Laxmii Review: सिनेमा के लिए न शुभ और न ही लाभ लाई ‘लक्ष्मी’, अक्षय की ये पूरी फिल्म देखना ही असल चुनौती

Laxmii Review: लक्ष्मी
कलाकार: अक्षय कुमार, कियारा आडवाणी, आयशा रजा मिश्रा, राजेश शर्मा, अश्विनी कलसेकर, शरद केलकर, मीर सरवर, प्राची शाह और तरुण अरोड़ा आदि।
निर्देशक: राघव लॉरेंस
ओटीटी: डिज्नी प्लस हॉटस्टार
रेटिंग: *

कोरियोग्राफर से एक्टर और फिर एक्टर से डायरेक्टर बने राघवेंद्र लॉरेंस उर्फ राघव लॉरेंस का हिंदी सिनेमा में अक्षय कुमार को निर्देशित करने का सपना वैसा ही रहा, जैसा कि उनके सीनियर के भाग्यराज का अमिताभ बच्चन को निर्देशित करने का। ये अलग बात है कि अपनी ही बनाई फिल्म ‘मुनी2: कंचना’ का हिंदी रीमेक बनाने का श्रीगणेश करते समय ही इसके निर्देशक राघव लॉरेंस को समझ आ गया था कि हिंदी सिनेमा साउथ जैसा अनुशासित नहीं है। यहां फिल्म का हीरो वह सूरज जिसके चारों तरफ मुंबई मंडल के सारे ग्रह और उनके उपग्रह चक्कर लगाते हैं। राघव लॉरेंस ने हिंदी सिनेमा कितना देखा ये तो पता नहीं लेकिन हिंदी सिनेमा देखने वालों ने हाल के बरसों में जितना हिंदी में डब तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और मलयालम सिनेमा देखा है, वह दक्षिण भारतीय स्टाइल में बनने वाली ‘सिंघम’ और ‘सिम्बा’ जैसी फिल्मों के लिए प्यार करने लायक माहौल बना ही जाता है। ‘लक्ष्मी’ भी उसी पैटर्न को अपनाती दिखती फिल्म है, बस यहां निर्देशक रोहित शेट्टी जैसा कोई सयाना नहीं है जो कहानी साउथ की उठाता है, मसाला मराठी मानुष का मारता है और फिल्म को दे देता है एक पैन इंडियन लुक।

लक्ष्मी’ पहले खिलाड़ी कुमार के रूप में मशहूर रहे और फिर दूसरे भारत कुमार बनने की कोशिश में लगे रहे अक्षय कुमार के अभिनय के नकलीपन को दर्शाती असली फिल्म है। यहां फिल्म का पूरा दारोमदार अक्षय कुमार पर ही है। कियारा आडवाणी हैं लेकिन बस सुंदर दिखने को। उनसे ज्यादा फुटेज तो फिल्म में आयशा और अश्विनी को मिली है। खैर जैसा कि दस्तूर है पहले आपको फिल्म ‘लक्ष्मी’ की कहानी बतानी होगी। अगर आपने ‘मुनी’, ‘कंचना’, ‘गंगा’ और ‘काली’ हिंदी में डब होने के बाद देख रखी है तो ‘लक्ष्मी’ आपको एक बहुत ही दोयम दर्जे की फिल्म लगेगी। जो काम असल फिल्मों में इसके निर्देशक राघव लॉरेंस ने बतौर अभिनेता खुद किया, वह काम यहां अक्षय कुमार करने की कोशिश करते दिख रहे हैं, गले की नसों को खींचकर और सीने के सफेद हो चुके बालों को दिखाकर।

कहानी इस बार आसिफ की है। आपको लगेगा कि कहां अक्षय कुमार और कहां उनके किरदार का नाम आसिफ? लेकिन, हवा का रुख बदलने से पहले ही उसकी दिशा भांप लेने में अक्षय को महारत हासिल है। यकीन न हो तो प्रियंका चोपड़ा औऱ अदिति राव हैदरी से पूछ सकते हैं। लेकिन, होशियार अक्षय इस बार औंधे मुंह गिरे हैं। काम के लिए निकलते समय ‘दो गज की दूरी, मास्क जरूरी’ की विज्ञापन फिल्म लॉकडाउन खत्म होते ही सबसे पहले शूट करने वाले अक्षय ने जब अपनी फिल्म के लिए दिल्ली आकर न दो गज की दूरी रखी और न ही मास्क लगाना जरूरी समझा, तभी दर्शकों को समझ आने लगा था कि फिल्म के लिए इतनी बेताबी की आखिर वजह क्या हो सकती है।

डिजनी प्लस हॉटस्टार ने फिल्म ‘सड़क2’ के बाद ये लगातार दूसरी बेहद कमजोर फिल्म अपने उन ग्राहकों को दिखाई है जो एमएक्स प्लेयर की तरह यहां मुफ्त में फिल्में देखने नहीं आते हैं। पैसे देकर फिल्में देखने वाले इन ग्राहकों को फिल्म ‘लक्ष्मी’ के तौर पर जो परोसा गया है, उसे पूरा देख पाना भी किसी चैलेंज से कम नहीं है। बेतरतीब भागता कैमरा, तनिष्क बागची जैसे नकलटिप्पू संगीतकार, ओवरएकस्पोज्ड फोटोग्राफी और सिर में दर्द कर देने वाला बैकग्राउंड म्यूजिक। फिल्म ‘लक्ष्मी’ का हर डिपार्टमेंट अपने आप में एक चुनौती लेकर आया है, दर्शक के सामने कि दम है तो फिल्म पूरी देखकर दिखाओ। इसके बावजूद जिन्होंने ये फिल्म पूरी देख ली है, उनके लिए डिजनी प्लस हॉटस्टार का साल भर का सब्सक्रिप्शन इस बहादुरी के लिए फ्री कर देना चाहिए।

फिल्म ‘लक्ष्मी’ की कहानी एक किन्नर लक्ष्मी की कहानी है जिसे एक नेता और उसके गुर्गे मार देते हैं। उसको शरण देने वाले और इस शरणदाता के बच्चे की भी हत्या हो जाती है। इन तीनों की आत्माएं एक साथ आसिफ के शरीर में आ जाती हैं। करना इनको वही है जो कहानी की मांग है। लेकिन, इससे पहले कहानी में जो कुछ है वह डिस्प्रिन का असर चेक करने का टेस्ट हो सकता है। अक्षय कुमार ने पूरी फिल्म में बहुत ही वाहियात एक्टिंग की है। जवानी के दिनों में ‘हेराफेरी’ जैसी फिल्मों में उनका चीखना चिल्लाना सुनील शेट्टी और परेश रावल जैसे कलाकार संतुलित कर लेते थे, लेकिन बुढ़ापे में उनके पास अपना खुद का ही सहारा है। फिल्म में दूसरा कोई कलाकार नहीं जो उनका फैलाया रायता समेट सके।

साथी कलाकारों में राजेश शर्मा से लेकर मनु ऋषि चड्ढा, आयशा रजा मिश्रा और अश्विनी कलसेकर सब ओवरएक्टिंग का शिकार हैं। फिल्म के दोनों गाने बहुत ही बोरिंग हैं और कहानी में व्यवधान ही डालते हैं। शरद केलकर के कहानी में आने के बाद कुछ रस दिखता भी है लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। हफ्ते की शुरूआत में ही डिज्नी प्लस हॉटस्टार ने अपने ग्राहकों का जो मूड खराब किया है, उसका खामियाजा कहीं ‘भुज- द प्राइड ऑफ इंडिया’ और ‘द बिग बुल’ को न उठाना पड़ जाए, चिंता अब इसी बात की है।

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