Lagrange Points what they are one of which Aditya L1 of ISRO will be installed


हाइलाइट्स

आदित्य एल 1 सूर्य के ही अध्ययन के लिए भारत का पहला समर्पित यान होगा.
इसे कोविड महामारी काल में ही अंतरिक्ष मे प्रक्षेपित किया जाना था.
यह वेधशाला सूर्य पर लगातार नजर रख सकेगी, इस पर सूर्य ग्रहण का भी असर नहीं होगा.

भारतीय स्पेस एजेंसी इसरो के चंद्रयान अभियान की अभूतपूर्व सफलता के बाद आदित्य एल1 यान भेजा जा रहा है. इस इस वेधशाला को सितंबर माह की दो तारीख को प्रक्षेपित करने जा रहा है. यह इसरो का इस तरह का पहला अभियान है और वह सूर्य के बारे में ऐसी जानकारी निकालने में सक्षम होगा जो पृथ्वी से हासिल नहीं की जा सकती हैं. इस यान की सबसे खास बात यही है कि यह यान सूर्य और पृथ्वी के तंत्र के एक प्रमुख बिंदु लैगरेंज एक पर ले जाकर स्थापित किया जाएगा. आदित्य एल1 ने एक बार फिर लैगरेंज बिंदुओं को महत्व को रेखांकित कर दिया है. आइए जानते हैं कि  ये बिंदु क्या होते हैं.

पृथ्वी की सतह की समस्या
हमारी पृथ्वी के वायुमंडल की ओजोन परत सूर्य की पराबैंगनी विकिरण को सतह पर नहीं पहुंचने देती है. इसके अलावा सूर्य से निकलने वाले महीन कणों के विकिरण, जो सौर पवन के तौर पर अंतरिक्ष के वातावरण में विचरण करते हैं, पृथ्वी की मैग्नेटिक फील्ड के कारण पृथ्वी की सतह तक नहीं पहुंच पाते हैं. ऐसे में पृथ्वी के बाहर स्थित उपकरण सूर्य का अच्छे से अध्ययन कर सकते हैं.

सूर्य के पास या दूर
ऐसे में एक सवाल यह उठता है कि हम सूर्य के पास ही किसी अभियान को क्यों नहीं भेज सकते हैं. वास्तव में ऐसा होता भी है. नासा का सोलर पार्कर यान सूर्य के कुछ नजदीक, बुध ग्रह के पास तक जा भी रहा है. इसी तरह से यूरोपीय स्पेस एजेंसी ईसा का सोलर ऑर्बिटर अभियान भी सूर्य की ओर जा रहा है. लेकिन आदित्य एल1 खास इसलिए है कि यह सूर्य के पास नहीं बल्कि एक खास स्थान पर भेजा जा रहा है.

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पृथ्वी की सतह पर सूर्य के कई प्रकार के विकिरण नहीं पहुंच पाते हैं जिससे सूर्य का अच्छे से अध्ययन नहीं हो पाता है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Shutterstock)

क्या होते हैं ये बिंदु
आदित्य एल1 को पृथ्वी और सूर्य के खगोलीय तंत्र के लैगरेंज 1 बिंदु पर ले जाकर स्थापित किया जाएगा. सौरमंडल में पृथ्वी सूर्य  का एक अंडाकार कक्षा में चक्कर लगाती है. इस वजह से कुछ बिंदु ऐसे हैं जहां दोनों को का गुरुत्वाकर्षण एक दूसरे को कम कर एक तरह का संतुलन ला देता है. वैज्ञानिक इन्हीं स्थानों को लैगरेंज बिंदु कहते हैं.लैगरेंज बिंदु एल1 पृथ्वी से 15 लाख किलोमीटर दूर सूर्य और पृथ्वी के बीच स्थित है.

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किस तरह के होते हैं पांच लैगरेंज बिंदु
सूर्य और पृथ्वी और उसके जैसे तंत्र गुरुत्वाकर्षण के लिहाज से 5 स्थान विशेष  हो जाते हैं. इनमें से तीन अस्थिर और दो स्थिर बिंदु होते हैं. एल1, एल2 और एल3 अस्थिर बिंदु कहलाते हैं दो सूर्य और पृथ्वी के बीच की सीधी रेखा मे पड़ते हैं. इनमें एल1 सूर्य और पृथ्वी के बीच, एल2 पृथ्वी के पीछे सूर्य की विपरीत दिशा में और एल 3 सूर्य के पीछे पृथ्वी की कक्षा का बिंदु होता है. वहीं एल4 और एल5 पृथ्वी की कक्षा में ऐसे बिंदु होते हैं जो पृथ्वी और सूर्य के साथ मिलकर  समकोण त्रिभुज बनाते है.

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सूर्य और पृथ्वी की तुलना में लैगरेंज बिंदुओं का विशेष महत्व होता है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Wikimedia Commons)

क्या फायदा होगा यहां पर आदित्य एल1 को
लैगरंज बिंदु ऐसे स्थान होते हैं जहां कुछ रख दिया जाए तो वह वहां पर स्थिर हो जाएगी यानि सूर्य और पृथ्वी की तुलना में वह वस्तु उसी स्थान पर रहेगी. यानि आदित्य एल 1 को अपने स्थान पर बने रहने के लिए पृथ्वी और सूर्य के गुरुत्वाकर्षण से जूझना नहीं होगा. इसके अलावा आदित्य एल1 वेधशाला पृथ्वी के घूर्णन के कारण दिन रात की समस्या से भी मुक्त रहेगा और पृथ्वी से पहली रहने के कारण यह सूर्यग्रहण के प्रभाव में नहीं होगी और लागातर सूर्य का अध्ययन करती रहेगी.

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आदित्य एल-1 सूर्य के वातावरण और उसकी जटिल प्रक्रियाओं का गहन अध्ययन करेगा. इसके लिए वह सूर्य के ऊपरी वायुमंडल यानि क्रोमोस्फीयर और कोरोना की गतिकी, आंशिक आयनीकृत प्लाज्मा की भौतिकी, कोरोनल मास इजेक्शन की शुरुआत, क्रोमोस्फीयर और कोरोनल हीटिंग, और सौर ज्वालाओं का अध्ययन करेगा. यह लैगरेंज बिंदु 1 के आसपास सूर्य द्वारा पैदा किए गए अंतरिक्ष मौसम का भी अध्ययन करेगा.

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