Law Does Not Recognize Live-in Relationship As Marriage Says Kerala HC – लिव-इन रिलेशनशिप को शादी के तौर पर मान्यता नहीं देता कानून: केरल HC



justice generic court Law Does Not Recognize Live-in Relationship As Marriage Says Kerala HC - लिव-इन रिलेशनशिप को शादी के तौर पर मान्यता नहीं देता कानून: केरल HC

पीठ का यह फैसला एक अंतर-धार्मिक जोड़े की अपील पर आया. उक्त जोड़े ने उस परिवार अदालत के आदेश के खिलाफ अपील दायर की थी, जिसने तलाक के अनुरोध वाली उनकी याचिका इस आधार पर खारिज कर दी थी कि उनका विवाह विशेष विवाह अधिनियम के तहत नहीं हुआ.

इस जोड़े में एक हिंदू और दूसरा ईसाई है. जोड़ा एक पंजीकृत सहमति के तहत 2006 से एकसाथ रह रहा था और दोनों का 16 साल का एक बच्चा भी है. चूंकि वे अब अपने रिश्ते को जारी नहीं रखना चाहते थे, उन्होंने तलाक के लिए पारिवार अदालत का रुख किया था.

उच्च न्यायालय ने उनकी अपील का निस्तारण करते हुए कहा, ‘‘कानून ने अभी तक लिव-इन रिलेशनशिप को विवाह के तौर पर मान्यता नहीं दी है. कानून विवाह को तभी मान्यता देता है जब वह पर्सनल कानून के तहत या विशेष विवाह अधिनियम जैसे धर्मनिरपेक्ष कानून के अनुसार होता है.

अदालत ने कहा, ‘‘यदि पक्षकार एक सहमति के आधार पर एकसाथ रहने का फैसला करते हैं, तो यह उन्हें विवाह के रूप में दावा करने और तलाक का दावा करने के योग्य नहीं बनाता.”

उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि वर्तमान मामले में, परिवार अदालत के पास तलाक के लिए इस तरह के दावे पर विचार करने का अधिकार क्षेत्र नहीं था और उसे जोड़े की याचिका खारिज करने के बजाय, उसे यह कहकर वापस कर देना चाहिए था कि यह विचार योग्य नहीं है.

उसने परिवार अदालत को जोड़े की याचिका यह कहते हुए वापस करने का निर्देश दिया कि यह विचार योग्य नहीं है.

पीठ ने कहा, ‘‘पक्षकार को इस मामले में किसी राहत के लिए कहीं और का रुख करने की आजादी होगी. तदनुसार, इस अपील का निस्तारण किया जाता है.”

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)



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