How special is the thermal drone with which man eating wolves were caught in Bahraich know how does it work


भेड़िए को काफी चालाक जानवर माना जाता है. भेड़िए को अगर इंसानी खतरे का एहसास होगा तो वो आस-पास नहीं दिखेंगे. यूपी के बहराइच में आदमखोर भेड़ियों की दहशत से लोग घरों से बाहर निकलने में डर रहे हैं. लेकिन वन विभाग के अधिकारियों ने थर्मल ड्रोन से निगरानी करके 4 भेड़ियों को पकड़ा है, वहीं दो अन्य भेड़ियों को पकड़ने की तैयारी जारी है. आज हम आपको बताएंगे कि आखिर थर्मल ड्रोन कितना खास होता है, जिसे अधिकांश ऑपरेशन में इस्तेमाल किया जाता है. 

भेड़िया

कुत्ते की तरह दिखने वाला भेड़िया कुत्तों समेत बाकी सभी जानवरों से काफी चालाक होता है. भेड़ियों को इंसानों की गंध सबसे तेज पता चलती है, जिससे वो सतर्क हो जाता है. इतना ही नहीं भेड़िया अपनी पुरानी गलतियों से सीख लेकर हमेशा नई झुंड में रहते हुए नई रणनीति बनाता है. आज हम आपको बताएंगे कि आखिर भेड़ियों को पकड़ना कितना मुश्लिक होता है और इसमें थर्मल ड्रोन ने कैसे योगदान दिया है. 

भेड़िए को पकड़ना मुश्किल?

विशेषज्ञों के मुताबिक  भेड़िए की सूंघने की क्षमता बहुत तेज होती है. ये दूर मौजूद इंसानों की गंध पहचान लेते हैं और सतर्क हो जाते हैं. इतना ही नहीं यह अपने साथियों को कभी अकेला नहीं छोड़ते है. कहा जाता है कि अगर किसी साथी को कोई शिकार फंसाकर लेकर जाता है, तो ये वहां तक हमला कर सकते हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह गंध है. इसलिए भी इन्हें पकड़ना मुश्किल होता है. 

क्या है थर्मल ड्रोन

सबसे पहले ये जानते हैं कि थर्मल ड्रोन आखिर क्या होता है? बता दें कि थर्मल कैमरा विशेष लेंस का उपयोग करते हैं, जो आईआर आवृत्तियों को पकड़ते हैं. वहीं इसके साथ ही थर्मल सेंसर और इमेज प्रोसेसर के साथ मिलकर ये दृश्य प्रदर्शन पर परिणाम प्रस्तुत करते हैं. जब ड्रोन पर इन्फ्रारेड कैमरा लगाया जाता है, तो डिवाइस को आमतौर पर एक जिम्बल पर रखा जाता है, जो छवि को स्थिर करता है और लेंस को पूरे 360 डिग्री घूमने देता है. बता दें कि इन कैमरों में थर्मल सेंसर को  जिन्हें तकनीकी रूप से माइक्रोबोलोमीटर के रूप में जाना जाता है. ड्रोन थर्मल कैमरे कई वस्तुओं के सतही तापमान का पता लगा सकते हैं, लेकिन कुछ अपवाद भी हैं. 

कहां मिलता थर्मल ड्रोन

तकनीक के इस युग में अधिकांश देशों की सरकारों के पास अब थर्मल ड्रोन मौजूद है. हालांकि थर्मल ड्रोन में भी कई कैटेगरी होती है, जिसका इस्तेमाल अलग-अलग ऑपरेशन में किया जाता है. उदाहरण के लिए सैन्य ऑपरेशन में मौजूद थर्मल ड्रोन में सामान्य थर्मल ड्रोन से काफी अधिक खूबियां होती हैं. 

क्या कोई भी खरीद सकता ड्रोन

भारत समेत दुनियाभर के अलग-अलग देशों में ड्रोन को लेकर कई पॉलिसी बनाई गई हैं. जैसे भारत में 250 ग्राम से कम वजन ड्रोन के लिए किसी भी लाइसेंस की जरूरत नहीं है. लेकिन इसके अलावा अलग-अलग कैटेगरी के ड्रोन के लिए लाइसेंस की जरूरत होती है. लेकिन कुछ ड्रोन जो सैन्यबलों से जुड़ा हुआ है, उनके खरीद-ब्रिकी पर प्रतिबंध है. बता दें कि जैसे भारत में  ज़ेन टेक्नोलॉजी एक रक्षा ड्रोन निर्माण कंपनी है, वैसे ही दूसरे देशों में भी कई ऐसी कंपनियां है, जो सिर्फ सैन्यबलों के लिए ड्रोन बनाती है.  

ड्रोन की ऊंचाई

सभी ड्रोनों में अलग-अलग खासियत होता है, जिसके लिए उन्हें जाना जाता है. ऐसे ही थर्मल ड्रोन के जरिए काफी ऊंचाई से आपको जमीन पर मौजूद लोगों का थ्रीडी पिक्चर मिल जाता है. इतना ही नहीं थर्मल ड्रोन के जरिए ये भी पता चलता है कि बिल्डिंग के अंदर कितने लोग मौजूद हैं. खासकर आतंकी कार्रवाई में ऐसी तकनीक से ऑपरेशन में मदद मिलती है. 

हर कोई नहीं खरीद सकता 

बता दें थर्मल ड्रोन में भी कई कैटेगरी होती है. इनमें कई ऐसे ड्रोन होते हैं, जिसे बाजार में आम लोगों को नहीं बेचा जा सकता है. इनका इस्तेमाल सिर्फ सैन्य बल के जवान ही कर सकते हैं. हालांकि फायर टेस्टिंग के लिए भी रिसर्चर कई बार थर्मल ड्रोन का इस्तेमाल करते हैं.   

आंधी-बारिश-तूफान में असरदार

जानकारी के मुताबिक थर्मल ड्रोन बारिश और आंधी में भी काफी मददगार होता है. इसके जरिए अमेरिका समेत कई देशों ने बड़े-बड़े ऑपरेशन को अंजाम दिया है. इतना ही नहीं थर्मल ड्रोन आवाज भी बिल्कुल नहीं करता है, जिससे दुश्मनों को ड्रोन के होने की जानकारी नहीं मिलती है. आज के वक्त सैन्य बलों के जवान सबसे अधिक थर्मल ड्रोन का इस्तेमाल करते हैं, क्योंकि कई ऑपरेशन के दौरान इस ड्रोन के जरिए ये भी पता चलता है कि बिल्डिंग में कितने लोग मौजूद हैं. 

आग का नहीं होता है असऱ

इसके अलावा थर्मल ड्रोन का इस्तेमाल आग लगने वाले क्षेत्रों में निगरानी के लिए भी करते हैं. दरअसल इस ड्रोन को नए थर्मल एरोजेल इन्सुलेशन मटेरियल से बनाया गया है और इसमें इनबिल्ट कूलिंग सिस्टम है. ये ड्रोन को 10 मिनट तक 200 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान को झेलने में मदद करता है. 

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