Kutch Cemetery With 500 Graves Leads To 5,700-year-old Harappan Settlement – 5,700 साल पुरानी हड़प्पा बस्ती की ओर ले जाता है 500 कब्र वाला कच्छ का कब्रिस्तान
अहमदाबाद:
वर्ष 2018 में पहली बार गुजरात के कच्छ में 500 से अधिक कब्रों वाला एक क़ब्रिस्तान का पता चला था. इसने पुरातत्वविदों की एक टीम को एक दिलचस्प खोज की ओर अग्रसर किया है. पुरातत्वविदों का मानना है कि 5,000 साल से भी अधिक समय पहले की एक हड़प्पा युग की बस्ती यहां थी. क्रांतिगुरु श्यामजी कृष्ण वर्मा कच्छ विश्वविद्यालय में पुरातत्व विभाग के प्रमुख डॉ. सुभाष भंडारी ने कहा कि जूना खटिया गांव के पास कब्रिस्तान की 2018 की खुदाई ने कुछ प्रमुख प्रश्न खड़े किए हैं. यह पता लगाना जरूरी है कि यहां रहने वाले लोग कौन थे? यह एक बड़ा सवाल था और हम इसका जवाब तलाश रहे थे.
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डॉ. भंडारी ने कहा कि टीम को साइट पर कारेलियन और एगेट जैसे अर्ध-कीमती पत्थर, शंख के टुकड़े और हथौड़े के पत्थर भी मिले. उन्होंने कहा कि हम कह सकते हैं कि यह बस्ती स्थल लगभग 5,700 साल पुराना है. ऐसा प्रतीत होता है कि यह बस्ती प्रारंभिक हड़प्पा काल से लेकर हड़प्पा काल के अंत तक बसी रही है. उन्होंने बताया कि टीम को गाय और बकरियों के अवशेष मिले हैं. हम कह सकते हैं कि यहां रहने वाले लोग पशुपालन से जुड़े थे. यहां से एक मानव कंकाल का अवशेष भी मिला है.
बस्ती स्थल पर कम संरचनाएं क्यों?
केरल विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर और इस परियोजना के सह-निदेशक राजेश एसवी ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि पडता बेट की पहाड़ी जूना खटिया में पाए गए कंकाल अवशेष जमीन में दफन अवशेषों में से एक हो सकती है. अभी यह पता चलता है कि यह उन कई बस्तियों में से एक थी, जिनका दफन स्थल जूना खटिया था. पडता बेट में, शोधकर्ताओं ने पुरातात्विक भंडार वाले दो इलाकों की पहचान की है. केरल विश्वविद्यालय में पुरातत्व के एचओडी और प्रोफेसर अभयन जीएस ने पडता बेट में खुदाई का नेतृत्व किया. उन्होंने कहा कि यह संभव है कि जनसंख्या वृद्धि के कारण लोग एक इलाके से दूसरे इलाके में फैल गए. दूसरी थ्योरी यह है कि वे विभिन्न अवधियों के दौरान बसे हुए थे. बस्ती स्थल पर कम संरचनाएं क्यों हैं? इस पर प्रोफेसर अभयन ने कहा कि यह स्थल एक पहाड़ी पर है, इसलिए परिदृश्य अस्थिर है. इससे समय के साथ कई संरचनाएं ढह सकती हैं. उन्होंने कहा, पडता बेट साइट का स्थान बहुत महत्वपूर्ण था. आप यहां से आसपास के पहाड़ों और घाटी को देख सकते हैं. पास में बहने वाली नदी यहां रहने वाले लोगों के लिए पानी का मुख्य स्रोत रही होगी.
क्यों रहते थे यहां?
डॉ. भंडारी ने कहा कि वे अब दफन स्थल और बस्ती के बीच संबंध के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त करने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं. हम वहां रहने वाले लोगों के बारे में और अधिक जानने की कोशिश करेंगे. यह साइट एक पहाड़ी पर है, इसलिए उन्हें आसपास का स्पष्ट दृश्य मिलता है. हम यह पता लगाने की कोशिश करेंगे कि क्या यह रणनीतिक दृष्टिकोण से था या आस-पास पानी की उपलब्धता होने के कारण था. हम उनके भोजन की आदतों का भी पता लगाने की कोशिश करेंगे. हमें पत्थर मिले हैं, इसलिए हम यह पता लगाएंगे कि क्या उनका व्यवसाय मुख्य रूप से देहाती था या वे व्यापार भी करते थे?परियोजना में शामिल संस्थानों में केरल विश्वविद्यालय, कच्छ विश्वविद्यालय, पुणे का डेक्कन कॉलेज, कर्नाटक केंद्रीय विश्वविद्यालय, तीन स्पेनिश संस्थान – कैटलन इंस्टीट्यूट ऑफ क्लासिकल आर्कियोलॉजी, स्पेनिश नेशनल रिसर्च काउंसिल और अमेरिका का ला लागुना विश्वविद्यालय, एल्बियन कॉलेज और टेक्सास ए एंड एम विश्वविद्यालय हैं.