Large Difference In Performance Of Students From Various Boards Challenge Education Ministry Study – विभिन्न बोर्ड के छात्रों के प्रदर्शन में अंतर एक चुनौती: शिक्षा मंत्रालय की स्टडी



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रिपोर्ट में यह भी सिफारिश की गई है कि राज्य बोर्ड सेंट्रल बोर्ड के साइंस के सिलेबस को फॉलो कर सकते हैं, ताकि छात्रों को जेईई मेन (JEE) और नीट (NEET) जैसी कॉमन एंट्रेस एग्जाम के लिए समान मौके मिले. मानकीकरण (Standardisation) के इस प्रयास के पीछे दूसरा कारण कक्षा 10 के स्तर पर ड्रॉपआउट यानी बीच में पढ़ाई छोड़ने वाले छात्रों की संख्या को रोकना है.

शिक्षा मंत्रालय की स्टडी में कहा गया है कि प्रदर्शन में अंतर विभिन्न बोर्ड द्वारा अपनाए गए विभिन्न स्वरूप के कारण हो सकते हैं. एक राज्य में 10वीं और 12वीं के बोर्ड को सिंगल बोर्ड में लाने से छात्रों को मदद मिल सकती है. शिक्षा मंत्रालय के मूल्यांकन में यह भी पाया गया कि बोर्ड द्वारा अपनाए जाने वाले अलग-अलग पाठ्यक्रम के चलते राष्ट्रीय स्तर की प्रवेश परीक्षाओं के लिए बाधाएं उत्पन्न हुई हैं.

भारत में तीन केंद्रीय बोर्ड

वर्तमान में भारत में तीन केंद्रीय बोर्ड हैं – केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE), काउंसिल फॉर द इंडियन स्कूल सर्टिफिकेट एक्जामिनेशंस (CISCI) और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओपन स्कूलिंग (NIOS). इनके अलावा, विभिन्न राज्यों के अपने राज्य बोर्ड हैं, जिससे स्कूल बोर्ड की कुल संख्या 60 हो गई है.

स्कूल शिक्षा सचिव संजय कुमार के अनुसार, विभिन्न राज्यों के पास पर्सेंटेज में अंतर के कारण शिक्षा मंत्रालय अब देश के विभिन्न राज्यों के सभी 60 स्कूल बोर्ड के लिए मूल्यांकन स्वरूप को मानकीकृत करने पर विचार कर रहा है.

राज्यों के बोर्ड पास पर्सेंटेज में बड़ा अंतर 

शिक्षा मंत्रालय की स्टडी रिपोर्ट बताती है कि तमाम राज्यों के बोर्डों के बीच पास पर्सेंटेज में काफी भिन्नता है. मेघालय का उत्तीर्ण प्रतिशत 57 प्रतिशत और केरल का उत्तीर्ण प्रतिशत 99.85 प्रतिशत है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 11 राज्यों में कुल 85 प्रतिशत बच्चे बीच में ही पढ़ाई छोड़ देते हैं. ये राज्य हैं उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, गुजरात, तमिलनाडु, राजस्थान, कर्नाटक, असम, पश्चिम बंगाल, हरियाणा और छत्तीसगढ़.

इन राज्यों के बोर्ड रिजल्ट का किया गया विश्लेषण

रिपोर्ट में विभिन्न राज्य बोर्डों के नतीजों में अंतर को समझने के लिए आंध्र प्रदेश, असम, कर्नाटक, केरल, मणिपुर, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और तेलंगाना के 10वीं और 12वीं के परिणामों का विश्लेषण किया गया. इसमें पाया गया कि राज्य बोर्डों में उच्च विफलता दर के संभावित कारणों में प्रति स्कूल प्रशिक्षित शिक्षकों की कम संख्या भी एक कारण है. यह कम सकल नामांकन अनुपात (जीईआर) में योगदान देता है. साथ ही वैश्विक सूचकांकों में भारत की समग्र रैंक को भी प्रभावित करता है.

रिपोर्ट में कहा गया है, “10वीं कक्षा के 35 लाख छात्र 11वीं कक्षा तक नहीं पहुंच पा रहे हैं. 27.5 लाख छात्र फेल हो रहे हैं. 7.5 लाख छात्र परीक्षा में शामिल ही नहीं हो रहे हैं.” रिपोर्ट के मुताबिक, “ओपन बोर्ड के साथ नियमित राज्य बोर्डों के फेल छात्रों (लगभग 46 लाख) की मैपिंग और सूचनाओं के आदान-प्रदान से शिक्षा प्रणाली में सुधार किया जा सकता है. साथ ही इससे छात्रों को लंबी अवधि के लिए ट्रैक करने और उन्हें पढ़ाई में बनाए रखने में मदद मिल सकती है.” 

10 लाख छात्र ओपन स्कूलों के जरिए रजिस्टर्ड

वर्तमान में केवल 10 लाख छात्र ओपन स्कूलों के माध्यम से रजिस्ट्रेशन करा रहे हैं. इसी तरह लगभग 12 लाख छात्र रजिस्टर्ड तो हैं, लेकिन वो क्लास में उपस्थित नहीं हो रहे हैं. उन्हें ट्रैक करने और ट्रेनिंग देने के लिए कौशल विकास विभाग (स्किल डेवलपमेंट डिपार्टमेंट) के साथ एक्शन प्लान बनाया जा सकता है.

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