डॉ. राजकुमार उपाध्याय ‘मणि’ ने किया। संगोष्ठी में विभागीय सदस्यों डॉ. चन्द्रकान्त सिंह, डॉ. प्रिया शर्मा, डॉ. प्रीति सिंह और डॉ. ओमप्रकाश प्रजापति की सक्रिय भागीदारी रही।

इस ई – संगोष्ठी में पूरे देश से लगभग एक हजार प्राध्यापकों, शोधार्थियों और विद्यार्थियों की उपस्थिति रही।
साभार – आदित्य मिश्र फेसबुक प्रोफ़ाइल

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