ISRO SpaDeX Docking successful What is Spacecraft docking system and why is important for Indian Space Station
भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी (ISRO) ने इतिहास रच दिया. अंतरिक्ष में दो स्पेसक्राफ्ट को आपस में जोड़ने में इसरो ने सफलता हासिल की है. इस स्पेस डॉकिंग को अंजाम देने वाला भारत दुनिया का चौथा देश बन गया है. इससे पहले अमेरिका, रूस और चीन ही ऐसा कर सके थे. अब भारत भी उन देशों में शुमार हो गया है, जिसके पास स्पेस डॉकिंग टेक्नोलॉजी है. अब सवाल यह है कि यह स्पेस डॉकिंग क्या होती है? इसे कैसे अंजाम दिया जाता है? स्पेस डॉकिंग और अनडॉकिंग से इसरो क्या हासिल करना चाहता है? चलिए जानते हैं…
30 दिसंबर को लॉन्च हुआ था मिशन
इसरो ने 30 दिसंबर, 2024 को स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट (स्पेडेक्स) मिशन लॉन्च किया था. इसके तहत PSLV-C60 रॉकेट से दो स्पेसक्राफ्ट को पृथ्वी से 470 किमी ऊपर डिप्लॉय किया गया था. ये दोनों रॉकेट 28,800 किमी/घंटे की रफ्तार से अंतरिक्ष में ट्रैवल कर रहे थे. अब इसरो ने इन दोनों स्पेसक्राफ्ट को आपस में जोड़ने में सफलता हासिल कर ली है. इसरो ने बताया है कि आने वाले दिनों में दोनों स्पेसक्राफ्ट में इलेक्ट्रिक पॉवर ट्रांसफर की जाएगी, बाद में अनडॉकिंग की जाएगी.
अंतरिक्ष में जोड़े जाते हैं दो यान
स्पेस डॉकिंग का मतलब है स्पेस में दो अंतरिक्ष यानों को आपस में कनेक्ट करना. 30 दिसंबर को इसरो ने दो अंतरिक्ष यानों स्पेडेक्स A और स्पेडेक्स B को अंतरिक्ष में भेजा था. इन दोनों अंतरिक्ष यानों का वजन 220 किलो था. बुलेट से कई गुना रफ्तार से घूम रहे दोनों स्पेसक्राफ्ट की स्पीड को धीरे-धीरे कम किया गया, जिसके बाद उन्हें आपस में जोड़ा गया. इस तकनीक को स्पेस डॉकिंग कहते हैं. अब इन स्पेसक्राफ्ट में इलेक्ट्रिक पॉवर ट्रांसफर का एक्सपेरीमेंट किया जाएगा, इसके बाद अनडॉकिंग होगी. यानी दोनों स्पेसक्राफ्ट अलग होकर अपने-अपने ऑपरेशन शुरू कर देंगे.
कैसे जोड़े गए दोनों स्पेसक्राफ्ट
स्पेडेक्स मिशन के तहत दो ऐसे स्पेसक्राफ्ट को आपस में जोड़ा जाना था, जो बुलेट से 10 गुना रफ्तार यानी 28,800 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से ट्रैवल कर रहे थे. पहले 7 जनवरी को इन स्पेसक्राफ्ट को कनेक्ट किया जाना था, लेकिन इसे टाल दिया गया. इसरो ने दूसरा प्रयास 9 जनवरी को किया, लेकिन तकनीकी दिक्कतों के कारण इसे फिर से टाला गया. इसके बाद 12 जनवरी को दोनों स्पेसक्राफ्ट की स्पीड को धीरे-धीरे कम करके इन्हें 3 मीटर की दूरी पर लाया गया, लेकिन बाद में इन्हें फिर से सुरक्षित दूरी पर ले जाया गया. अब सफलतापूर्वक दोनों स्पेसक्राफ्ट की डॉकिंग की गई है.
क्या हासिल करना चाह रहा इसरो?
अंतरिक्ष में अपना स्पेस स्टेशन बनाने के लिए स्पेस डॉकिंग टेक्नोलॉजी बहुत जरूरी है. इसरो का टारगेट स्पेस में खुद का स्पेस स्टेशन बनाने का है. इसके तहत यह एक्सपेरीमेंट किया गया है. इसके आलवा चंद्रयान-4 और गगनयान मिशन की सफलता भी बहुत हद तक स्पेस डॉकिंग टेक्नोलॉजी पर निर्भर करेगी. चंद्रयान-4 के तहत इसरो चांद की मिट्टी को पृथ्वी पर लाकर परीक्षण करेगा तो गगनयान मिशन के तहत अंतरिक्ष यात्रियों को पहली बार स्पेस में भेजा जाएगा.
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